NRETP employees are in trouble : मध्य प्रदेश के 18 जिलों में कार्यरत रहे राष्ट्रीय ग्रामीण आर्थिक परिवर्तन परियोजना (NRETP) में अपनी सेवाएं देने वाले कर्मचारियों एक सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है। विशेषकर दीदियों (महिलाओं) के उत्थान के लिए शुरू की गई परियोजना में दूसरों को आजीविका उपलब्ध कराने वाले आज खुद अपनी आजीविका के लिए परेशान हैं। परियोजना के बंद हो जाने के बाद से ये बेरोजगार हो गए हैं, ग्रामीण विकास मंत्रालय के आदेश पर हालाँकि कई अन्य राज्य सरकारों ने इन कर्मचारियों का समायोजन NRLM में कर दिया है लेकिन मध्य प्रदेश सरकार के अधिकारी इस पर मौन साधे हुए हैं।
जून में परियोजना बंद NRETP के कर्मचारी बेरोजगार
देश के 13 राज्यों में संचालित राष्ट्रीय ग्रामीण आर्थिक परिवर्तन परियोजना ने मध्य प्रदेश में भी दीदियों के उत्थान के लिए बहुत काम किया, 2021-22 में शुरू की गई इस परियोजना के तहत प्रदेश के 18 जिलों में कई कार्यक्रम चलाये गए जिसमें दीदियों को आर्थिक रूप से मजबूत किया उन्हें आजीविका उपलब्ध कराई। कार्यक्रमों का संचालन NRETP के तहत नियुक्त कर्मचारियों की देखरेख में हो रहा था इसी बीच जून 2024 में ये परियोजना समाप्त हो गई और इसके तहत संचालित कार्यक्रम बंद हो गए और दूसरों को आजीविका देने वाले कर्मचारियों की खुद की आजीविका पर संकट खड़ा हो गया।
केंद्र सरकार का आदेश NRLM में रखा जा सकता है
यहाँ गौर करने वाली बात ये है कि रोजी रोटी पर संकट को देखते हुए कर्मचारियों ने भारत सरकार से गुहार लगाई और ग्रामीण विकास मंत्रालय ने इनकी गुहार पर संवेदनशीलता दिखाते हुए उन सभी 13 राज्य सरकारों को आदेश दिया कि NRETP में कार्यरत कर्मचारियों को राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) के रिक्त पदों के विरुद्ध रखा जा सकता है।
असम, राजस्थान, झारखंड ने आदेश का पालन किया MP मौन
केंद्र सरकार के आदेश के बाद असम, राजस्थान, झारखण्ड सहित अन्य राज्य सरकारों ने NRETP में कार्यरत कर्मचारियों को आजीविका मिशन सहित अन्य जगह समायोजित करने के आदेश अपने यहाँ दिए लेकिन मध्य प्रदेश सरकार के अधिकारी अभी तक कान में तेल डाले बैठे हुए हैं, उन्हें इन कर्मचारियों पर आया रोजी रोटी का संकट दिखाई नहीं दे रहा और ना उनकी गुहार सुनाई दे रही है।
मध्य प्रदेश में कार्यरत रहे कर्मचारियों ने मुख्यमंत्री के सामने अपनी बात रखी उन्हें केंद्र सरकार द्वारा दिए गए आदेश और अन्य राज्य सरकारों द्वारा किये गए उसके अमल से संबंधित आदेशों की कॉपी भी दी और गुहार लगाई कि हमारा समायोजन भी किया जाये। तत्कालीन केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते ने फरवरी 2024 में मप्र के पंचायत विकास मंत्री प्रह्लाद पटेल को भी एक पत्र लिखा था।
पत्र में केंद्रीय मंत्री कुलस्ते ने लिखा था- एनआरईटीपी परियोजना एमपीएसआरएलएम राष्ट्रीय ग्रामीण आर्थिक परिवर्तन परियोजना आजीविका मिशन भोपाल म.प्र. द्वारा आजीविका मिशन में कार्यरत कर्मचारी जो कि आउटसोर्स में कार्य करते रहे उनको आजीविका मिशन में समाहित किये जाने हेतु निवेदन किया है। उक्त परियोजना अक्टूबर 2021 से म.प्र. ग्रामीण मिशन अंतर्गत 18 जिलों में संचालित है। राज्य के निर्देशानुसार जून 2024 में एनआरईटीपी परियोजना समाप्त होने वाली है, जिसमें लगातार ढाई वर्षों से मिशन में एनआरईटीपी के कर्मचारी कार्य कर रहे है। जिसका फायदा फील्ड स्तर पर आजीविका मिशन के कार्मिक एवं समूह की दीदीयों को प्राप्त होता रहा है। इन एनआरईटीपी कर्मचारियों को शासन मिशन में समाहित कर लेती है तो परियोजना की गतिविधियाँ बहुत ही सुचारू रूप से संचालित होती रहेगी। शासन को भी इसका लाभ मिलेगा।
अतः कृपया लेख है कि जिस प्रकार से एनआरएलएम में एमपीआरएलपी और डीपीआईपी के कर्मचारियों का विलय किया गया उसी प्रकार से इन एनआरईटीपी (NRETP) के कर्मचारियों को भी मिशन में उनकी योग्यता एवं दक्षता के अनुसार जिला अथवा विकास खण्ड में रिक्त पदो के विरुद्ध म.प्र. राज्य ग्रामीण विकास आजीविका मिशन में विलय करने हेतु आवश्यक कार्यवाही करने का कष्ट करें।
अब यहाँ बड़ा सवाल ये उठ रहा है कि जो बेरोजगार ढाई साल तक सरकार की एक परियोजना में पूरी शिद्दत से काम करते रहे दूसरों को आजीविका के लायक बनाते रहे आज उनकी सुध सरकार क्यों नहीं ले रही? जबकि केंद्र सरकार भी इसके लिए आदेश दे चुकी है, जून में परियोजना के समाप्त हो जाने के बाद से 18 जिलों में कार्यरत रहे कर्मचारी बेरोजगार बैठे हैं लेकिन AC कमरों अफसरों को उनकी फ़ाइल बढ़ाने की फुर्सत ही नहीं है, उम्मीद करते हैं कि मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव खुद इसमें पहल करेंगे और इन कर्मचारियों की सेवाएं बहाल करेंगे।