बैतूल। मध्य प्रदेश की बैतूल सीट पर बीजेपी और कांग्रेस के बीच कांटे का मुकाबला नजर आ रहा है| भाजपा के लिए गढ़ बन चुकी इस सीट पर दोनों तरफ से नए चेहरे हैं। भाजपा ने गायत्री परिवार में पैठ रखने वाले और आरएसएस के करीबी डीडी उइके को मैदान में उतारा है तो कांग्रेस ने तेजतर्रार नेता रामू टेकाम को टिकट दिया है। बैतूल संसदीय क्षेत्र में वर्ष 1996 में भाजपा ने सेंध लगाई, उसके बाद से लगातार कांग्रेस को यहां शिकस्त मिल रही है| शनिवार को चुनाव प्रचार थम गया है और अब सोमवार को प्रत्याशियों का भविष्य एवीएम में कैद हो जाएगा|
दोनों ही तरफ से मतदाताओं को मनाने की भरपूर कोशिश की गई, प्रत्याशियों के अलावा पार्टी ने भी पूरी ताकत झोंकी है| परिसीमन के बाद अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए बैतूल संसदीय क्षेत्र के आरक्षित होने के बाद भी लगातार 2 चुनावों में भाजपा ने जीत हासिल की है। इस बार प्रदेश में कांग्रेस की सरकार के काबिज होने के बाद मुख्यमंत्री ��पने पड़ोसी जिले की बैतूल संसदीय सीट को हर हाल में भाजपा के हाथों से छीनने के लिए कवायद कर रहे हैं। जिसके चलते सीएम ने यहां ताबड़तोड़ सभाएं की हैं| वहीं भाजपा से भी नितिन गडकरी औऱ शिवराज सिंह चौहान की सभाएं हुईं|
आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित बैतूल- संसदीय क्षेत्र में वर्ष 2008 तक हरदा जिले के 2 विधानसभा क्षेत्र और बैतूल जिले के 6 विधानसभा क्षेत्र शामिल थे। परिसीमन के बाद बैतूल जिले की एक विधानसभा सीट के कम हो जाने के कारण इस संसदीय क्षेत्र में खंडवा जिले की हरसूद विधानसभा सीट को भी शामिल कर लिया गया है। वर्तमान में बैतूल संसदीय क्षेत्र में बैतूल, मुलताई, आमला, घोड़ाडोंगरी, भैंसदेही, हरदा, टिमरनी और हरसूद विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। बैतूल संसदीय क्षेत्र में वर्ष 1952 से लेकर वर्ष 2008 तक सर्वाधिक बार भाजपा का ही वर्चस्व कायम रहा है। अब तक हुए 15 लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को यहां से मात्र 6 बार ही कामयाबी मिली है, जबकि 8 बार भाजपा और एक बार भारतीय लोक दल के प्रत्याशी को मतदाताओं ने जीत दिलाई है।
दांव पर मंत्री की साख, सीएम ने भी लगाया जोर
प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री कमलनाथ के लिए बैतूल संसदीय क्षेत्र में जीत हासिल करना बड़ी चुनौती बन गया है। मुख्यमंत्री के पड़ोसी संसदीय क्षेत्र में 23 साल से भाजपा का कब्जा बना हुआ है, जिसे इस बार छीनने के लिए मुख्यमंत्री ने जिले के विधायक सुखदेव पांसे को पीएचई मंत्री बनाया है। प्रदेश के मुख्यमंत्री के पड़ोसी जिले और पीएचई मंत्री के गृह संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस को जीत दिलाने के लिए दोनों की ही प्रतिष्ठा दांव पर लग गई है।