भोपाल, प्रवीण कक्कड़। इस 15 अगस्त को हमारी आजादी के 75 वर्ष (75th Independence Day) पूरे हो जाएंगे। आजादी की हीरक जयंती उन महान पुरुषों और महान महिलाओं के त्याग और बलिदान का पुण्य (virtue of sacrifice) परिणाम है, जो इस देश के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर करने से पीछे नहीं हटे। भारत की आजादी की लड़ाई में हर वर्ग ने अपना योगदान दिया है। आदिवासी वर्ग से टंट्या भील और बिरसा मुंडा, दलित समुदाय से बाबा साहब अंबेडकर और बाबू जगजीवन राम, राजा महाराजाओं की ओर से महारानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, रानी अवंती बाई, वीर कुंवर सिंह, क्रांतिकारियों की ओर से खुदीराम बोस, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, सुखदेव, राजगुरु अशफाक उल्ला खान, किस किस का नाम लें, सभी ने इस देश के लिए महान बलिदान किये।
और सबसे बढ़कर जो आखिरी लड़ाई लड़ी वह महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi)के नेतृत्व में पंडित जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस, सरदार वल्लभभाई, पटेल मौलाना अबुल कलाम आजाद, लाल बहादुर शास्त्री जैसे महापुरुषों ने लड़ी और जीती। इस तरह हमने विदेशी गुलामी से आजादी पाई और भारत एक आजाद मुल्क हुआ। पिछले 75 साल भारत के नवनिर्माण के 75 वर्ष हैं। राष्ट्र निर्माता पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इस देश की कायापलट का काम शुरू किया। जिस देश में कभी सुई नहीं बनती थी, आज उसमें हवाई जहाज बनते हैं। जिस देश में सूखे और अकाल से लाखों लोगों की मृत्यु हो जाती थी, आज वहां खाद्यान्न के भंडार है।
जहां किसान सिंचाई के लिए वर्षा के भरोसे था,आज वहां पर बड़े-बड़े बांध और सिंचित जमीन है, जिस देश की साक्षरता की दर ना के बराबर थी आज वहां 70% लोग साक्षर हैं और सबसे बड़ी बात तो यह कि जो अंग्रेज कभी भारत को गुलाम बनाया करते थे, आज उस देश में भारतीय मूल का एक व्यक्ति प्रधानमंत्री बनने की ओर आगे बढ़ रहा है। भारतीय मूल की एक महिला अमेरिका की उपराष्ट्रपति है। यह कुछ छोटे से उदाहरण हैं, जिनसे हम अपने देश की तरक्की को नाप सकते हैं। सबसे बड़ी चीज जो इन 75 वर्ष की आजादी और हमारे स्वतंत्रता संग्राम ने हमें दी है, वह है देश में नागरिक मूल्यों की स्थापना। देश में इस तरह का लोकतांत्रिक और संवैधानिक ढांचा खड़ा किया गया है जो सामंतशाही, तानाशाही या फौजी शासन की किसी भी आशंका को समाप्त करता है। हमारे देश में हर स्त्री पुरुष को, चाहे वह किसी भी जाति या धर्म का समान अधिकार प्राप्त है और सभी को अवसर की समानता है।
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यह वह बुनियादी मूल्य है जिस पर आने वाले हजारों साल का भारत खड़ा होगा। क्योंकि अगर यह मूल्य ना हो और हम बहुत सी इमारते बना लें और बहुत सी दौलत इस देश में कमा लें, तब भी पूरा मुल्क, उस पूरे देश के सभी लोग उन उपलब्धियों का लाभ नहीं उठा सकते। बहुत से देश ऐसे हैं जो अर्थव्यवस्था या सैनिक ताकत के मामले में हम से आगे हैं लेकिन मानव अधिकार और व्यक्ति की आजादी के मामले में वे हमसे सदियों पीछे हैं। कभी-कभी हमें लगता है कि हम उनकी तरह तेजी से आगे क्यों नहीं बढ़ रहे हैं तो हमें सोचना चाहिए कि देश के आगे बढ़ने का मतलब आंकड़ों का आगे बढ़ना नहीं है, देश का आगे बढ़ने का मतलब है: एक-एक इंसान का आगे बढ़ना, एक एक इंसान का खुशहाल होना।
अगर लोगों के पास पैसा है लेकिन आजादी नहीं, वे खुशहाल नहीं है, तो वह संपन्नता किसी काम की नहीं है। आज से 2000 साल पहले भारत विश्व गुरु इसलिए नहीं था कि हमारे पास बहुत ऊंची इमारतें थी, बल्कि हम विश्व गुरु इसलिए थे क्योंकि हमारे पास बुद्ध और महावीर की करुणा थी, तक्षशिला और नालंदा विश्वविद्यालयों की विद्वत्ता थी और सम्राट अशोक जैसे महान सम्राट की जनप्रियता थी। हम इसलिए महान थे क्योंकि उस जमाने में हमारे भारतवर्ष में गणराज्य हुआ करते थे।
हमें अपने उस महान इतिहास और गौरवशाली वर्तमान को निगाह में रखना और उस दिशा में आगे बढ़ना है, जहां भारत लोकतंत्र के मामले में यूरोप और अमेरिका के देशों से भी ऊपर की अवस्था में पहुंच जाए। लोकतंत्र की बात इसलिए की जा रही है कि पूरे संसार में शासन चलाने की जितनी प्रणालियां अब तक आई उनमें से यह सबसे बेहतर प्रणाली है। कम से कम सिद्धांत रूप में ही सही यह बराबरी का वादा करती है और अवसर की स्वतंत्रता देती है। लोकतंत्र वह प्रणाली है, जिसमें राजा का बेटा राजा और नौकर का बेटा नौकर नहीं बनता है।
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यह प्रणाली है जो विचार पर पाबंदी नहीं डालती। कल्पना को बाधित नहीं करती। विचार और कल्पना सिर्फ साहित्य कला के विषय वस्तु नहीं है, बल्कि विज्ञान और गणित में भी आप तब तक बहुत आगे नहीं जा सकते जब तक आपका विचार तर्क की जमीन पर खड़ा ना हो और आपका विज्ञान किसी कल्पना के पीछे भागना ना चाहता हो। जब मनुष्य के पास गणित और विज्ञान नहीं होता और केवल कल्पना होती है, तब वह कविता में उड़न खटोले की आशा करता है, लेकिन जब उसके पास नई टेक्नोलॉजी आ जाती है तो वह उस के बल पर अपनी कल्पना को हवाई जहाज के जरिए आसमान में उड़ा देता है।
रॉकेट के जरिए कृत्रिम उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा या दूसरे ग्रह की कक्षा में स्थापित कर देता है। अगर हर व्यक्ति के पास सोचने समझने और आगे बढ़ने की स्वतंत्रता ना हो तो बहुत सी प्रतिभाएं अवसर के अभाव में समाप्त हो जाएंगे और दुनिया वैसी तरक्की नहीं कर पाएगी जैसी उसे करनी चाहिए। इसीलिए हमें अपने 75 वर्ष की आजादी पर गर्व होना चाहिए और उन मूल्यों पर गर्व होना चाहिए जो इस आजादी ने हम सब को दिए हैं। अगर हम इन मूल्यों को और बेहतर करके आने वाली पीढ़ी को देंगे तो निश्चित तौर पर हम इस आजादी का सही उपयोग करेंगे और हम इसके सही उत्तराधिकारी साबित होंगे।
जय हिंद…!