Tenant And Landlord Rights : मकान किराए पर लेना मतलब किराएदार और मकान मालिक के बीच बार बार चिक चिक होते रहना। एग्रीमेंट होने के बावजूद किराएदार और मकानमालिक अक्सर आपस में भिड़ जाते हैं। रोज की बहस दोनों के लिए ही किसी सिरदर्द से कम नहीं है, जिससे बचने के लिए किराए और मकानमालिक दोनों को कुछ नियम और अधिकार जान लेने चाहिए। जो अधिकार मकान मालिक को मिले हैं वैसे ही कुछ अधिकार किराएदार को भी मिले हैं। कोई भी नया एग्रीमेंट करने से पहले किराएदार और मकान मालिक दोनों को अपने अपने अधिकार जान लेना चाहिए।
किराएदार को मिलने वाले अधिकार
- किसी भी किराएदार को दो महीने से ज्यादा पेशगी देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।
- अगर मकान किसी कमर्शियल उद्देश्य से लिया जा रहा है तो छह माह का एडवांस देना होगा।
- मकान खाली करने के एक माह के भीतर मकानमालिक को रिफंड लौटाना जरूरी है।
- मकान मालिक किराएदार को नोटिस दिए बगैर किराया नहीं बढ़ा सकता।इसके लिए कम से कम तीन माह पहले मकान मालिक को किराएदार को नोटिस देना होगा।
- किराए की रकम दोनों की मर्जी से ही तय होगी।
- अगर एग्रीमेंट पहले ही हो चुका है तो मकान मालिक एग्रीमेंट की अवधि से पहले किराया नहीं बढ़ा सकता।
- किराया वसूली के लिए बिजली पानी की सप्लाई रोकना या किराएदार पर दबाव बनाने के लिए बिजली पानी की सप्लाई रोकना भी गलत है।
मकान मालिक के अधिकार
- किराएदार किसी भी मकान मालिक पर एग्रीमेंट में नई शर्त जोड़ने का दबाव नहीं बना सकता।
- किराएदार अचानक किसी भी दिन मकान खाली नहीं कर सकता।
- एग्रीमेंट के तहत किराएदार को घर खाली करने से पहले नोटिस देना होगा।
- जिस तरह मकान मालिक को रिफंड की रकम समय पर लौटाना जरूरी है उसी तरह किराएदार को भी तयशुदा समय तक किराया देना जरूरी है।
- अगर किराएदार किराया देने में बहुत लेट करता है या मकान को नुकसान पहुंचाता है तो मकान मालिक को उसका मुआवजा मांगने का हक है।