बैतूल।
आज के दौर में चाहे पर्यावरण दिवस की बात की जाए या किसी अन्य महत्वपूर्ण दिवस की, लोगो द्वारा उस दिन पर अमल करने की बजाय सिर्फ सोशल मीडिया तक ही सीमित रखा जाने लगा है। ऐसे लोगों के लिए मिसाल बनें हैं आईआईटी मुंबई, ओएनजीसी और विधा भारतीय शिक्षण संस्थान के वे लोग जो बैतूल जिले के बाचा गाँव को दुनिया का पहला सोलर गाँव होने का दावा कर रहे हैं।
प्राप्त जानकारी के अनुसार इस गांव में 74 घर है। सभी घरों में सोलर यूनिट है। यह आदिवासी लोगों का गाँव है, सौर उर्जा होने की वजह से गांव के लोग अब जंगल नहीं जाते, इसलिए जंगल कटने से बच गया। जिससे गांव प्रदुषण मुक्त हो गया।
बता दें मध्यप्रदेश के बैतूल जिले में स्थित बाचा नामक गाँव से समाज के लिए एक सकारात्मक खबर सामने आई है। कुछ लोगों का यह दवा है कि न तो यहा चूल्हे पर खाना पकाया जाता है और ना ही एलपीजी गैस सिलिंडर का इस्तेमाल किया जाता है। ऐसा कहा जा रहा है कि इस गाँव के हर घर में सोलर सिस्टम की मदद से इंडक्शन पर खाना बनता है। आईआईटी मुंबई, ओएनजीसी और विद्या भारतीय शिक्षण संस्थान इस गाँव को दुनिया का पहला सोलर गांव होने का दावा कर रहे हैं। पर्यावरण दिवस के मौके पर इस गांव की चर्चा पूरे देश में हो रही है।
यहां टीवी पंखा तो चलता है मगर बिजली से नहीं बल्कि सौर ऊर्जा से
इस गाँव में बल्ब जलते हैं, पंखा चलता है, टीवी चलता है लेकिन ये सब बिजली से नहीं बल्कि सौर उर्जा से। आईआईटी मुंबई ने इस गांव को सोलर विलेज बनने में मुख्या भूमिका निभाई है।
इतना आता है खर्चा
प्रत्येक घर में इस पुरे सिस्टम को लगाने में लगभग अस्सी हजार रुपये की लगात आई है। विशेषज्ञों का ऐसा कहना है कि ज्यादा ऑर्डर होने पर लागत को काम किया जा सकता है। इस चूल्हे से पांच सदस्यीय परिवार में एक दिन में तीन बार खाना बनाया जा सकता है। हालांकि इस गांव में सभी चूल्हे नि:शुल्क लगाए गए हैं।
ऐसी सुविधा से ग्रामीण खुश
बैतूल जिले इस गांव के लोग अब बहुत खुश हैं क्योंकि अब उन्हें जंगल लकड़ी के लिए नहीं जाना पड़ता है और न ही आग बुझाने के लिए समय बिताना पड़ता है। बर्तन और दीवारें अब काली नहीं होती हैं। इससे समय की बचत होती है।
दो साल पहले सोलर गाँव बनाने काम हुआ था शुरू
इस गाँव को सोलर गांव बनाने की शुरुवात दो साल पहले यानी 2017 में हुई थी। और अब यह गाँव देश भर में अपनी नई पहचान बना चूका है।