भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। चिलचिलाती धूप हो या फिर मूसलाधार बारिश, एक पिता अपने स्वास्थ्य को ध्यान में ना रखते हुए अपने बच्चे के बेहतर भविष्य के लिए काम पर निकल जाता है, लेकिन शायद हमें उसका यह योगदान पारदर्शिता से नहीं दिखाई देता है क्योंकि जब वह परिवार के लिए अपने शरीर को मेहनत की भट्टी में झोंक रहा होता है तब हम घर, स्कूल, कॉलेज या मौज-मस्ती में व्यस्त रहते है। हालांकि, पिता के इस योगदान को याद रखने के लिए हमें किसी विशेष दिन की आवश्यकता नहीं है, लेकिन इतना जरूर है उनके संघर्ष को ध्यान में रखते हुए उन्हें एक दिन तो उन्हें छुट्ठी देकर स्पेशल महसूस कराया जा सकता है।
पिता क्या है, इसे गीतकार कुमार ने बहुत अच्छे से परिभाषित किया है, दिल को छू कर निकल जाती है वो लाइन, जब वो लिखते है – ‘ईश्वर, अल्लाह, जितने भी रब है, नूर तेरा, तुझ में ही सब है’ और ये बात सच है क्योंकि भगवान तो शायद एक कल्पना है लेकिन पिता सत्य।
कब मनाया जाता है पिता दिवस और क्यों ?
‘फादर्स डे’ पितृत्व का सम्मान, पिता द्वारा किए गए योगदान और बलिदान को याद करने के लिए मनाया जाता है। बच्चे इस दिन अपने पिता के साथ उस बॉन्ड का जश्न मनाते है, जो उनके बीच कभी खत्म नहीं हो सकता। फादर्स डे हर साल जून के तीसरे रविवार को मनाया जाता है।
संक्षिप्त इतिहास
फादर्स डे की संकल्पना अमेरिका से आई है। दरअसल, यह एक पिता के बलिदान की कहानी, जिसने अपने 6 बच्चों की परवरिश में पिता के साथ-साथ मां का भी दायित्व निभाया था।
विलियम जैक्सन स्मार्ट और एलेन विक्टोरिया चीक स्मार्ट की बेटी सोनोरा स्मार्ट डोड ने 16 साल की उम्र में अपनी मां को खो दिया था। डोड सिर्फ 16 साल की थी, जब उनकी मां 47 साल की उम्र में अपने छठे बच्चे के जन्म के दौरान गुजर गई थी। उनकी मां की मृत्यु के बाद, उनके पिता ने सभी छह बच्चों को अकेले ही पाला।
अपने पिता द्वारा की गई इस खास परवरिश से डोड बहुत ज्यादा प्रभावित हो गई थी। चर्च में मदर्स डे का उपदेश सुनते हुए उनके दिमाग में आया कि पिताओं के बलिदान को भी मनाने के लिए एक विशेष दिन होना चाहिए।
वह स्पोकेन मिनिस्टीरियल एलायंस के पास पहुंची और उनसे अनुरोध किया कि वे अपने पिता के जन्मदिन, 5 जून को फादर्स डे के रूप में मान्यता दें। एलायंस ने पिताओं को एक विशेष दिन समर्पित करने की अवधारणा को स्वीकार किया लेकिन फादर्स डे मनाने के लिए जून के तीसरे रविवार को चुना।
कैसे रखे अपने पिता का ख्याल
अगर हम पिता के काम को एक प्रोफेशनल जॉब के रूप में देखे तो हमें समझ में आ जाएगा कि यह दुनिया कि कितनी ‘थैंकलेस जॉब (thankless जॉब)’। हमे दुनियाभर की खुशियां देने वाला इंसान एक ‘धन्यवाद’ के लिए भी तरस जाता है। लेकिन शायद वह इसके भूखे भी नहीं है, शायद! क्योंकि बचपन से ही वह हमें इस चीज के लिए प्रेरित करते है कि ‘तुम सिर्फ अपने लिए ही अपने पैरों पर खड़े हो जाओ, हमें इसके अलावा कुछ नहीं चाहिए’, कभी-कभी तो समझ ही नहीं आता कि कोई कैसे इतने निस्वार्थ भाव से किसी की सेवा कर सकता है, लेकिन यहीं सत्य है।
तो शायद उनके इस बलिदान के प्रति हमारी भी कुछ जिम्मेदारियां बनती है, हमें भी अपने पैरों पर खड़े होने के बाद उनके लिए निस्वार्थ भाव से सबकुछ वो ही करना चाहिए जो उन्होंने हमारे लिए किया है।