इन बड़े शेहरों में भाजपा पर संकट, कांग्रेस ने किला भेदने झोंकी ताकत

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भोपाल। मध्य प्रदेश के बड़े शहरों में भाजपा को इस बार चुनाव में पूरी ताकत झोंकना पड़ रही है। प्रदेश की शहरी लोकसभा सीटों पर बीजेपी का कब्जा रहा है। लेकिन इस बार पार्टी को कड़ा संंघर्ष करना पड़ रहा है। विधानसभा चुनाव के बाद प्रदेश के सियासी समीकरण ऐसे बदले कि बीजेपी चुनौतीपूर्ण मुकाबले में नज़र आ रही है। इनमें जबलपुर, भोपाल, ग्वालियर और इंदौर सीट शामिल हैं। जबलपुर सीट पर चुनाव संपन्न हो चुका है। 

दरअसल, इन सीटों पर बीजेपी के लंबे समय से कब्जा रहा है। लेकिन बदले सियासी हालातों ने पार्टी को हिला कर रख दिया है। बीजेपी को संघ कार्यकर्ताओं की मदद लेना पड़ रही है। अपने गढ़ बचाने के लिए बीजेपी का काडर पूरी तरह से संघर्ष करता दिखाई दे रहा है। वहीं, कांग्रेस को इसका लाभ मिला है और उसने भाजपा के गढ़ में मुकाबले में वापसी कर ली है। भोपाल लोकसभा सीट पर तो कांटे का मुकाबले नजर आ रहा हैं। वहीं, इंदौर सीट पर भी ताई का टिकट कटने के बाद से बीजेपी कमज़ोर पड़ती दिखाई दे रही है। यही नहीं राजनीतिक के जानकार भी अपना गणित इन सीटों पर इस बार बताने में उलझ गए गए हैं। भाजपा पूरी तरह से बचाव की मुद्र में नजर आ रही है। वहीं कांग्रेस बीजेपी के दुग्र भेदने के लिए प्रयास कर रीह है।

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भाजपा की प्रज्ञा सिंह और कांग्रेस के दिग्विजय सिंह में कड़ा मुकाबला है। कांग्रेस ने बड़ा दांव खेलते हुए अपने सबसे बड़े नेता पूर्व मुख्यमंत्री को उम्मीदवार बना दिया। कांग्रेस की चला सफल रही और भाजपा उम्मीदवारी में उलझ गई। दिग्विजय सिंह के उम्मीदवार घोषित होने के बाद पहली बार भाजपा को यहां का प्रत्याशी तय करने में लंबा वक्त लग गया। भाजपा तीस सालों में पहली बार इतने कड़े संघर्ष से गुजर रही है। केएन प्रधान के बाद 1989 से ये सीट भाजपा के अभेद गढ़ में शुमार हो गई है। 

इंदौर : प्रदेश औद्योगिक राजधानी इंदौर की तासीर भी कुछ इसी तरह की है। लगातार आठ बार सांसद रहीं सुमित्रा महाजन ने यहां कभी कांग्रेस की दाल नहीं गलने दी। अब चुनाव में ताई नहीं हैं तो ये सीट भी भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण हो गई है। ताई के रहते भाजपा ने इस तरफ न उम्मीदवार की चिंता की और न ही यहां के परिणाम की लेकिन इस बार पेंच उम्मीदवार पर भी फंसा और मुकाबला भी चुनौतीपूर्ण हो गया।

कांग्रेस ने पंकज संघवी को उम्मीदवार बनाया। संघवी एक बार ताई से पचास हजार वोट से हार चुके हैं लेकिन उन्होंने मुकाबले में बने रहने की हिम्मत जुटाई थी। भाजपा यहां भी बमुश्किल उम्मीदवार तलाश पाई। भाजपा ने शंकर लालवानी को टिकट दिया है। अपना गढ़ बचाने के लिए शिवराज सिंह चौहान पूरा जोर लगाए हुए हैं। 

जबलपुर : प्रदेश का तीसरा बड़ा शहर संस्कारधानी कहलाता है। २२ साल हो गए कांग्रेस को यहां पर एक जीत के लिए। इस बार यहां का मुकाबला भी कांग्रेस ने ऐसा कर दिया कि तीन बार के सांसद और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह को ऐड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ गया। कांग्रेस ने अपने सबसे मजबूत नेता राज्यसभा सदस्य विवेक तन्खा को फिर मैदान में उतार दिया।

पिछली बार तन्खा राकेश सिंह से चुनाव जरुर हारे थे लेकिन इस बार उन्होंने जबलपुर के विकास का मुद्दा छेड़कर राकेश सिंह को मुश्किल में डाल दिया है। अब यहां के परिणाम जानने के लिए लोगों में उत्सुकता है। यहां के लोग अपना फैसला ईवीएम में बंद कर चुके हैं। 

ग्वालियर : इस शहर से समझा जा सकता है कि राजनीति का मिजाज भी कितना अलग होता है। सिंधिया घराने की रियासत में भाजपा का कब्जा है। यहां कांग्रेस १२ साल से जीत को तरस रही है। इस बार यहां के हालात भी बदले हुए नजर आते हैं। मौजूदा सांसद केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ग्वालियर छोड़कर मुरैना चले गए। अब भाजपा ने महापौर विवेक शेजवलकर को उम्मीदवार बनाया है। कांग्रेस ने एक बार फिर अशोक सिंह को मैदान में उतारा है। इस बार ये मुकाबला बेहद संघर्षपूर्ण है। ग्वालियर-चंबल अंचल के भाजपा के सभी बड़े नेता अपने गढ़ को बचाने में जुटे हुए हैं।


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