भिंड| गणेश भारद्वाज| विधानसभा चुनाव 2018 के मतदान में महिलाओं का मतदान का प्रतिशत बढ़ा है लेकिन इस बार किसी भी बड़े राजनीतिक दल ने महिलाओं को टिकट नहीं दिया, ऐसा नहीं है कि महिलाओं ने टिकट की दावेदारी नहीं की, दावेदारी भी की, नाम भी चला लेकिन भरोसा नहीं था राजनीतिक दलों के आकाओं को कि महिलाएं भी विधानसभा के दरवाजे पर दस्तक देकर चंबल की हुंकार वहां पर भर सकती हैं |
बात भाजपा की करें तो भिंड से महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष कृष्ण कांता तोमर मेहगांव से जनपद अध्यक्ष ममता सिंह भदौरिया, गोहद से भिंड की पूर्व जनपद अध्यक्ष संजू जाटव तो लहार से भाजपा की कर्मठ नेत्री चित्रा शर्मा के नाम टिकट के लिए सबसे ऊपर थे, वहीं कांग्रेस में भिंड से सरोज जोशी, स्नेह लता जैन के नाम आगे थे तो मेहगांव से दिग्विजय सिंह विरोधी लहर में रजनी श्रीवास्तव भी महिलाओं का दबदबा दिखा चुकी है और इस बार भी टिकट की दावेदारी कर रही थी यहां से संगीता बघेल और मानहड की बेटी कांग्रेस उपाध्यक्ष रेखा भदौरिया ने भी टिकट मांगा था | लेकिन इनके बड़े बड़े राजनैतिक दलों ने इनके नामों को कोई तवज्जो नहीं दी और लगभग पूरे चंबल से ही एक भी महिला प्रत्याशियों को भाजपा या कांग्रेस ने चुनाव मैदान में नहीं उतारा ऐसा नहीं है कि भिंड में कोई महिला विधायक ना बनी हो ओम कुमारी सिंह कुशवाह इसका एक उदाहरण है लेकिन वो अब तक के चुनावी इतिहास में भिंड से एकमात्र विधायक बनने वाली महिला है।
चुनाव में इटावा की विधायक भाजपा नेत्री सरिता सिंह भदौरिया ने अपने प्रत्याशियों को जिताने की पुरजोर मेहनत करी और अन्य महिलाओं ने भी खासकर प्रत्याशियों की पत्नियों ने भी दर-दर पर वोट मांग कर अपने पतियों को जिताने की अपील की, परिणाम इसका यह रहा कि वर्ष 2013 की अपेक्षा इस वर्ष के चुनाव में महिलाओं के मतदान का प्रतिशत बढ़ा है यह इस बात का घोतक है कि आने वाले चुनावों में राजनीतिक दलों को महिलाओं की उपेक्षा काफी भारी पड़ सकती है इसलिए जागो राजनीतिक दलों जागो… विधानसभा और लोकसभा में 33 से लेकर 50 फ़ीसदी आरक्षण देने की वकालत करने वालो जागो और अपनी जनसंख्या की आधी हिस्सेदारी करने वाली महिलाओं या फिर दुर्गा काली और बड़े बड़े नामों से नवाज ने वालो जागो और महिलाओं को भी कुछ तो टिकट दिया करो।
अंचल में मंत्री मायासिंह सहित समीक्षा, रश्मी, संध्या सबकी उपेक्षा
इस बार के विधानसभा चुनाव में बड़े राजनीतिक दलों ने किसी भी महिला प्रत्याशी पर भरोसा नहीं किया और किसी को भी चुनाव मैदान में नहीं उतारा, यहां तक कि कांग्रेस की सुप्रीमो एक महिला सोनिया गांधी है तो दूसरी ओर बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती है।लेकिन पार्टी की सुप्रीमो तो बन सकती हैं पर विधायक का टिकट नहीं मिल सकता, बड़ी गजब बात तो यह है कि भाजपा ने अपनी कैबिनेट मंत्री माया सिंह उर्फ मामी का नाम तो काटा लेकिन उनके नाम की भरपाई करने के लिए अंचल भर में किसी भी एक महिला को टिकट नहीं दिया और कांग्रेस ने भी किसी भी महिला पर भरोसा नहीं किया, ऐसा नहीं था कि इनके पास चुनाव जीतने वाले बड़े कद्दावर नाम नहीं थे पर पुरुषों के असर वाले इस समाज में शायद राजनीतिक दलों को यह दंभ था कि पुरुषों के सामने महिलाओं की क्या मजाल।
मतदान का प्रतिशत बढ़ा है तो जाग जाओ राजनीतिक दल के आकाओ, आने वाला समय महिलाओं का होने वाला है।
34 में से बस 02 ही टिकट
ग्वालियर चंबल अंचल की 34 सीटों में से भाजपा और कांग्रेस ने अदद एक-एक टिकट दिया। भाजपा ने एक टिकट वह दिया जो मंत्री थी जिताऊ थी और दमदार भी थी और टिकट नहीं देते तो अड़ भी जाती और लड़ भी जाती। दूसरी ओर डबरा की अजेय विधायक कही जाने वाली इमरती देवी को कांग्रेस ने टिकट इसलिए दिया कि वहां उन्हें हराने वाला ही कोई नहीं है।