भोपाल। लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार ने शुक्रवार को अपना अंतरिम बजट पेश किया। इसमें किसानों, कर्दाताओं और मदूरों को खास ध्यान रखा गया है। केंद्र सरकार के इस बजट के बारे में पीपुल्स समाचार की एनालिसस रिपोर्ट में बताया गया है। कैप्टन रुचि विजयवर्गीय ने अपने एनालिसस में मोदी सरकार के बजट के बारे में विस्तार से समझाया है।
बजट को लेकर एक अहम सवाल उठ रहा है कि चुनाव से पहले भाजपा सरकार ने अंतरिम बजट या लेखानुदान वोट ऑन अकाउंट के बजाय पूरा बजट पेश किया। जिसका उसे कोई नैतिक अधिकार नहीं है। सामान्यता यह परंपरा रही है कि जब चुनाव सामने होता है तब सरकार साल भर के लेखे जोखे के बजाय अंतरिम बजट या लेखानुदान पेश करती है, ताकि बचे हुए समय जो वर्तमान सरकार के मामले में लगभग 90 दिन है, के लिए खर्चा जैसे पेंशन, वेतन और उदाहरण चुकाने की अनुमति लोकसभा से प्राप्त करलें। सैद्धांतिक रूप से संविधान में उल्लेख नहीं है कि कोई सरकार का समय में ही किसी अधिनियम में संशोधन कर सकती है या कोई विधेयक ला सकती है। आयकर अधिनियम में तकनीकी रूप से कभी भी संशोधन किया जा सकता है लेकिन प्रक्रिया और परंपरा के अनुसार आयकर अधिनियम में केवल टैक्स प्रस्ताव पेश करने के बाद ही संशोधन किया जा जा सकता है।
चुनाव से पहले पूर्ण बजट पेश करने वाली सरकारें 1979, 1989, 1998 और 1999 में गिर चुकी हैं। जसवंत सिंह ने 2004 में लेखानुदान पेश किया था, लेकिन “अंत्योदय योजना’ लागू की थी।
इन प्रश्नों के जवाब शुक्रवार को पेश हुए बजट में छिपे हैं। दिनभर मीडिया और बुद्धिजीवियों में चर्चा रही की कार्यवाहक केंद्रीय वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने चुनाव से पहले रुख बदलने वाला बजट पेश कर दिया। इसमें तीन आकर्षण है 5 लाख तक आयकर में छूट, छोटे किसानों के खाते में सालाना ₹6000 निश्चित आय और मजदूरों को रिटायर होने पर 3000 प्रतिमाह पेंशन। आम चर्चा यह भी रही कि चुनाव से पहले यदि गरीब मजदूरों और किसानों के खाते में ₹2000 भी आते हैं तो वित्त मंत्री का यह कदम आने वाले आम चुनाव में कांग्रेस और घटक दलों के खिलाफ काफी हद तक कारगार साबित होगा। भले ही कांग्रेस नैतिकता और संवैधानिक प्रावधानों का उलाहना देती रहे। आयकर में छूट का लाभ लेने वालों में केवल तनख्वाह पाने वाले लोग ही नहीं छोटे-मोटे धंधे करने वाले लोग आम गृहणियां भी शामिल होंगी। इन घोषणाओं के अलावा लंबे समय से मंदी झेल रहे आवास निर्माण क्षेत्र और छोटे मझोले कारोबारियों को भी राहत मिलने से चुनाव की दिशा तय हो सकती है।
