भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। राजधानी में लंबे समय बाद साहित्य जगत में छाई वीरानी रविवार को टूटी, जब हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा भवभूति अलंकरण एवं वागीश्वरी पुरस्कार (2020) समारोह आयोजित किया गया। कार्यक्रम के अध्यक्ष रहे डॉ दामोदर खड़से, मुख्य अतिथि डॉ राधावल्लभ त्रिपाठी, मप्र हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष पलाश सुरजन, महामंत्री मणि मोहन, सम्मानित रचनाकार और सुधिजनों की उपस्थिति में ये गरिमामय कार्यक्रम संपन्न हुआ।
साहित्य अपने समय का सबसे सच्चा इतिहास होता है और वह इतिहास को निरंतर आगे ले जाता है। आज जो नए रचनाकार अलग-अलग विषयों पर लिख रहे हैं, उनकी यह रचनाएं आने वाली पीढ़ियों के समक्ष इतिहास प्रस्तुत करेंगी। इसलिए साहित्य को संरक्षित करना जरूरी है। यह बात प्रख्यात साहित्यकार और महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. दामोदर खड़से ने मप्र हिन्दी साहित्य सम्मेलन के भवभूति अलंकरण एवं वागीश्वरी पुरूस्कार समारोह की अध्यक्षता करते हुए कही।
पीएंडटी चौराहा स्थित मायाराम सुरजन भवन में आयोजित कार्यक्रम में डॉ. खड़से ने कहा कि जितनी ज्यादा विधाओं के लोग साहित्य का सृजन करेंगे, उसमें उतना ही ज्यादा नयापन मिलेगा। उन्होंने कहा कि आज हम अंग्रेजी के दबाव में इतने ज्यादा दब चुके हैं कि अपनी मातृभाषा के बारे में सोचने-समझने की शक्ति खोते जा रहे हैं। ऐसे में अपनी भाषा के साहित्य को संरक्षित रखने के लिए सामाजिक, राजनैतिक और सरकारी तंत्र को विशेष प्रयास करने की जरूरत है। हालांकि यह जरूरी नहीं कि 50 साल पहले साहित्य में जिस भाषा और शब्दों का इस्तेमाल होता था, आज भी उसी भाषा शैली और शब्दों का उपयोग हो, चूंकि आज कई भाषाओं के ऐसे शब्द आम चलन में आ गए हैं कि उनके हिन्दी अर्थ का उपयोग नहीं किया जा सकता है। इसलिए ऐसे शब्दों को अपनी भाषा में शामिल करना होगा। उन्होंने कहा कि शब्दों को लेकर और भी कई चुनौतियां हैं, जिनसे हम साहित्य के माध्यम से ही निपट सकते हैं। डॉ. खड़से ने कहा कि आज अपनी भाषा को समृद्ध करने और साक्षरता बढ़ाने की जरूरत है। इसके लिए साहित्यकारों को निरंतर सक्रिय रहना होगा।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि संस्कृत के प्रख्यात विद्वान एवं हिन्दी के प्रखर कथाकार डॉ. राधा वल्लभ त्रिपाठी ने अपने संबोधन में कहा कि व्यवस्थाएं साहित्य को हमेशा हाशिए पर धकेलती रही है। लेकिन अच्छे साहित्यकारों के कारण साहित्य समाज का निरंतर मार्गदर्शन करता रहा है। इसलिए साहित्यकारों को अपने आपको तराशते रहना चाहिए। इसके लिए उन्हें सभी क्षेत्रों का निरंतर अध्ययन करना चाहिए आज जो नए रचनाकार वागीश्वरी पुरस्कार से सम्मानित हुए हैं, उनसे साहित्य सृजन में भविष्य में काफी उम्मीद है। उन्होंने कहा कि रचनाकारों को अपनी रचनाओं से प्यार होना चाहिए।
इस अवसर पर भवभूति अलंकरण और वागीश्वरी पुरस्कार से सम्मानित रचनाकारों ने भी अपने संक्षिप्त विचार व्यक्त किए और नए साहित्य के सृजन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की। प्रारंभ में सम्मेलन के महेश कटारे ने स्वागत उद्बोधन दिया। कार्यक्रम का संचालन विजय कुमार अग्रवाल तथा आभार प्रदर्शन सम्मेलन के अध्यक्ष पलाश सुरजन ने व्यक्त किया। कार्यक्रम के अंत में दिवंगत साहित्यकारों को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। इस अवसर पर सम्मेलन के पदाधिकारी, सदस्य व साहित्य प्रेमी बड़ी संख्या में उपस्थित थे।
समारोह में भवभूति अलंकरण प्रख्यात कवि दुर्गाप्रसाद झाल और ओम भारती को प्रदान किया गया। वहीं वागीश्वरी पुरस्कार से सुश्री पल्लवी त्रिवेदी, हेमंत देवलेकर, विवेक चतुर्वेदी, डॉ.अमिता नीरव, कविता वर्मा, अनघा जोगलेकर, पंकज कौरव, सोनल शर्मा, आशीष दशोत्तर और डॉ. मौसमी परिहार को सम्मानित किया गया।
वागीश्वरी पुरस्कार 2020 में कविता विधा में पल्लवी त्रिवेदी को उनके काव्य संग्रह “तुम जहां भी हो”, हेमन्त देवलेकर को उनके काव्य संग्रह “गुलमकई”, विवेक चतुर्वेदी को उनके काव्य संग्रह “स्त्रियाँ घर लौटती हैं” पुरस्कृत किया गया। वहीं कहानी विधा में वागीश्वरी पुरस्कार अमिता नीरव को उनके कथा संग्रह “तुम जो बहती नदी हो”, कविता वर्मा को उनके कथा संग्रह “कछु अकथ कहानी” के लिए प्रदान किए गए। उपन्यास विधा के लिए वागीश्वरी पुरस्कार अनघा जोगलेकर को उनकी कृति “अश्वत्थामा यातना का अमरत्व” तथा पंकज कौरव को उनकी कृति “शनि: प्यार पर टेढ़ी नज़र” के लिए दिया गया। वहीं कथेतर गद्य के लिए सोनल शर्मा को उनकी किताब “कोशिशों की डायरी” व आशीष दशोत्तर को उनके व्यंग्य संग्रह “मोरे अवगुन चित में धरो” के लिए प्रदान किए गए। गीत विधा का वागीश्वरी पुरस्कार इस वर्ष डॉ मौसमी परिहार को उनके नवगीत संग्रह “मन भर उड़ान” के लिये दिया गया। मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन की तरफ से आयोजित इस कार्यक्रम में शहर के अनेक साहित्यकार और गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।