Middle Child Syndrome: जैसा कि नाम से ही पता चलता है, मिडिल चाइल्ड सिंड्रोम उन बच्चों में सबसे ज्यादा देखा जाता है जो दो या दो से अधिक बच्चों वाले परिवारों में में होते हैं। अधिकांश घरों में ऐसा देखा जाता है कि जिस भी घर में दो से ज्यादा बच्चे होते हैं उस घर में हमेशा बड़े और छोटे बच्चों को ज्यादा अटेंशन मिलता है वही मिडिल चाइल्ड यानी बीच वाले बच्चे को हमेशा कम अटेंशन मिलता है। इसे ही मिडिल चाइल्ड सिंड्रोम कहा जाता है, हालांकि कोई भी माता-पिता इस बात पर बिल्कुल ध्यान नहीं देता है लेकिन उनके ऐसे बर्ताव और व्यवहार की वजह से मिडिल चाइल्ड पर काफी असर पड़ता है।
ऐसा क्यों होता है?
माता-पिता अक्सर पहले बच्चे पर अधिक ध्यान देते हैं क्योंकि वो नए होते हैं और छोटे बच्चे पर अधिक ध्यान देते हैं क्योंकि वो अभी छोटे होते हैं। इस बीच, बीच का बच्चा अनदेखा महसूस कर सकता है। माता-पिता अक्सर अपने बच्चों की तुलना दूसरों से करते हैं, खासकर भाई-बहनों से। यह बीच के बच्चे में असुरक्षा और कम आत्मसम्मान की भावना पैदा कर सकता है। माता-पिता अक्सर बीच के बच्चे पर अधिक जिम्मेदारियां डालते हैं, जैसे कि छोटे भाई-बहनों की देखभाल करना। यह बीच के बच्चे में बोझ और असंतोष की भावना पैदा कर सकता है।
ज्यादातर घरों में बीच के बच्चे (middle child) को सबसे कम ध्यान मिलता है। बड़े बच्चे को उपलब्धियों के लिए तारीफ मिलती है, वहीं छोटे बच्चे लाड़-प्यार पाते हैं। लेकिन बीच का बच्चा अक्सर अदृश्य रह जाता है। माता-पिता का यह अनजाना व्यवहार बच्चे को मिडिल चाइल्ड सिंड्रोम (middle child syndrome) नामक मनोवैज्ञानिक समस्या की ओर धकेल सकता है। मिडिल चाइल्ड सिंड्रोम में, बीच का बच्चा अकेलापन, असुरक्षा, कम आत्मसम्मान, ईर्ष्या और क्रोध जैसी भावनाओं का अनुभव करता है। वे अनदेखा महसूस करते हैं और सोचते हैं कि उनसे प्यार नहीं किया जाता। यह समस्या बच्चे के व्यक्तित्व और समाजिक विकास को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती है।
मिडिल चाइल्ड सिंड्रोम से बचने के लिए माता-पिता करें ये काम
- प्रत्येक बच्चे को व्यक्तिगत रूप से समय दें और उनकी रुचियों में दिलचस्पी दिखाएं। उनके साथ खेलें, बात करें, उनकी गतिविधियों में भाग लें और उन्हें खास महसूस कराएं।
- बच्चे की छोटी-छोटी उपलब्धियों को भी मान्यता दें और उनकी सराहना करें। उन्हें बताएं कि आप उन पर गर्व करते हैं और उनकी सफलता में खुशी महसूस करते हैं।
- बच्चे की भावनाओं को समझने की कोशिश करें और उन्हें व्यक्त करने में मदद करें। उनसे खुले तौर पर बात करें और उनकी बातों को ध्यान से सुनें।
- घर में सकारात्मक और प्रेमपूर्ण माहौल बनाए रखें। बच्चों के बीच प्यार और सम्मान को बढ़ावा दें। टकराव और झगड़ों को कम करें।
- सभी बच्चों के साथ समान व्यवहार करें। किसी भी बच्चे को अनुकूल या अनदेखा न करें। उनकी ज़रूरतों और भावनाओं को समान रूप से महत्व दें।
Disclaimer- यहां दी गई सूचना सामान्य जानकारी के आधार पर बताई गई है। इनके सत्य और सटीक होने का दावा MP Breaking News नहीं करता।