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Sun, Dec 21, 2025

MP Tourism : बुंदेलखंड में है महावीर स्वामी का सबसे प्रसिद्ध मंदिर, 11 फिट ऊंची प्रतिमा है आकर्षण का केंद्र

Written by:Ayushi Jain
Published:
MP Tourism : बुंदेलखंड में है महावीर स्वामी का सबसे प्रसिद्ध मंदिर, 11 फिट ऊंची प्रतिमा है आकर्षण का केंद्र

MP Tourism : आज भगवान महावीर का 2622वां जन्म कल्याणक है। ये दिन जैन समाज के लिए सबसे ज्यादा ख़ुशी का दिन हैं। देशभर में बड़े ही धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ महावीर जयंती मनाई जाती हैं। आज महावीर स्वामी की जन्म जयंती के खास अवसर पर हम आपको मध्यप्रदेश के एक ऐसे प्रसिद्ध महावीर मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहां पीतल की मूर्ति में सोने सी चमक देखने को मिलती हैं। इतना ही नहीं उस मंदिर में भगवान महावीर की 11 फिट ऊंची प्रतिमा स्थापित हैं। दूर-दूर से भक्त वहां दर्शन के लिए जाते हैं। ये मंदिर काफी ज्यादा प्रसिद्ध हैं। चलिए जानते हैं उस मंदिर के बारे में –

MP Tourism : मंगलगिरि तीर्थ

आपको बता दे, सागर जिले में जैन समाज के 65 भव्य मंदिर हैं। इसमें से एक मंगलगिरि तीर्थ है जहां हर साल भक्तों की भीड़ देखने को मिलती हैं। ये मंदिर बुंदेलखंड का सबसे प्रसिद्ध है। क्योंकि यहां मौजूद खड़गासन में 11 फिट लंबी महावीर स्वामी की प्रतिमा दिन ब दिन निखरती जा रही है। इसकी चमक लोगों को आकर्षित करती हैं।

महावीर स्वामी जैन समाज के सबसे बड़े तीर्थंकर हैं। जानकारी के मुताबिक, इस मंदिर की प्रतिमा को बनाने के लिए करीब 25 साल मंगलगिरि कमेटी ने देश के जैन अनुयायियों द्वारा पीतल के बर्तन एकत्रित किए थे। ऐसे में करीब 10 हजार किलो धातु जमा हुई। जिसके बाद इस मूर्ति का निर्माण किया गया। ये मूर्ति 10 टन की है। साल 2000 में इस प्रतिमा का पंचकल्याणक हुआ था।

आकर्षित करती है महावीर स्वामी की प्रतिमा

इस मंदिर की प्रतिमा को लेकर प्रमोद जैन बारदाना द्वारा बताया गया है कि जैसे जैसे साल बढ़ते जा रहे हैं वैसे वैसे महावीर स्वामी की प्रतिमा निखरती जा रही हैं। अभी तक अपने सभी ने सुना होगा पीतल पुराना होने के बाद काला पड़ जाता है लेकिन मंदिर की प्रतिमा के साथ उल्टा ही हो रहा है। ये काली नहीं बल्कि निखरती जा रही हैं। लोग प्रतिमा को देख कर बस देखते ही रहते हैं। ये भक्तों को आकर्षित करती हैं।

12 वर्षों तक महावीर स्वामी ने की कठोर तपस्या

महावीर स्वामी का जन्म बिहार के कुंडाग्राम में हुआ था और उन्हें बचपन में वर्धमान कहा जाता था। 30 वर्ष की आयु में अपना राजपाट छोड़ सत्य की खोज में जंगलों की ओर चले गए और 12 वर्षों तक कठोर तपस्या की, के बाद उन्हें ऋजुबालुका नदी के तट पर कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। उन्होंने समाज के सुधार और लोगों के कल्याण के लिए उपदेश दिए थे जिन्हें अपने जीवन में उतारकर कोई भी व्यक्ति अपने जीवन को सार्थक बना सकता है।