होली मतलब रंगों की बहार और रंग बिरंगे-रंगों का त्योहार। होली के त्योहार को पूरे भारत में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है, बच्चों से लेकर बड़ों तक सभी इस त्योहार के लिए बहुत ही उत्साहित रहते हैं। होली के दिन सभी एक दूसरे को रंग लगाते हैं। इस त्योहार की धूम मथुरा बृंदावन और बरसाना में अलग ही देखने को मिलती है।
यहाँ के लोग होली में राधा कृष्ण की भक्ति में लीन रहते हैं। वहीं होली के त्योहार पर देश भर के कोने कोने से लोग मथुरा बृंदावन पहुँचते हैं, जैसे कि वे वहाँ की होली के उत्सव में शामिल हो सके। क्या आप जानते हैं कि बरसाना की लठमार होली और लड्डू मार होली बहुत प्रसिद्ध है। होली के त्योहार पर यहाँ लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है।

बरसाना में लड्डू मार होली (Ladoo Mar Holi)
यहाँ पर लोग अलग अलग तरीक़ों से होली खेलते हैं, कुछ लोग रंग बिरंगे गुलाल से होली खेलते हैं, कुछ लोग रंगबिरंगे फूलों से होली खेलते है, कहीं लड्डू मार होली तो कहीं लठमार होली खेली जाती है। ऐसे में सभी के मन में यह सवाल तो ज़रूर आता होगा कि आख़िर बरसाना में लड्डू मार होली क्यों खेली जाती है? अगर आप भी जानना चाहते हैं तो चलिए हम इस आर्टिकल को पढ़ते हैं और समझते हैं कि इसके पीछे क्या परंपरा है।
कब खेली जाएगी लड्डू मार होली (Holi 2025)
मथुरा के बरसाना स्थित बंसा श्री राधारानी मंदिर में 7 मार्च 2025 को लड्डू मार होली का आयोजन किया जाएगा। इसे दिन भक्तजन राधा रानी की प्रेम को सेलिब्रेट करते हुए एक दूसरे पर लड्डू फेंकते हैं। ऐसा माना जाता है कि जिन भक्तों पर लड्डू गिरते हैं उन्हें शुभ फल की प्राप्ति होती है। हर कोई लड्डू प्राप्त करने के लिए मंदिर में एकत्रित होता है। जिसे लड्डू मिल जाता है वह ख़ुद को भाग्यशाली समझता है।
राधा-कृष्ण के प्रेम का प्रतीक
आपको बता दें, अनूठी लड्डू मार होली की परंपरा नंदगाँव और बरसाना की होली उत्सव से जुड़ी हुई है। यह राधा और कृष्ण के प्रेम का प्रतीक है। इस ख़ास दिन पर सैकड़ों किलो लड्डू बरसाए जाते हैं, जिन्हें श्रद्धालु प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। इस अद्भुत परंपरा का अनुभव लेने के लिए बड़ी संख्या में भक्तजन दूर दूर से आते हैं।
लड्डू मार होली के पीछे प्राचीन कथा
बरसाने के लड्डू मार होली के पीछे एक प्राचीन कथा प्रचलित है, यह कथा द्वापर युग से जुड़ी हुई है। इस कथा के अनुसार राधा रानी के पिता वृषभानु जी ने नंदगाँव को होली खेलने का निमंत्रण भेजा था। इस आमंत्रण को नंद बाबा ने स्वीकार किया। इसी दौरान जब नंदगाँव से एक पुरोहित बरसाना पहुँचे तो उनका भव्य स्वागत किया गया। इसके बाद उन्हें खाने के लिए लड्डू भी दिए गए, बरसाने गोपियों ने पुरोहित को गुलाल लगा दिया, लेकिन पुरोहित के पास कोई गुलाल नहीं था ऐसे में उन्होंने थाल में रखी लड्डुओं को गोपियों पर फेंक दिया, तब से ही लड्डू मार होली की यह अनोखी परंपरा शुरू हुई। जिसे आज भी बरसाना और नंदगाँव में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है।
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