India’s Unique Diwali Traditions on Diwali : भारत का सांस्कृतिक ताना-बाना अनगिनत विविधताओं और परंपराओं से आबद्ध है। यहां ‘विविधता में एकता’ की अवधारणा साफ़ दिखाई देती है। देश के अलग अलग हिस्सों में हजारों संस्कृतियां, विभिन्न परंपराएं, प्रथाएं और उत्सव मनाने के तरीके हैं। दिवाली पर भी यहां कई अनूठी और अनोखी परंपराएं देखने को मिलती है। लोग अपनी मान्यताओं और सदियों से चली आ रही परंपराओं के अनुसार इस पर्व को मनाते हैं।
दिवाली का पर्व भारत में उत्साह, उमंग और सामाजिक सद्भाव का प्रतीक है। इस अवसर पर लोग अपने घरों को दीयों, रंगोली, फूलों और मोमबत्तियों से सजाते हैं ताकि जीवन में रोशनी और सुख-शांति बनी रहे। बच्चों के लिए ये रोशनी और आतिशबाजी का अवसर होता है। दिवाली का पर्व न सिर्फ धार्मिक बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर पर भी एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है।
भारत के विभिन्न हिस्सों में दिवाली अनोखी परंपराएं
भारत एक ऐसा देश है, जहाँ विविधता में एकता का अनूठा उदाहरण देखने को मिलता है। यहां पर हर त्योहार को विभिन्न संस्कृतियों और क्षेत्रों में स्थानीय परंपराओं और रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है और दिवाली इसका बेहतरीन उदाहरण है। दिवाली का पर्व पूरे देश में रोशनी, मिठाइयों और खुशियों का प्रतीक माना जाता है, लेकिन हर क्षेत्र में इसे मनाने के तरीके और परंपराएँ अलग-अलग हैं, जो इसे और भी खास बनाते हैं।
1. महाराष्ट्र : दिवाली पर यहाँ महिलाएँ यम देवता को समर्पित ‘यमदीपदान’ मनाती हैं। इसमें विशेष प्रकार के आटे के दीये जलाकर परिवार के पुरुष सदस्यों की लंबी उम्र की प्रार्थना की जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार, एक राजकुमार की पत्नी ने यम देवता के प्रतीकात्मक रूप में सांप को अपने पति के जीवन की रक्षा के लिए दीयों से रोक दिया था, जिससे यह परंपरा शुरू हुई। महाराष्ट्र के अलावा कुछ अन्य स्थानों पर भी इस प्रथा को किया जाता है।
2. पंजाब : पंजाब में दिवाली का उत्सव ‘बंदी छोड़ दिवस’ के रूप में भी मनाया जाता है, जो सिख गुरु हरगोबिंद जी की रिहाई का प्रतीक है। इस दिन गुरुद्वारों और घरों में दीये जलाए जाते हैं और विशेष रूप से अमृतसर में स्वर्ण मंदिर को रोशनी से सजाया जाता है।
3. छत्तीसगढ़ : छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों में दिवाली पर ‘दियारी पर्व’ मनाया जाता है। ये तीन दिवसीय पर्व होता है और इसमें एक बेहद रोचक और महत्वपूर्ण रस्म है फसल की शादी करने की। ख़ासकर बस्तर के आदिवासी समाज में इस दौरान फसल की शादी की जाती है। दरअसल ये यहां के ग्रामीण इलाकों में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो फसल और पशुधन की रक्षा और वृद्धि के लिए समर्पित है। धनतेरस से शुरू होकर ये तीन दिनों तक मनाया जाता है और हर दिन की रस्में अन्न और मवेशियों से जुड़ी होती हैं। इसका केंद्र चरवाहों के काम पर होता है, जिन्हें स्थानीय भाषा में ‘धोरई’ कहा जाता है। इसी पर्व में खेतों में खड़ी फसल को लक्ष्मी का प्रतीक मानते हुए उसकी पूजा की जाती है। यहां फसल की कलियों और नारायण राजा का प्रतीकात्मक रूप से विवाह किया जाता है। मान्यता है कि इससे घर में समृद्धि और खुशहाली बनी रहती है।
4. बंगाल : बंगाल में दिवाली के दिन काली पूजा होती है, जहाँ माँ काली की विशेष विधि से पूजा की जाती है। भक्त देवी को मछली, मिठाई और चावल का भोग अर्पित करते हैं। इसे “भूत चतुर्दशी” भी कहते हैं, जिसमें 14 दीयों को जलाकर नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने का प्रयास किया जाता है।
5. गुजरात : गुजरात में दिवाली नए साल के उत्सव ‘बेस्टु वरस’ के साथ आती है, जिसमें व्यापारी अपने नए खाते खोलते हैं और लक्ष्मी पूजा करते हैं। यहाँ ‘काली चौदस’ के दिन महिलाएँ रात भर दीया जलाकर अगले दिन की शुरुआत काजल बनाने से करती हैं, जो सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है।
6. गोवा : यहाँ छोटी दिवाली के दिन ‘नरकासुर चतुर्दशी’ मनाई जाती है, जिसमें राक्षस नरकासुर के पुतले बनाकर जलाए जाते हैं जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। गोवा में लोग इस दिन विशेष रूप से शरीर पर तेल लगाकर पवित्र स्नान भी करते हैं।
7. ओडिशा : ओडिशा में दिवाली के अवसर पर “कौरिया काठी” उत्सव होता है, जिसमें जूट की लकड़ी जलाकर पूर्वजों को आमंत्रित किया जाता है। इस प्रक्रिया के माध्यम से पूर्वजों के आशीर्वाद की प्रार्थना की जाती है।
8. हिमाचल प्रदेश : हिमाचल के धामी में ‘पत्थर का मेला’ एक अनोखा और चुनौतीपूर्ण आयोजन है, जिसमें लोग एक-दूसरे पर पत्थर फेंकते हैं। इसे देवी काली की आराधना का प्रतीक माना जाता है।
(डिस्क्लेमर : ये लेख विभिन्न स्त्रोतों से प्राप्त जानकारियों पर आधारित है। हम इसे लेकर किसी तरह का दावा नहीं करते हैं।)