एक है अच्छे ख़ां..यूं हम बचपन से उन्हें अच्छे मियां बोलते आए हैं। ये गजब कैरेक्टर हैं, मन हुआ तो पांच वक़्त के नमाज़ी हो जाएंगे, न हुआ तो पांडेजी के साथ बैठ पूरा दिन बतकही में निकाल दें। यूं अल्लाह मियां पर यक़ीन बहुत है, लेकिन डरते नहीं उनसे। कहते हैं ख़ुदा को महबूब मान लिया है, अब या तो महबूब से इश्क़ कर लें या डर लें..तो हमने इश्क़ चुन लिया। गोया इस इश्क़ के नाम पर ये ख़ूब मनमर्ज़ियां करते हैं…
तो हुआ यूं कि एक दफ़ा किसी बात पर अच्छे मियां की बेग़म हो गई खफ़ा, बड़ा रोना धोना मचा, खूब चिल्लपों हुई और बेग़म ने अपना बिस्तरा बांध लिया मायके जाने को। पहले तो अच्छे मियां हल्के में लेते रहे, लेकिन जब बेग़म ने पड़ोस के गुड्डन को स्कूटर से बस स्टैंड छोड़ आने को कहा तो अच्छे मियां के पसीने छूट गए। बाक़ी सब तो मियां जी संभाल लेते लेकिन बीवी दो दिन को मैके चली जाए तो उनके खाने पीने की बड़ी दिक़्क़त हो जाती। पड़ोसी कुछ दे भी जाए तो ज़बान को ज़ायका नहीं मिलता। और यहां तो बेग़म नाराज़ होकर जा रही है, मतलब महीने दु महीने की छुट्टी। अच्छे मियां को दिन में तारे नज़र आने लगे…
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अच्छे मियां ने पहले तो बीवी को मनाने की खूब कोशिश की, बड़ा मनुहार किया, हाथ पकड़ चूम भी लिया लेकिन बीवी टस से मस न हुई। इधर गुड्डन बाहर आ तीन बार स्कूटर का हॉर्न बजा चुका था। अब अच्छे मियां की हालत ईद के बकरे सी होने को ही थी कि उन्होंने तुरुप का पत्ता फेंका। अचानक वो बीवी की गोद में गिर फफक फफककर रो पड़े, कुछ बोले नहीं बस रोते गए। मियां जी को रोते देख अच्छी भली नाराज़ बीवी का दिल गली के नल की तरह लीक करने लगा। सब कुछ नज़रंदाज़ कर दे वो लेकिन शौहर के आंसू..उफ़ तौबा। आख़िर बेग़म ने अच्छे मियां का हाथ अपने हाथों में लिया और नरमाई से बोली, ठीक है अबके रूक रही हूं, लेकिन अब जो तुमने बात न मानी मेरी तो फिर हमेशा के लिए चली जाऊंगी…
अच्छे मियां ने बेग़म की आंखों में देखा, धीरे से उठे और बगल में बैठ गए। बीवी उठकर अटैची से कपड़े निकालने लगी। अच्छे मियां की आंखों में आंसू अब भी थे जो बीवी को लगातार पिघला रहे थे। बोली वो, जाओ मुँह धो लो, मैं सामान ख़ाली कर चाय चढ़ाती हूं…
कुछ देर हुई, बेग़म को कोई सुगबुगाहट नहीं मिली तो वो बाहर निकली। अच्छे मियां कहीं नज़र नहीं आए, बेग़म रसोई की ओर बढ़ी, देखती क्या है…
अच्छे मियां इंदौरी नवरतन इसपेसल नमकीन पेल रए हैं लपक के और पेट पकड़े हँसे जा रहे हैं अपने कारनामे पर। नमकीन खाते हुए उनके तसव्वुर में गरमागरम चाय का प्याला है जो बीवी उन्हें थमाने ही वाली है। अपनी खुशी में अच्छे ख़ां कुछ यूं फट पड़े कि उन्हें होश ही नहीं रहा कब बेग़म आई और सारा माजरा ताड़ गई…
आज छह महीने हो गए अच्छे मियां को कुतुबुद्दीन होटल में खाना खाते। इस बीच वो आठेक बार ससुराल जाकर बेग़म को मनाने की बड़ी कोशिशें कर चुके, लेकिन इंदौरी नमकीन ने भिया जो बेड़ा ग़र्क किया, वो कहीं से रफ़ू होता नई दिख रा है…
अच्छे ख़ां आजकल इंदौरी नमकीन से परहेज़ करने लगे हैं, कहते हैं इसे खाते ही जुलाब लग जाता है….