काशी, डेस्क रिपोर्ट | देशभर में आज कार्तिक पूर्णिमा बड़े ही धूमधाम से मनाई जा रही है। इस दिन को देव दिवाली के नाम से भी जाना जाता है लेकिन इस बार साल का अंतिम चंद्र ग्रहण लगने के कारण देव दिवाली 8 नवंबर की जगह 7 नवंबर को मनाई गई। इसलिए देव दिवाली को सूतक काल से पहले ही मनाया गया। इसी क्रम में काशी विश्वनाथ में अलग तरीके से मनाई गई। दिवाली के तरह ही देव दिवाली में भी धूम देखने को मिली।
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बाबा की नगरी काशी विश्वनाथ में सोमवार की शाम दीप से पूरा शहर जगमगा उठा, जैसे पूरा शहर मानों दिए की रौशनी से जगमगा उठा। दरअसल, काशी के 88 घाट पर कुल 10 लाख दीप जलाए गए। इसी के साथ ही वाराणसी ने नया रिकार्ड बनाया है। गंगा घाट का हर एक कोना दीए से सजाया गया। शहर का कोना-कोना लाइटों से सजाया गया था। यह मनोरम दृश्य भक्तगणों का मन मोह रहा था। इस दौरान बच्चे से लेकर बुजुर्ग, महिलाएं हर कोई भक्ति में लीन नजर आया। बता दे यहां देशभर ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लोग यहां आते हैं।
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इस दिन को देव दिवाली मनाने के पीछे पौराणिक मान्यता है। कहा जाता है इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध किया था। जिसकी खुशी में देवी-देवता काशी के गंगा घाट पर उतरे और अनेकों दीये जलाए, तब से ही इस दिन को देव दिवाली कहा जाने लगा। इसी परम्परा के तहत दुनियाभर के श्रद्धालु इस दिन पावन नदियों में स्नान करने आते हैं और यहां पर दीपदान कर देवी-देवताओं से आशीर्वाद लेते हैं। साथ ही, अपने परिवार के अच्छी भविष्य की कामना करते हैं।
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अग्निपुराण में अनुसार, कार्तिक महीने के आखिरी दिन दीपदान जरूर करना चाहिए क्योंकि दीपदान से बढ़कर कोई व्रत नहीं है। वहीं, पद्मपुराण में भगवान शिव ने भी अपने पुत्र कार्तिकेय को दीपदान का महत्व बताया है।
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