Balaghat News: 31 दिसंबर यानि आज बालाघाट को पूरे 127 वर्ष हो गए हैं। लेकिन आज भी पुरातत्व और विकास की दृष्टि में यह पिछड़ा है। यह चिंता पुरातत्व प्रेमियों की है। आज से 127 वर्ष पूर्व 31 दिसंबर 1895 को बुढ़ा-बुढ़ी से बालाघाट के रूप में नामकरण किया गया था। जिस इतिहास को पुरातत्व संग्राहलय द्वारा जीवित रखते हुए प्रतिवर्ष बालाघाट जिले का नामकरण वर्षगांठ मनाई जाती है। हालांकि इस मामले में बालाघाट देश में ऐसा पहला जिला है, जहां जिले के नामकरण की वर्षगांठ को मनाया जाता है।
शनिवार को पुरातत्व संग्रहालय में बालाघाट नामकरण की 127 वीं वर्षगांठ उल्लासपूर्ण माहौल में मनाई गई। वर्षगांठ कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि रमेश राठी, कार्यक्रम अध्यक्ष पूर्व नपाध्यक्ष रमेश रंगलानी, विशेष अतिथि सुभाषचंद्र गुप्ता प्रमुख रूप से मौजूद थे। जबकि कार्यक्रम का संचालन संग्रहाध्यक्ष डॉ. वीरेन्द्रसिंह गहरवार द्वारा किया गया। जिन्होंने कार्यक्रम की रूपरेखा रखते हुए बताया कि 1895 से पहले बालाघाट को बूढ़ा-बूढ़ी के नाम से जाना जाता था। 31 दिसंबर 1895 को इसका नामकरण बालाघाट के रूप में किया गया। तत्कालीन अंग्रेज सरकार ने 1914 में 6 पुरातात्विक स्थलों को संरक्षित किया था। जो वर्तमान में केन्द्र सरकार के अधीनस्थ है। जबकि राज्य सरकार ने 1988 को हट्टा की बावली तथा 2019 में धनसुवा का गोंसाई मंदिर ही अधिपत्य में लिया है। बालाघाट के अन्य असंरक्षित पुरातात्विक स्थलों को संरक्षित करने की कार्यवाही प्रारंभ हैं। पुरातत्व संग्रहालय में पृथक-पृथक दीर्घाओं का निर्माण किया जा रहा है। बूढ़ी मार्ग में बोर्ड लगाया जायेगा, जिसमें बालाघाट का प्राचीन नाम बूढ़ा-बूढ़ी अंकित होगा। उन्होंने कहा कि बालाघाट 127 साल का हो गया लेकिन इस दौरान जिले के पुरातत्व और विकास को लेकर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया। जो चिंता का विषय है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे पूर्व नपाध्यक्ष रमेश रंगलानी ने पुरातत्व संपदा को संरक्षित करने की कार्यवाही करने एवं अन्य विषयों पर विस्तार से बात कही। उन्होंने बताया कि प्रतिवर्ष पुरातत्व संग्रहालय बालाघाट नामकरण की वर्षगांठ मना रहे है, जो अपने-आप में अनोखा है। उन्होंने कहा कि पुरातत्व संग्रहालय और पुरातत्व धरोहरों को लेकर जो भी मांग है उसे जनप्रतिनिधियों के समक्ष रखकर उसके निराकरण करने का प्रयास किया जाएगा। इस दौरान श्रीमती शीला सिंह, सुरेश रंगलानी, डॉ.प्रेम प्रकाश त्रिपाठी, राजेंद्र शिवहरे, मिश्रीलाल साहू, श्याम सिंह ठाकुर, कुंजकिशोर विरुरकर, उदेलाल नागेश्वर, गजानन सिंह नगपुरे, सुश्री सुषमा नाविक, श्रीमती प्रीती नगपुरे, अखिलेश कुमार पटले, वेंकटेश गेडाम, मनीष इनवाती सहित अन्य ने भी अपने विचार रखते हुए कहा कि पुरातत्व संग्रहालय में पुरातत्व अवशेषों को संरक्षित करना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ियों को अपनी विरासत को याद कर सके। इस अवसर पर ‘वन, जल और पुरातत्व’ को बचाने का संकल्प लिया गया। साथ ही 2023 के आगमन पर सरस काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें कवियों द्वारा स्वर रचनाये प्रस्तुत की गई। इसके साथ ही साहित्यकारों का शाल-श्रीफल से सम्मानित किया गया। कार्यक्रम के अंत में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की माताजी स्व.हीराबेन मोदी को श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
बालाघाट से सुनील कोरे की रिपोर्ट