इस दिवाली, कुछ मीठा हो जाए…

भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। दिवाली (Diwali) पर मीठे में क्या लेंगे आप…गुलाब जामुन, लड्डू, गुझिया, रसमलाई, काजू कतली या फिर किसी के चेहरे पर एक मुस्कान। और ऐसी मुस्कान कितनी मीठी होगी, जिसकी वजह आप होंगे।दिवाली की बात हो तो बात होती है रोशनी की, पटाखों की और मिठाई की। हम भी आज यहां मिठास की बात ही करने आए हैं। लेकिन ये मिठास थोड़ी अलग है। ये वो मिठास है जो किसी के चेहरे पर मुस्कान के रूप में खिल उठती है। किसी के हाथों में फुलझड़ी की तरह जगमगाने लगती है और किसी के मन से आशीष की तरह झरने लगती है।

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क्यों न इस दीपावली हम अपना घर रोशन करने के साथ ऐसे कुछ लोगों की मदद कर दें जो जरुरतमंद हैं। हम संकल्प लें कि इस बार सड़क किनारे बैठे फुटकर दुकानदारों से ही दीये और मूर्ति खरीदेंगे। और इसके लिए उनसे पैसों को लेकर चिकचिक नहीं करेंगे। इन छोटे दुकानदारों से थोड़े रुपये कम कराकर हमें कुछ हासिल नहीं होगा। अलबत्ता उनकी कीमत पर दीये खरीदेंगे तो उनके लिए जरुर मदद होगी। इसी तरह राशन का सामान भी लोकर वेंडर्स से लेंगे, ये भी एक अच्छी पहल है।

हम अपने दोस्तों, रिश्तेदारों को तो मिठाई बांटते ही हैं, क्यों न ऐसा करें कि दिवाली की शाम अपनी गाड़ी में कुछ मिठाइयां और खाने का सामान लेकर शहर में निकल पड़ें। ऐसे इलाकों में जाएं जहां रोशनी थोड़ी कम है मजबूरी ज्यादा। वहां के बच्चों को ये मिठाइया बांटे और संभव हो तो कुछ कपड़े भी। दीवाली के साथ ही सर्दी का मौसम भी शुरु हो जाता है, ऐसे में बेघर लोगों को कंबल या गर्म कपड़े बांट जा सकते हैं। अस्पतालों में गरीब मरीजों के साथ कुछ खाने की चीजें और हमदर्दी बांटी जा सकती है। अपनी सोसाइटी के गार्ड और चौकीदार को भी इनाम के साथ एक समय का भोजन कराया जा सकता है। त्योहार से पहले हम अपने घरों में रंगरोगन, साफ सफाई के लिए कई लोगों को बुलाते हैं। उनके जाते समय उनकी मेहनत के पैसों के साथ एक डिब्बा लड्डू का देकर देखिये, उनके आंखों में खिली मुस्कान आपको कितना सुख देती है। तो क्यों न इस दिवाली कुछ मीठा हो जाए, जिसकी मिठास साल भर हमारे ज़हन में घुली रहे।


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श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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