Navratri 2021 : नवरात्रि का पहला दिन, मां शैलपुत्री को प्रसन्न करने के लिये इस विधि से करें पूजा

Lalita Ahirwar
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Chaitra Navratri 2023

भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। आज यानी 7 अक्टूर से शारदीय नवरात्रि (Shardiya Navratri) के महापर्व की शुरुआत हो चुकी है। नवरात्रि में नौ दिनों तक मां दुर्गा (Maa Durga) के अलग-अलग स्वरूपों की अराधना की जाएगी। वहीं आज नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा के शैलपुत्री (Maa Shailputri) स्वरूप की पूजा-अर्चना की जाएगी। मां शैलपुत्री को सौभाग्य की देवी भी कहा जाता है। बता दें, पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री के रूप में उत्पन्न होने के कारण मां दुर्गा का नाम शैलपुत्री पड़ा। कहा जाता है कि मां शैलपुत्री का जन्म पत्थर पर हुआ था इसलिये उन्हें शैलपुत्री नाम दिया गया। मां शैलपुत्री नंदी नाम के वृषभ पर सवार पर सवार होती हैं और उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प होता है। देवी को सफेद रंग सबसे प्रिय होता है।

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देवी के इस रूप को करुणा और स्नेह का प्रतीक माना गया है। घोर तपस्या करने वाली मां शैलपुत्री सभी जीव-जंतुओं की रक्षक मानी जाती हैं। मां शैलपुत्री के पूजन से जीवन में स्थिरता और दृढ़ता आती है। खासतौर पर महिलाओं को मां शैलपुत्री के पूजन से विशेष लाभ होता है। महिलाओं की पारिवारिक स्थिति, दांपत्य जीवन, कष्ट क्लेश और बीमारियां मां शैलपुत्री देवी की कृपा से दूर होते हैं। आज नवरात्रि के पहले दिन जानिए मां शैलपुत्री की पूजन की विधि के बारे में और जानिए खास उपाये जिससे मां देवी प्रसन्न होंगी।

इस पूजन विधि से करें माता को प्रसन्न

मां दुर्गा या मां शैलपुत्री के चित्र या प्रतिमा को लकड़ी के पटरे पर लाल या सफेद वस्त्र बिछाकर स्थापित करें। इसी के लाथ कलश भी स्थापित करें। देवी को सफेद वस्त्र या सफेद फूल अर्पण करें और सफेद बर्फी का भोग लगाएं। एक साबुत पान के पत्ते पर 27 फूलदार लौंग रखें। मां शैलपुत्री के सामने घी का दीपक जलाएं और एक सफेद आसन पर उत्तर दिशा की ओर मुंह करके बैठें। अब ॐ शैलपुत्रये नमः मंत्र का 108 बार जाप करें। जाप के बाद सारी लौंग को कलावे से बांधकर माला का स्वरूप दें। अपने मन की इच्छा बोलते हुए यह लौंग की माला मां शैलपुत्री को दोनों हाथों से अर्पण करें। ऐसा करने से आपको हर कार्य में सफलता मिलेगी और पारिवारिक कलह हमेशा के लिए खत्म होंगे।

मां शैलपुत्री के मंत्र:

-ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥

-वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।

वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥


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