Balaghat News : सबसे पहले चिन्नौर का चांवल और अब वारासिवनी की शिल्प उत्पाद साड़ी को जीआई टैग, अब बालाघाट जिला ना केवल उन्नत किस्म के चिन्नौर बल्कि उन्नत शिल्प उत्पाद साड़ी के रूप में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान को स्थापित करेगा। केन्द्रीय वाणिज्य मंत्रालय के इंडस्ट्री प्रमोशन एंड इंटरनल ट्रेड द्वारा मध्यप्रदेश के 6 उत्पादों को दिये गये जीआई टैग में बालाघाट के वारासिवनी की साड़ी को भी जीआई टैग दिया है।
100 साल पुराना है जिले में हैंडलुम सेक्टर
जिले के ग्रामोधोग शिल्प उत्पाद का इतिहास 100 साल पुराना है, जब अविभाजित वारासिवनी और खैरलांजी विधानसभा क्षेत्र के मेंहदीवाड़ा, येरवाघ्ज्ञाट, बेनी, सतोना, कटंगी के बोनकट्टा और परसवाड़ा के हट्टा, लालबर्रा क्षेत्र के नेवरगांव टेकाड़ी क्षेत्र में बड़ी संख्या में बुनकर हाथो की शिल्प कला के माध्यम से साड़ियों का निर्माण करते थे, लेकिन कालांतर में सरकारों की अनदेखी और मार्केटिंग नहीं होने से जिले का यह बड़ा हैंडलुम उद्योग धीरे-धीरे सिमटते गया और आज यह महज मेंहदीवाड़ा, बोनकट्टा, येरवाघाट, वारासिवनी, हट्टा और टेकाड़ी के लगभग 150 शिल्प परिवारों के द्वारा ही यह काम किया जा रहा है।
बड़े महानगरों तक कराया गया बाजार मुहैया
जिले के ग्रामोधोग विभाग द्वारा जिले के इस उम्दा और बेहतरीन शिल्प को आगे बढ़ाने के लिए समय-समय पर महानगरो बैंगलोर, पुणा, चेन्नई, जयपुर, दिल्ली सहित अन्य महानगरों के हॉट-मेलो में कारीगरों की कला से बने उत्पादों को ले जाकर बाजार मुहैया करवाने का प्रयास किया गया।
साड़ियो से लेकर ड्रेस मटेरियल तक बनाते है शिल्पी परिवार
वारासिवनी, कटंगी और लालबर्रा क्षेत्र के जिन स्थानो पर शिल्प परिवार, इस कारीगरी से जुड़ा है, वह टसर सिल्क साड़ी, मलबरी सिल्क, कॉटन डिजाईनर साड़ी, सिल्क-कॉटन बुटी साड़ी, सिल्क मसराईज यार्न, टसर ड्रेस मटेरियल, काफ्ता ड्रेस मटेरियल, कॉटन ड्रेस मटेरियल, मलबरी सिल्क ड्रेस मटेरियल और घिचा सिल्क ड्रेस मटेरियल का निर्माण करता है। जिसे ग्रामोधोग द्वारा बाजार मुहैया करवाया जा रहा है लेकिन अधिकांश माल, महानगरों और अन्य राज्यो के मास्टर विवर्स या स्वसहायता समूह इसे ले जाकर स्वयं का ट्रेडमार्क लगाकर विक्रय करते है।
अब लगेगा वारासिवनी का ट्रेडमार्क
बालाघाट के वारासिवनी के इस शिल्प उद्योग को जीआई टैग मिलने के बाद अब शिल्प परिवारों के द्वारा निर्मित किये जाने वाले उत्पादों पर वारासिवनी उत्पाद का ट्रेडमार्क लगाकर इसे नही पहचान मिल सकेगी। जिससे ना केवल शिल्पियों को काम मिलेगा बल्कि राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी इसकी पहचान बढ़ेगी।
सरकार उपलब्ध करवा रही सब्सिडी पर उपकरण
ग्रामोधोग विस्तार अधिकारी शिव कुमार डेकाटे की माने तो जिले के शिल्पियों को करघा हैंडलुम के लिए लगने वाले उपकरण, स्टील रॉड, बॉबिन, शटल सहित अन्य उपकरण 90 प्रतिशत सब्सिडी पर सरकार मुहैया करवा रही है। इसके अलावा शिल्प परिवारों के लिए संचालित योजनाओं का लाभ उन्हें दिया जा रहा है।
शिल्प परिवारों के युवाओं का बढ़ेगा रूझान
वारासिवनी क्षेत्र के साड़ी उत्पाद को जीआई टैग मिलने के बाद शिल्प उत्पाद की ना केवल तस्वीर बल्कि तकदीर भी बदलेगी। अमूमन अभी केवल परिवार के बुजुर्ग शिल्पकार ही करघा हैंडलुम से जुड़े है, जबकि परिवार का युवा इसे करने से गुरेज कर रहा है लेकिन जीआई टैग मिलने के बाद यह उम्मीद जताई जा रही है कि युवा भी अपने परंपरागत हाथकरघा व्यवसाय से जुड़ेंगे और स्वरोजगार पैदा करेंगे।
शिल्प उत्पाद का लुक करता है आकर्षित
जानकारों की मानें तो वारासिवनी के शिल्पी परिवारों द्वार बनाये जाने वाले शिल्प उत्पाद के लुक लोगों का आकर्षित करता है। जिसका परिणाम है कि महानगरों में इसकी खासी डिमांड है, जब भी ग्रामोधोग के माध्यम से जिले का शिल्प उत्पाद, हॉट-मेलो में पहुंचता है तो वहां इसके पारखी, इसे हाथो-हाथ लेते है।
शिल्पी परिवारो ने जताई खुशी
एक शताब्दी की इस परंपरा को जीआई टैग मिलने के बाद से शिल्पी परिवारों में खुशी का माहौल है, उनका मानना है कि अब उनके उत्पाद को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलेगी। जिस कला की पहचान के लिए उनकी कला अब तक तरस रही थी।
ग्रामोद्योग विस्तार अधिकारी शिव कुमार डेकाटे ने कहा कि यह खुशी की बात है कि वारासिवनी के साड़ी उत्पाद को जीआई टैग मिला है। चूंकि इस बारे में अभी विस्तृत रूप से ज्यादा जानकारी नहीं आई है लेकिन निश्चित ही इसका लाभ जिले के शिल्पी परिवारों को मिलेगा और शिल्प उत्पाद में भी जिला अपनी एक नई पहचान कायम करेगा।
बालाघाट से सुनील कोरे की रिपोर्ट