प्रश्न यह है कि क्या किसानों की कर्ज माफी और हाल ही में राहुल गांधी के न्यूनतम आय जैसी घोषणाओं का कांग्रेस को कोई फायदा नहीं मिलेगा। दरअसल, कर्ज माफी एक पेचीदा मामला है उदाहरण के तौर पर आज तक मध्य प्रदेश जैसे राज्य में लगभग 50 लाख आवेदन आए हैं। इनकी छंटनी होगी, बैंक प्लान करेंगे फिर राज्य सरकार बैंकों के लिए कर्ज माफी की राशि का प्रावधान करेगी। हर हालत में यह रकम मोदी सरकार की किसानों को ₹6000 सालाना दी जाने वाली रकम से काफी अधिक होगी। कांग्रेस शासित राज्यों के लिए यह मुश्किल है क्योंकि अभी आर्थिक हालात अच्छे नहीं हैं और जैसे तैसे कर्ज ले-लेकर काम चल रहा है जबकि मोदी सरकार को किसानों के लिए 20 हजार करोड़ रुपए जुटाना कोई बड़ी समस्या नहीं है तो क्या यह बजट मोदी सरकार के प्रति बढ़ती नाराजगी को एक कदम दूर कर देगा।
बजट प्रावधानों के आंकड़े बताते हैं कि वित्तीय वर्ष 2019-20 में वित्तमंत्री ने सहकारिता और कृषि के लिए कुल 129,585 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है। यह पिछले साल की तुलना में 61785 करोड़ रुपए ज्यादा है। इसमें से 2 हजार करोड़ अभी किसानों को देना हैं। बाकी राशि का एक बड़ा भाग 75 हजार करोड़ रुपए भी किसानों को जाएगा, तो क्या किसानों के लिए कोई और योजना नहीं बनेगी? इसी प्रकार शिक्षा में वित्त वर्ष 2018-19 के बजट आवंटन 41211 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 2019-20 में 44019 करोड़ रुपए किया है, अर्थात महज 2800 करोड़ की वृद्धि। तो क्या राज्य शिक्षकों को तनख्वाह देने के लिए अपने संसाधन जुटाएंगे? अगर राज्य सरकारें ऐसा करने पर मजबूर होती हैं तो वे या तो और कर्ज लेंगे या ऐसे वर्गों की नाराजगी झेलेंगी। स्वास्थ्य के क्षेत्र में वित्तीय वर्ष 2018-19 के बजट आवंटन 21,318 करोड रुपए से बढ़ाकर 2019-20 में 27,961 करोड़ रुपए कर 6663 करोड़ रुपए बढ़ाया गया है। 6400 करोड़ रुपए की राशि आयुष्मान योजना में रखी गई है। क्या इतनी राशि से सारे देश के गरीबों का इलाज हो सकेगा? और हो भी गया तो बाकी लोगों के स्वास्थ्य के लिए राज्य क्या करेंगे?
इसलिए फिर से मूल प्रश्न पर लौटा जाए कि चुनाव से पहले बजट अंतरिम हो या पूर्ण? चुनाव से पहले पूर्ण बजट पेश करने वाली सरकारें 1979, 1989, 1998 और 1999 में गिर चुकी हैं। जसवंत सिंह ने 2004 में लेखानुदान पेश किया था, लेकिन “अंत्योदय योजना’ लागू की थी। इसी तरह प्रणब मुखर्जी ने भी लेखनुदान पेश किया, लेकिन निर्यातकों को ब्याज में छूट दी और रक्षा बजट बढ़ाया। पी चिदंबरम ने वन रैंक वन पेंशन योजना लेखानुदान में पेश की थी। क्या ये बात मायने रखती है कि अंतरिम बजट में कार्यवाहक वित्त मंत्री लोकलुभावन घोषणाएं करें तो चुनाव जीता जा सकता है। शायद नहीं। भारत का मतदाता इतना समझदार है कि वह अब बारीकी से हर सरकार के हर कामकाज का आकलन कर लेता है हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव यही बताते हैं। तर्क दिए जा सकते हैं कि जीएसटी और नोटबंदी का असर लोगों के धंधों और नौकरियों पर पड़ा है, उसी से किसान भी परेशान हुआ है। मगर तर्क यह भी हो सकता है कि यदि ऐसा नहीं हुआ है तो आने वाले चुनाव के बाद तय हो जाएगा कि चुनाव से पहले अंतरिम बजट पेश करने की परंपरा तोड़कर लोकलुभावन और पूरा बजट पेश करने की सत्तासीन सरकार की कवायद वाकई काम करती है।