इश्क़ नाज़ुक-मिज़ाज है बेहद,अक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता : मोहब्बत और जुदाई पर कहे गए कुछ मशहूर शेर, कहीं इश्क़ की लज़्ज़त तो कहीं दर्द-ए-दिल

शायरी उर्दू ज़बान का एक दिलकश अंदाज़-ए-बयाँ है, जिसमें अल्फ़ाज़ को इस ख़ूबसूरती से पिरोया जाता है कि वो दिल की गहराइयों को छू लेते हैं। हम सबने कभी न कभी, किसी न किसी मौक़े पर इन अशआर को पढ़ा है और इस्तेमाल भी किया है। शायरी की खूबसूरती है कि ये हर दर्द, हर ख़ुशी और हर जज़्बे को बयां कर सकती हैं।

Love and Heartbreak Shayari : ‘और भी दुख है ज़माने में मोहब्बत के सिवा..राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा’ फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ जब ये कहते है उस वक्त भी वो दरअसल मोहब्बत की ही बात कर रहे होते हैं। बस ये वालू मोहब्बत ज़रा अलहदा है। लेकिन ये भी सच है कि इस दुनिया में ज़्यादातर दुख और खुशी मोहब्बत से बाबस्ता है। यही वजह है कि शेर-ओ-शायरी की दुनिया में मोहब्बत और दिल टूटने पर जितना कहा गया है..किसी और विषय पर उतना नहीं कहा गया। ये एक ऐसी जगह है जहां जीना-मरना एक समान हो जाता है।

इसीलिए तो मिर्ज़ा ग़ालिब क़हते हैं:

‘मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देखकर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले।’

और बात करें उसी मोहब्बत में दिल टूटने की तो फिर शायर के अल्फ़ाज़ भी ग़म में डूब जाते हैं। वो जिसे अपने मेहबूब में ख़ुदा नज़र आता था, अब उसके लिए ढेर सारी शिकायतें भी हैं और दर्द भी। लेकिन शिकायतें भी बड़ी हसीन हैं क्योंकि वो एक शायर की ज़बा से जो निकल रही है।

यहां ग़ालिब का कहना कुछ यूं है कि :

‘हमको उनसे वफ़ा की है उम्मीद
जो नहीं जानते वफ़ा क्या है।’

आज हम आपके लिए कुछ ऐसे ही शेर लेकर आए हैं..जहां मोहब्बत के ये दोनों ही पहलू दिखाई देंगे। एक तरफ़ तो इश्क़ की रूमानियत है तो दूसरी तरफ़ दर्द-ए-दिल की आवाज़। एक तरफ़ महबूब का दामन है तो दूसरी तरफ़ उसकी जुदाई। एक तरफ़ बेशुमार ख़्वाहिशें तो दूसरी और शिकायतें।

मोहब्बत की शायरी

‘नाज़ुकी उस के लब की क्या कहिए
पंखुड़ी इक गुलाब की सी है।’
मीर

‘इश्क़ ने ‘ग़ालिब’ निकम्मा कर दिया
वर्ना हम भी आदमी थे काम के।’
ग़ालिब

‘गर बाज़ी इश्क़ की बाज़ी है जो चाहो लगा दो डर कैसा
गर जीत गए तो क्या कहना हारे भी तो बाज़ी मात नहीं।’
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

‘इश्क़-बाज़ी बुल-हवस बाज़ी न जान
इश्क़ है ये ख़ाना-ए-ख़ाला नहीं।’
शेख जहुरुद्दिन हातिम

‘इश्क़ इक ऐसी हवेली है कि जिस से बाहर
कोई दरवाज़ा खुले और न दरीचा निकले।’
अकरम नक्काश

‘सीने में बे-क़रार हैं मुर्दा मोहब्बतें
मुमकिन है ये चराग़ कभी ख़ुद ही जल पड़े।’
शहजाद अहमद

‘दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के
वो जा रहा है कोई शब-ए-ग़म गुज़ार के।’
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

‘होश वालों को ख़बर क्या बेख़ुदी क्या चीज़ है
इश्क़ कीजे फिर समझिए ज़िन्दगी क्या चीज़ है।’
निदा फ़ाज़ली

जुदाई की शायरी

‘रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ।’
अहमद फ़राज़

‘ये मुझे चैन क्यूँ नहीं पड़ता
एक ही शख़्स था जहान में क्या।’
जौन एलिया

‘आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा
वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा।’
अहमद फ़राज़  

‘ऐ दोस्त हम ने तर्क-ए-मोहब्बत के बावजूद
महसूस की है तेरी ज़रूरत कभी कभी।
नासिर काज़मी  

‘मुद्दत हुई इक शख़्स ने दिल तोड़ दिया था
इस वास्ते अपनों से मोहब्बत नहीं करते।’
साक़ी फ़ारुक़ी  

‘बद-क़िस्मती को ये भी गवारा न हो सका
हम जिस पे मर मिटे वो हमारा न हो सका।’
शकेब जलाली

‘ज़माने भर के ग़म या इक तिरा ग़म
ये ग़म होगा तो कितने ग़म न होंगे।’
हफ़ीज़ होशियारपुरी  

इलाज-ए-दर्द-ए-दिल तुम से मसीहा हो नहीं सकता
तुम अच्छा कर नहीं सकते मैं अच्छा हो नहीं सकता
मुज़्तर ख़ैराबादी

 

 


About Author
श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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