Co-Sleeping : इन दोनों को-स्लीपिंग का प्रचलन काफी ज्यादा बढ़ गया है। इसका मतलब है कि पेरेंट्स अपने बच्चों के साथ एक ही बेड या रूम में सोते हैं। कुछ लोगों को बच्चों को साथ में सुलाना अच्छा लगता है, तो कुछ लोग ऐसा पसंद नहीं भी करते हैं, लेकिन आज हम आपको को स्लीपिंग के फायदे और नुकसान बताएंगे।
हालांकि, पश्चिमी देशों में को स्लीपिंग को पसंद नहीं किया जाता, लेकिन भारत में पेरेंट्स इसे अच्छा मानते हैं।
![Co-Sleeping](https://mpbreakingnews.in/wp-content/uploads/2025/02/mpbreaking27845382.jpg)
को स्लीपिंग
को स्लीपिंग में माता-पिता और बच्चे एक ही बिस्तर पर सोते हैं। तो वहीं कई बार कमरे में अलग-अलग बिस्तर लगाकर माता-पिता और बच्चे सोते हैं। कई पेरेंट्स कई तरीके अपनाते हैं। इसमें बच्चों का बिस्तर माता-पिता के बिस्तर से जुड़ा होता है। विशेषज्ञों का ऐसा कहना है कि बच्चों के जन्म के लगभग 2 साल तक उन्हें माता-पिता के साथ ही सोना चाहिए।
अलग बिस्तर में सुलाएं
अमेरिकन एकेडमी ऑफ़ इंडिया ट्रिक के अनुसार, माता-पिता को अपने बच्चों के साथ एक ही कमरे में सोना चाहिए, लेकिन उनके बिस्तर अलग-अलग होने चाहिए। बेड शेयरिंग नवजात शिशु के लिए खतरा बन सकता है, क्योंकि इससे सडन इन्फेंट डेथ का खतरा बढ़ सकता है। इसलिए उनका मानना है कि बच्चों को कम से कम अलग बिस्तर में सुलाएं, लेकिन एक ही कमरे में को स्लीपिंग में बच्चों को अच्छे से नींद आती है।
नहीं मिल पाता पर्सनल स्पेस
जो बच्चे अपने माता-पिता के साथ सोते हैं, वह बहुत कम रोते हैं और तनावग्रस्त भी कम रहते हैं। उनके अपने आसपास सुरक्षा महसूस होती है। को स्लीपिंग का सबसे बड़ा फायदा यह है कि माता-पिता का उनके बच्चों के साथ मजबूत रिश्ता बन जाता है। एक दूसरे को समझते हैं, क्योंकि वह अधिक से अधिक समय एक-दूसरे के साथ बिताते हैं। अगर नुकसान की बात करें, तो को-स्लीपिंग से बच्चों में सीड्स का खतरा बढ़ सकता है। यदि पेरेंट्स स्मोक करते हैं या शराब पीते हैं, तो उन पर खतरा ज्यादा मंडरा सकता है। नींद पर किसी का वश नहीं रहता, इसलिए कई बार को स्लीपिंग में बच्चों के दब जाने का खतरा भी रहता है। को स्लीपिंग से माता-पिता को पर्सनल स्पेस नहीं मिल पाता।