गलती महिला पुलिस अधिकारी की, खामियाजा 450 पुलिस वाले भुगत रहे

Virendra Sharma
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बैतूल, डेस्क रिपोर्ट। बैतूल (baitul) में एक अनोखा मामला सामने आया है। न्यायालय (court) के सम्मन का पालन न कर हाजिर न होने के चलते बैतूल की अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक श्रद्धा जोशी (additional superintendent of police shraddha joshi) का वेतन रोकने के आदेश न्यायालय ने दिए हैं। दरअसल श्रद्धा 2015 के एक हत्याकांड (murder case) की जांच कर रही थी जिसके लिए कोर्ट के द्वारा उन्हें 9 सम्मन भेजे गए लेकिन वे कोर्ट में हाजिर नहीं हुई, जिसके बाद न्यायालय ने यह कार्रवाई की।

2015 के अप्रैल महीने में गुना बीना रेल लाइन पर राजेंद्र रघुवंशी नाम के व्यक्ति का शव मिला था। पहले इसे सामान्य दुर्घटना माना गया लेकिन लोगों ने इसे हादसा न कहकर हत्याकांड बताया और जिसके बाद काफी बवाल भी मचा। बाद में पुलिस ने इस पूरे मामले में 18 लोगों के खिलाफ एफ आई आर दर्ज की थी और न्यायालय में चालान प्रस्तुत किया था। न्यायालयीन कार्रवाई के चलते ही श्रद्धा को कोर्ट में हाजिर होने के लिए सम्मन जारी किए गए थे।

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इस मामले की जांच कर रहे तत्कालीन एएसआई टीएस ठाकुर को 11 सम्मन भेजे गए जो वर्तमान में टीकमगढ़ के एक थाने में पदस्थ हैं। कोर्ट ने उनके वेतन निकालने पर भी रोक लगा दी। बावजूद इसके उनका वेतन जारी हो गया। इस मामले की सुनवाई एडीजी प्रदीप दुबे की अदालत में चल रही है और इस पूरे मामले में अब केवल एएसआई और एएसपी की ही बयान होने शेष रहे हैं। यहां तक तो ठीक है लेकिन इस पूरे मामले में सबसे बड़ी बात यह है कि एएसपी का वेतन रुकने का खामियाजा 450 से ज्यादा पुलिसकर्मियों (police employees) को भुगतना पड़ रहा है। कारण कि जैसे ही न्यायालय द्वारा एएसपी का वेतन रोकने के आदेश दिए गए, जिला कोषालय (district treasury) ने वह बिल भी लौटा दिया जिसमें एसपी समेत 450 पुलिस कर्मियों के वेतन रिलीज करने के आदेश थे।

इस मामले मे एसपी श्रद्धा जोशी का कहना है कि उन्हें केवल 3 सम्मन मिले जिनके बारे में उन्होंने कोर्ट को कारण बता दिया था कि वे क्यों उपस्थित नहीं हो पाई। 450 पुलिसकर्मियों की वेतन न मिलने का कारण नीतीश उइके, जो कि जिला कोषालय अधिकारी हैं, ने बताया कि एसपी का वेतन एनपीएस कैटेगरी में आता है। इस कैटेगरी में 450 पुलिसकर्मियों का भी नाम है और क्योंकि एक नाम पर रोक लगने का खामियाजा पूरे बिल पर पड़ता है इसीलिए नए सिरे से बिल बनाकर भेजने पड़ेंगे। अब यहां सवाल यह भी है कि हत्याकांड जैसे गंभीर मामले में विवेचना के लिए एएसआई और एएसपी समय पर उपस्थित क्यों नहीं हुए और उन्होंने क्यों इस पूरे मामले को गंभीरता से नहीं लिया?


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