‘आज शनिवार है और साहित्यिकी श्रृंखला में हम हर बार की तरह एक रचना पाठ करेंगे। आज हम लेकर आए हैं ख्यात कवि, लेखक और पत्रकार माखनलाल चतुर्वेदी की कविता पुष्प की अभिलाषा। वे सरल भाषा और ओजपूर्ण भावनाओं के रचनाकार हैं ‘कर्मवीर’ के संपादक भी थे। उनकी प्रमुख कृतियों में हिमकिरीटिनी, हिम तरंगिणी, युग चारण, समर्पण, मरण ज्वार, माता, वेणु लो गूंजे धरा, बीजुरी काजल आँज शामिल हैं। ये कविता हम सब अपनी पाठ्यपुस्तक में पढ़ चुके हैं, जिसमें एक पुष्प अपनी अभिलाषा व्यक्त कर रहा है।’
चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं, प्रेमी-माला में
बिंध प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं, सम्राटों के शव
पर हे हरि, डाला जाऊँ,
चाह नहीं, देवों के सिर पर
चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ।
मुझे तोड़ लेना वनमाली!
उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पथ जावें वीर अनेक
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