अलीराजपुर।
मध्यप्रदेश के अलीराजपुर जिले का आदिवासी बाहुल्य गांव जोबट में शिक्षा का स्तर चाहे उंचा न हो, लेकिन ज्ञानवान आदिवासी अपनी पुरातन कला को सहेजकर शहरों तक पहुंचाने में पीछे नहीं है।हम बात कर रहे है विशिष्ट कला से बनी पंजा दरियों की जो अक्सर प्रदेश में होने वाले मेले और प्रदर्शनियों की शान बनती है।अब इन्ही दरियों को अलीराजपुर प्रशासन पेटेंट कराने की तैयारी में है, ताकी विश्वभर में इसे वो मुकाम मिल सके, जिसका आदिवासी समाज हकदार है।

दरअसल, मध्य प्रदेश के पश्चिमी ज़िले अलीराजपुर के जोबट में पंजा दरी बनायी जाती है। इसमें लोहे का हाथ के पंजे के आकार का उपकरण होता है। वहां की आदिवासी महिलाएं शुद्ध काटन के बने ताने और बाने को बुनती है। हर बुनाइ के बाद लोहे के पंजे से ठोकती रहती है। इस ठुकाई के कारण दरी इतनी मजबूत हो जाती है कि दरी में से पानी भी पार नहीं हो सकता है। घर के पर्यावरण के अनुकूलता के साथ ही मौसम में भी दरी का अनुकूलन बन जाता है।
पीढ़ियों और बरसों से यहां दरी बनाने का काम किया जाता है। ये कई साल तक ख़राब नहीं होती। पंजा दरी इसलिए नाम पड़ा क्योंकि ये हाथ से बनायी जाती है, एक पंजा दरी बनाने में कम से कम तीन से चार दिन लगते हैं। दरी का साइज बड़ा हो तो 20 दिन से ज्यादा समय भी लग सकता है। यह दरी पूरी तरह कॉटन से बनाई जाती है और इसमें रंग भी हाथों से भरा जाता है।
अब प्रशासन इस दरी और कारीगरों को नयी पहचान दिलाना चाहता है, ताकी कोई इसे कॉपी ना कर सके। ज़िला प्रशासन ने शासन को पत्र भेजा है, उसने शासन से पंजा दरी का पेटेंट कराने की मांग की है। अगर पेटेंट हो जाता है तो मध्य प्रदेश का ये आदिवासी इलाका फिर देश-विदेश में नयी पहचान पाएगा।