Significance of Goddess Lakshmi : आज धनतेरस है और इसी के साथ दीपावली पर्व की शुरुआत हो गई है। आज का दिन धन, स्वास्थ्य और समृद्धि से जुड़ा हुआ है। यह पर्व विशेष रूप से व्यापारियों, व्यवसायियों और घर-परिवार में सुख-समृद्धि के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। संस्कृत में “धन” का अर्थ “धन-संपत्ति” और “तेरस” का अर्थ “तेरहवाँ दिन” है, क्योंकि यह कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है।
धनतेरस पर देवी लक्ष्मी की पूजा करने का विशेष महत्व है, क्योंकि यह दिन समृद्धि और धन के आगमन का प्रतीक माना जाता है। लोग इस दिन अपने घरों को साफ करते हैं और दीप जलाते हैं जिससे घर में सकारात्मक ऊर्जा और लक्ष्मी का वास हो सके। इस दिन सोने-चांदी के आभूषण और नए बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है, जिससे घर में धन और संपत्ति का प्रवाह बढ़ता है।
देवी लक्ष्मी से जुड़ी पौराणिक कथाएं
धनतेरस का पौराणिक महत्व कई कथाओं से जुड़ा हुआ है। इन कहानियों का उल्लेख विष्णु पुराण, देवी भागवत, पद्म पुराण, और अन्य शास्त्रों में विस्तार से मिलता है। आज हम आपको धन की देवी लक्ष्मी से जुड़ी कुछ कहानियाँ बताने जा रहे हैं, जो धार्मिक ग्रंथों मिलती हैं। ये कहानियाँ भारत के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न रूपों में प्रचलित हैं। इनके माध्यम से यह संदेश मिलता है कि लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए शुद्धता, श्रम और परिश्रम का महत्व है।
1. समुद्र मंथन और देवी लक्ष्मी का प्रकट होना : विष्णु पुराण और श्रीमद्भागवत पुराण समुद्र मंथन की कहानी के अनुसार, देवताओं और असुरों ने अमृत प्राप्त करने के लिए मंदराचल पर्वत और वासुकि नाग का उपयोग कर समुद्र मंथन किया। इस मंथन के दौरान देवी लक्ष्मी प्रकट हुईं और धन, ऐश्वर्य और समृद्धि का वरदान लेकर आईं। उन्होंने विष्णु को अपने पति के रूप में चुना, और तभी से लक्ष्मी जी को विष्णु की अर्धांगिनी और धन की देवी के रूप में में पूजा जाने लगा।
2. देवी लक्ष्मी और बलि राजा की कहानी : राजा बलि की भक्ति और दानशीलता के कारण वे अत्यधिक शक्तिशाली हो गए थे। भगवान विष्णु ने वामन अवतार में उनसे तीन पग भूमि का दान मांगा। जब बलि ने इसे स्वीकार किया, तब भगवान ने अपना विराट रूप धारण कर लिया। भगवान विष्णु इससे बहुत प्रसन्न हुए और राजा बलि को वरदान मांगने को कहा। इसके बाद राजा बलि ने कहा कि आप पाताल लोक में द्वारपाल बनकर हमारे साथ रहें..जिसे विष्णु जी से स्वीकार कर लिया। इसके बाद देवी लक्ष्मी एक गरीब ब्राह्मणी बनकर राजा बलि के पास आई और उनके हाथ पर रक्षासूत्र बाँध दिया। इसपर राजा बलि ने लक्ष्मी जी से कुछ उपहार मांगने को कहा जिसपर उन्होंने कहा कि वे भगवान विष्णु को वापस बैकुंठ भेज दें। वचनबद्ध बलि ने देवी लक्ष्मी की ये माँग स्वीकार कर ली।
3. देवी लक्ष्मी का अभिषेक और गज लक्ष्मी : एक अन्य कथा के अनुसार, देवी लक्ष्मी का एक अभिषेक समारोह हुआ जिसमें वे कमल पर बैठी हैं और दोनों ओर हाथी हैं जो उन पर जल की बौछार कर रहे हैं। यह रूप ‘गज लक्ष्मी’ के नाम से प्रसिद्ध है और इसे धन, ऐश्वर्य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। गज लक्ष्मी को वर्षा और कृषि की देवी के रूप में भी पूजा जाता है, जो भूमि की समृद्धि और धन-धान्य से जुड़ी मानी जाती हैं।
4. दरिद्रता और देवी लक्ष्मी का संबंध : पद्म पुराण के अनुसार, लक्ष्मी जी ने दरिद्रता देवी को अपनी सहेली बना लिया था। यह कहानी बताती है कि लक्ष्मी और दरिद्रता एक साथ नहीं रहतीं, अर्थात जहां लक्ष्मी का निवास होता है वहां दरिद्रता नहीं होती और जहां दरिद्रता होती है वहां लक्ष्मी नहीं होतीं। इस कारण, भारतीय लोककथाओं में लक्ष्मी के पूजन के दौरान घर की सफाई और सकारात्मक ऊर्जा को बनाए रखने पर जोर दिया गया है।
5. देवी लक्ष्मी और अलक्ष्मी का रिश्ता : देवी महात्म्य और ललिता सहस्रनाम की पौराणिक कथा अनुसार अलक्ष्मी, जो दरिद्रता और अशांति की प्रतीक है, देवी लक्ष्मी की बड़ी बहन मानी गई हैं। माना जाता है कि जहाँ अलक्ष्मी का वास होता है, वहां गरीबी और क्लेश रहते हैं। इसलिए, देवी लक्ष्मी की पूजा के दौरान लोग अलक्ष्मी को घर से बाहर करने के लिए विभिन्न अनुष्ठान करते हैं, जिससे घर में सदा मां लक्ष्मी का निवास बना रहे।
(डिस्क्लेमर : ये लेख विभिन्न स्त्रोतों से प्राप्त जानकारियों पर आधारित है। हम इसे लेकर कोई दावा नहीं करते हैं।)