भक्ति और भाईचारे के रंगों से सजा है होली का त्यौहार – प्रवीण कक्कड़

डेस्क रिपोर्ट। हमारे भारत देश में तरह-तरह के त्यौहार हैं। सबका अपना-अपना महत्व है और अपने अपने तौर-तरीके। लेकिन इन सब त्योहारों में भी होली का जो महात्म्य है, उसकी तुलना भारत तो क्या संसार के किसी त्योहार से करना कठिन है। होली के पर्व में जहां भक्ति के रंग हैं, वही भाईचारे की मिठास भी है।

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शास्त्रों की दृष्टि से देखें तो होली विशुद्ध रूप से सत्य निष्ठा का पर्व है। ईश्वर के प्रति सच्ची भक्ति का त्यौहार है। भक्त प्रहलाद अपने पिता के खिलाफ सत्य और ईश्वर की भक्ति पर अडिग रहते हैं और इस सत्य पर कायम रहने के लिए अपने प्राणों की आहुति देने को भी तत्पर रहते हैं। इस तरह होली का त्यौहार हमें बताता है कि हमें हर सूरत में बुराई से दूर रहना है, उस स्थिति में जबकि बुराई हमारा सबसे कोई सम्मानित या प्रिय व्यक्ति भी कर रहा हो। भक्त प्रहलाद की कथा में होलिका का दहन हो जाता है और प्रहलाद पूरी तरह सुरक्षित होकर बाहर निकल आते हैं। इस कथा का मर्म यही है कि बुराई कितनी भी ताकतवर क्यों ना हो अंततः वह अच्छाई के सामने धू-धू करके जल जाती है।
इस गहरे शास्त्रीय और आध्यात्मिक अर्थ के साथ ही होली का दूसरा स्वरूप है, जो होलिका दहन के अगले दिन हमें दिखाई देता है। लोग एक दूसरे को रंग गुलाल लगाते हैं, जिनसे वर्षों से बोलचाल खत्म हो गया हो, उनसे भी जाकर मिलते हैं और प्रेम के सूखते हुए पौधे में रंगों की बौछार डालते हैं।

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Harpreet Kaur