छठ पूजा की शाम को क्यों होती हैं कोसी भरने की परंपरा, जानें इसके पीछे का महत्व

Chhath Puja 2024: छठ पूजा की शाम को कोसी भरने की परंपरा हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है, जिसे श्रद्धा और आस्था के साथ किया जाता है। यह परंपरा विशेष रूप से संतान सुख की प्राप्ति और परिवार के सुख-समृद्धि के लिए मानी जाती है।

भावना चौबे
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Chhath Puja 2024

Chhath Puja 2024: हिंदू धर्म में छठ पूजा एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो सुख समृद्धि और स्वास्थ्य की कामना के लिए मनाया जाता है। इस पर्व के दौरान सूर्य देव की आराधना की जाती है। जिसमें महिलाएं 36 घंटे तक बिना जल और अन्न के उपवास करती हैं। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि शक्ति का प्रतीक भी है। छठ पूजा में खरना के बाद सूर्य देव को संध्या अर्घ्य देना बहुत महत्वपूर्ण होता है।

इसके बाद परिवार के सदस्य एकत्रित होकर गन्ने से घेरा बनाते हैं और कोसी भरते हैं। कोसी भराई का यह अनुष्ठान विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। इसके बारे में आज हम आपको इस आर्टिकल में विस्तार से बताएंगे कि आखिर छठ पूजा के दौरान शाम के समय कोसी भरने का क्या महत्व होता है, तो चलिए जानते हैं।

कोसी भरने की परंपरा

कोसी भरने की परंपरा छठ पूजा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो प्राचीन काल से चली आ रही है। मान्यता है की सबसे पहले सीता मैया ने इस पूजा को किया था और कोसी भराई का अनुष्ठान आरंभ किया था। छठ पूजा के तीसरे दिन व्रती महिलाएं डूबते सूर्य को अर्घ देने के बाद घर वापस आती है और परिवार के साथ मिलकर कोसी भरती हैं।

संतान सुख और परिवार की खुशहाली का प्रतीक

यह भराई मन्नत का प्रतीक मानी जाती है, खासकर उन्हें दंपतियों के लिए जो संतान सुख से वंचित है। ऐसा माना जाता है कि छठ पूजा का व्रत उनके लिए अत्यंत फलदायी होता है। जब भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती है तब भी पूरे परिवार की खुशहाल जिंदगी और अच्छे स्वास्थ्य की कामना के लिए कोसी भरते हैं। कोसी भरने का यह अनुष्ठान मुख्य रूप से भक्त अपने घर की छत पर या घाट के किनारे करते हैं। जिससे यह परंपरा सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण बन जाती है।

कोसी भराई की प्रक्रिया

कोसी भराई की प्रक्रिया बहुत ही सावधानी और श्रद्धा के साथ की जाती है। इस अनुष्ठान के लिए सबसे पहले 5, 11 या 21 गन्नों का चयन किया जाता है। जिन्हें चारों ओर बांधा जाता है। इसके बाद आटे से पारंपरिक रगोई तैयार की जाती है। उसमें मिट्टी के हाथी को स्थापित किया जाता है। इसके बाद सिंदूर चढ़ाकर पूजा की शुरुआत की जाती है। फिर 12 या 24 दिए जलाए जाते हैं, जो इस समारोह में विशेष महत्व रखते हैं। अंत में कलश स्थापित किया जाता है। जिसमें फल, ठेकुआ और अन्य पूजा सामग्री रखी जाती है। यह पूरी प्रक्रिया न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है। बल्कि समाज में एकता और समर्पण का भी संदेश देती है।

 


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