ये चुनाव है धर्म और अधर्म के बीच का युद्ध, धर्म के पक्ष में उतरा संत समाज-कम्प्यूटर बाबा

अशोकनगर, हितेंद्र बुधौलिया। लोकतंत्र बचाओ यात्रा को लेकर कंप्यूटर बाबा करीब एक सैकड़ा साधु संतों से साथ अशोकनगर पहुंचे ,जिन 25 विधायकों ने कांग्रेस सरकार गिराई थी, उनकी विधानसभा क्षेत्रो में बाबा लोकतंत्र बचाओ यात्रा निकाल कर इस्तीफा देने वाले पूर्व विधायकों का विरोध कर रहे है। उनका कहना है कि भाजपा ने नोटो के दम पर सरकार बनाई है, जो लोकतंत्र की हत्या है। इसलिए ये चुनाव धर्म एवं अधर्म की लड़ाई बन गया है, जिसमे कांग्रेस एवं आम जनता के साथ संत समाज भी मैदान में उतर आया है।

कंप्यूटर बाबा ने यहां रघुवंशी धर्मशाला में कांग्रेस नेताओं की उपस्थिति में पत्रकारों से चर्चा करते हुए कहा कि वह अपनी लोकतंत्र बचाओ यात्रा के 13 वें पड़ाव पर अशोकनगर आये है। यहां से बीजेपी की ओर से चुनाव लड़ने वाले पूर्व विधायक जजपाल सिंह जज्जी को उन्होंने 13 नंबर का गद्दार कहा है। उनकी यह लोकतंत्र बचाओ यात्रा प्रदेश में 25 उन विधानसभा क्षेत्र में जाएगी जहां के विधायको ने पाला बदल कर कांग्रेस की सरकार गिराई है। बाबा का कहना है कि जिन लोगों ने अपने वोट बेचकर सरकार गिराई वह गद्दार है ।उनको घर बैठाया जाना लोकतंत्र बचाने के लिये जरूरी है। इसलिए यह उप चुनाव सामान्य चुनाव नहीं रहे गए है बल्कि अब यह लड़ाई धर्म और अधर्म के बीच का चुनाव है और इसलिए धर्म का साथ देने के लिए साधु-संत भी इस बार मैदान में आया है।


About Author
Gaurav Sharma

Gaurav Sharma

पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है। इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।