एमपी में आदिवासी सीटों पर BJP को नए चेहरे की तलाश, इन सांसदों के खिलाफ क्षेत्र में नाराजगी

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भोपाल।

विधानसभा चुनाव की करारी बार के बाद बीजेपी में टिकटों को लेकर गहन चिंतन मनन किया जा रहा है।आंध्रप्रदेश और अरुणाचल के उम्मीदवारों को भले ही फायनल कर लिस्ट जारी कर दी हो लेकिन मध्यप्रदेश में अब भी मंथन किया जा रहा है। हालांकि शुक्रवार-शनिवार को हुई अलग अलग नेताओं द्वारा की गई रायशुमारी में कुछ सीटों पर नाम तय कर लिए गए है, लेकिन आदिवासी सीटों पर अब तक नामों पर अंतिम मुहर नही लग पाई है। कांग्रेस के साथ जयस और गोंड़वाना के साथ  मैदान में उतरने से भाजपा की मुश्किलें थोड़ी बढ़ गई है, इन सीटों पर भाजपा ऐसे चेहरों की तलाश कर रही है जो पार्टी को जीत दिला सके।  पार्टी के सर्वे के मुताबिक मंडला सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते से लेकर धार की सावित्री ठाकुर, खरगोन के सुभाष पटेल के खिलाफ क्षेत्र में नाराजगी है।वही रतलाम-झाबुआ, मंडला, धार और खरगोन में विधानसभा चुनाव 2018 में आधे से ज्यादा सीटों पर भाजपा हारी है। शहडोल और बैतूल की दोनों सीटों पर भाजपा और कांग्रेस को चार-चार विधानसभा क्षेत्रों में जीत मिली है। विधानसभा में बदले समीकरण के कारण पार्टी नए सिरे से इन सीटों पर जमावट करने की कोशिश कर रही है, वही पार्टी और संघ के सर्वे में भी इन सांसदों की रिपोर्ट खराब आई है, ऐसे में पार्टी कोई रिस्क लेने के मूड में नही है। चुंकी मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा सीटे अभी बीजेपी के पास है और केन्द्र में मजबूती देने के लिए प्रदेश को मजबूत करना जरुरी है। इसलिए पार्टी फूंक फूकं कर कदम रख रही है। सुत्रों की माने तो संघ से भी इन सीटों पर सुझाव मांगे गए है, हालांकि अंतिम फैसला केन्द्रीय चुनाव समिति को ही करना है। 

इन सीटों पर नए चेहरे की तलाश

रतलाम-झाबुआ लोकसभा सीट

2014 में लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सभी छह सीटों पर विजय हासिल की थी, लेकिन सांसद दिलीप सिंह भूरिया के निधन के बाद हुए उपचुनाव में यह सीट कांग्रेस ने जीत ली। भाजपा ने उपचुनाव में भूरिया की बेटी निर्मला को प्रत्याश्ाी बनाया था। उस समय वे विधायक भी थीं। निर्मला भूरिया 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में हार गईं। अब पार्टी नए प्रत्याशी की तलाश में है। पार्टी यहां से पूर्व ईएनसी और रतलाम ग्रामीण विधायक जीएस डामोर को यहां से प्रत्याशी बना सकती है। डामोर भील जाति के हैं। क्षेत्र में उनकी पकड़ है।

धार लोकसभा सीट

आदिवासी बाहुल्य वाले इस लोकसभा क्षेत्र में विधानसभा चुनाव के दौरान परिणाम भी भाजपा के अनुकूल नहीं आए। विधानसभा चुनाव में बुरी तरह पराजित भाजपा को आठ में से दो पर भाजपा जीती, बाकी छह पर कांग्रेस विजयी रही। इस सीट में जय युवा आदिवासी शक्ति संगठन ‘जयस” का प्रभाव भी एक महत्वपूर्ण फैक्टर है। 2014 में यहां से सावित्री ठाकुर चुनाव जीती थीं, लेकिन मौजूदा सर्वे में इनकी स्थिति जीतने लायक नहीं बताई गई है। पार्टी यहां से मुकाम सिंह मिग्वाल के नाम पर विचार कर रही है। पूर्व विधायक मिगवाल सिविल

खरगोन लोकसभा सीट

भाजपा के कब्जे वाली इस सीट पर भी विधानसभा चुनाव में पार्टी के विधायक हार गए। आठ विधानसभा क्षेत्र वाली इस संसदीय सीट में भाजपा मात्र एक पर चुनाव जीत पाई। यहां कांग्रेस के छह विधायक जीते और एक पर निर्दलीय को जीत मिली। पार्टी द्वारा कराए गए सर्वे में मौजूदा सांसद सुभाष पटेल की रिपोर्ट ठीक नहीं आई है। दूसरी वजह कांग्रेस ने जिले के विधायक बाला बच्चन को मंत्री बना दिया है, जिसके चलते भाजपा के सामने चुनौतियां और भी बढ़ गई हैं।

मंडला लोकसभा सीट

महाकोशल की मंडला संसदीय सीट से सांसद फग्गनसिंह कुलस्ते की राह भी आसान नहीं है। इस बार हुए विधानसभा चुनाव में कुलस्ते के क्षेत्र में छह कांग्रेस विधायक जीते हैं। भाजपा को मात्र दो सीट मिली हैं। भाजपा के सर्वे में भी कुलस्ते को जीतने वाला प्रत्याशी नहीं बताया गया है। पार्टी यहां से प्रत्याशी बदलना चाहती है। वह राज्यसभा सदस्य सम्पतिया उईके को लेकर विचार कर रही है। साथ ही कुलस्ते को लेकर ये तैयारी है कि उन्हें मंडला के बजाए शहडोल से लड़ाया जाए। शहडोल भी मंडला से लगी सीट है।

शहडोल लोकसभा सीट

2014 में हुए लोकसभा चुनाव में दलपत सिंह परस्ते सांसद बने थे। परस्ते के निधन के बाद शहडोल में उपचुनाव हुआ, जिसमें भाजपा से ज्ञानसिंह जीते। ज्ञानसिंह तब मप्र सरकार में कैबिनेट मंत्री हुआ करते थे। कांग्रेस ने उपचुनाव में पूर्व केंद्रीय मंत्री दलबीर सिंह की बेटी हिमाद्री को चुनाव मैदान में उतारा था, लेकिन वे गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के हीरासिंह मरकाम के कारण हार गए। हालांकि विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों को ही चार-चार सीट मिली हैं पर ज्ञानसिंह के खिलाफ एंटीइनकमबेंसी के कारण

बैतूल लोकसभा सीट

बैतूल सीट वैसे तो लंबे समय से भाजपा का गढ़ मानी जाती है। अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित होने से पहले यहां से भाजपा प्रत्याशी चुनाव जीतते रहे हैं पर मौजूदा सांसद ज्योति धुर्वे का जाति प्रमाण पत्र निरस्त कर दिए जाने से इस बार भाजपा की मुश्किलें बढ़ गई हैं। पार्टी यहां से नए चेहरे की तलाश में है। विधानसभा चुनाव के परिणाम भी देखें तो यहां चार-चार से भाजपा व कांग्रेस बराबर रही हैं।


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