भारत की मिठाइयों का जिक्र हो और गुलाब जामुन का नाम जुबां पर न आए… ऐसा हो नहीं सकता। छोटे-बड़े हर जश्न में यह मिठाई थाली में सजकर शोभा बढ़ाती है। शादी-ब्याह का मौका हो या त्योहार की रौनक…. जन्मदिन का जश्न हो या घर में अचानक आई खुशी… गुलाब जामुन हर लम्हे को मीठा बना देता है। कुछ लोगों को यह रोजाना खाने की आदत होती है। इसे खाए बिना उनका दिन पुरा नहीं होता है। इसे हर वर्ग के लोग बड़े ही चाव से खाते हैं। इसका स्वाद लाजवाब होता है, जो कि आपके मूड को एकदम रिफ्रेस भी कर देता है।
हालांकि, क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर इस मिठाई का नाम गुलाब जामुन क्यों रखा गया? इसमें न गुलाब है और न ही जामुन है। तो आज के आर्टिकल में हम आपको इसके बारे में विस्तार से बताएंगे कि जितना मीठा इसका नाम और इतिहास है, उतना ही दिलचस्प इसका सफर भी रहा है।
नाम का रहस्य
गुलाब जामुन के नाम की जड़ें सीधे फारसी भाषा से जुड़ी हैं। फारसी में गुलाब का मतलब होता है गुल यानी फूल और आब यानी पानी यानी गुलाब जल। चूंकि, यह मिठाई चाशनी में डुबोकर परोसी जाती है और उसमें पहले गुलाब जल की खुशबू मिलाई जाती थी, इसलिए इसका नाम पड़ा “गुलाब”। दूसरी तरफ, खोए की तली हुई गोलियां काले-बैंगनी जामुन फल जैसी दिखती हैं, इसलिए इसके साथ “जामुन” जुड़ गया। इस तरह मिठाइयों की दुनिया की सबसे मशहूर डिश गुलाब जामुन बनी।
भारत में एंट्री
आज भले ही गुलाब जामुन भारतीय थालियों का अभिन्न हिस्सा बन चुका है, लेकिन इसकी शुरुआत यहीं से नहीं हुई। इतिहासकार बताते हैं कि यह मिठाई मध्य एशिया और ईरान से आई थी। वहां से होते हुए यह तुर्की और मुगलों के साथ भारत पहुंची। कहा जाता है कि मुगल दरबार में शाहजहां के लिए एक रसोइए ने इसे पहली बार तैयार किया था। शाहजहां को इसका स्वाद इतना भाया कि धीरे-धीरे यह पूरी सल्तनत में मशहूर हो गया। वक्त बीतता गया और गुलाब जामुन भारत की हर रसोई में अपनी जगह बना बैठा।
कोलकाता से खास लगाव
गुलाब जामुन से जुड़ी एक मजेदार कहानी बंगाल से भी आती है। 19वीं सदी में जब गवर्नर जनरल लॉर्ड कैनिंग की पत्नी लेडी कैनिंग भारत आईं, तो उनके सम्मान में मशहूर हलवाई भीम चंद्र नाग ने एक नई मिठाई बनाई। यह मिठाई सिलेंडर के आकार की थी और बेहद स्वादिष्ट थी। सबको इतनी पसंद आई कि इसे लेडी कैनिंग के नाम पर “लेदिकेनी” कहा जाने लगा। आज भी बंगाल में लेदिकेनी बड़े गर्व से बनाई जाती है।
गुलाब जामुन का रिश्ता सिर्फ भारत और फारस से ही नहीं है। दुनिया के कई देशों में इससे मिलती-जुलती मिठाइयां खाई जाती हैं। तुर्की की “तुलुम्बा”, फारसी की “बमीह” और अरब देशों की “लुकमत-अल-कादी” के नाम से जाना जाता है। वहां इसे गुलाब जल या शहद की चाशनी में भिगोया जाता है, जबकि भारत में मीठी चीनी की चाशनी ही इसकी पहचान है।
अलग-अलग नाम
भारत में भी गुलाब जामुन के कई नाम और रूप देखने को मिलते हैं। बंगाल में इसे “पंटुआ” या “कालो जैम” कहा जाता है। मध्य प्रदेश के जबलपुर में विशाल आकार के गुलाब जामुन मशहूर हैं, जो एक ही पीस में पूरा पेट भर देते हैं। कहीं इसका स्वाद हल्का मीठा होता है, तो कहीं गाढ़ी चाशनी में डूबा-डूबा सा रसदार। हर जगह इसका रूप अलग है, लेकिन नाम सुनते ही जुबान पर पानी जरूर आ जाता है।
घर पर करें तैयार
आज भी किसी खास मौके पर घर में कोई आए और उसके सामने गरम-गरम गुलाब जामुन परोसा जाता है, तो मुस्कुराहट अपने आप चेहरे पर आ जाती है। इसकी मुलायम बनावट और रसीला स्वाद छोटे-बड़े, बूढ़े-बच्चे सबको लुभा लेता है। यदि आप भी मिठाई खाने
के शौकिन है तो आप इसे घर पर आसानी से बना सकते हैं। आजकल मार्केट में यह रेडीमेट भी मिल जाता है, जिसे बस कुछ स्टेप्स को फॉलो करके तैयार किया जा सकता है। तो इस नवरात्रि और दिवाली पर इस मिठाई को घर पर जरुर ट्राई करें।
(Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। MP Breaking News किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है।)





