भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। आपने अक्सर अपने बड़े बूढ़ों के मुंह से सुना होगा कि कड़ाही में भोजन नहीं करना चाहिए। इसके कई तरह के कारण बताए जाते हैं जिनमें सबसे प्रचलित है कि कहाड़ी में खाने से शादी में बारिश होती है। ये एक तरह से बुरा संकेत है क्योंकि अगर शादी में बारिश हुई तो सारे इंतजामों पर पानी फिर जाएगा। इसके अलावा ये भी कहा जाता रहा है कि बारिश नहीं हुई तो शादी में किसी न किसी तरह का उत्पात होगा या फिर इससे सेहत पर बुरा असर पड़ेगा। लेकिन क्या ये बातें सच हैं या इनके पीछे कोई और कारण है।
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हमारे यहां तरह तरह की मान्यताएं प्रचलित हैं..कई बार हमें इनका कारण समझ नहीं आता है। लेकिन अगर हम गहराई में जाकर सोचें और समझने की कोशिश करें तो पाएंगे कि इनके पीछे कोई ठोस वजह जरुर है। पुराने समय में हर बात को तार्किक तरह से समझाना मुश्किल रहा होगा और इसीलिए उन्हें किसी तरह की धार्मिक या सामाजिक मान्यता का जामा पहना दिया जाता था। इससे लोग थोड़े भय और थोड़ी श्रद्धा के चलते इन बातों का अनुसरण करते थे। हालांकि हर मान्यता को इस आधार पर सही या गलत नहीं ठहराया जा सकता, लेकिन हम इनके पीछे के कारण को समझने की कोशिश जरुर कर सकते हैं।
कड़ाही में खाने से मना करने की मुख्य वजह है कि पहले के समय पकाने वाले बर्तन अधिकांशत: लोहे के हुआ करते थे। कहाड़ी तो लोहे की ही इस्तेमाल होती थी। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो पाएंगे कि लोहे के बर्तन साफ करना आसान नहीं। उस समय डिशवॉश या साबुन या लिक्विड सोप नहीं होता था और इसे साफ करने के लिए राख, मिट्टी और पानी का ही उपयोग किया जाता था। लेकि इसमें हाईजीन मेंटेन करना काफी मुश्किल था। कई बार पत्थर से रगड़कर कड़ाही को साफ किया जाता था। बाद में उसमें जंग भी लग जाता था। इसीलिए कहाड़ी में खाने से मना किया जाता था क्योंकि इससे बीमारी होने का खतरा रहता था। साथ ही इसे अशिष्टता से जोड़कर भी देखा जाता था क्योंकि तब बड़े परिवार होते थे और सबका खाना एक ही बर्तन में पकता था। ऐसे में कड़ाही जूठा करना अच्छा नहीं माना जाता था। इसीलिए कड़ाही में खाने से निषेध के पीछे यही एक बड़ा कारण रहा है और इसे अलग तरह के नियमों से जोड़ दिया गया ताकि लोग इसका पालन ठीक से करें।