भोपाल। विधानसभा चुनाव में हुए नुकसान की भरपाई के लिए मोदी सरकार ने सवर्ण आरक्षण का फैसला लोकसभा चुनाव से कुछ माह पहले ही लिया है| जिससे बीजेपी को उम्मीद है कि इस बार चुनाव में पार्टी को इसका लाभ मिलेगा| क्यूंकि विधानसभा चुनाव से पहले एट्रोसिटी एक्ट को लेकर बने माहौल ने भाजपा को बड़ी चोट पहुंचाई है| भाजपा का मजबूत वोट बैंक इस चुनाव में खिलाफ हो गया, और तीन राज्यों में सत्ता गंवानी पड़ी| वहीं आरक्षित वर्ग को साधने के लिए ‘माई का लाल’ जैसे बयान सु��्खिया बने वो भी हाथ से झटक गया| विधानसभा चुनाव में आरक्षित वर्ग की 82 सीटों में कांग्रेस ने 47 सीटों पर कब्जा कर लिया। भाजपा को 34 सीट ही मिल पाईं। एक बार फिर वही स्तिथि सामने हैं| मप्र में आरक्षित वर्ग की कुल 10 लोकसभा सीटें हैं। जो बाजी पलट सकती हैं|
2014 की मोदी लहर में सभी 10 सीटें भाजपा की झोली में आ गिरी थीं। ऐसा पहली बार हुआ था। हालांकि कुछ समय बाद ही हुए रतलाम- झाबुआ संसदीय क्षेत्र के उपचुनाव में कांग्रेस ने जीत दर्ज कर इसका आंकड़ा कम कर दिया। जिसके बाद विधानसभा चुनाव में आरक्षित वर्ग की 82 सीटों में कांग्रेस ने 47 सीटों पर कब्जा कर लिया। अब यहां कांग्रेस मजबूत है| कभी कांग्रेस के एकाधिकार में रही दसों सीटों पर 2014 में भाजपा का कब्जा था, मप्र के सियासी इतिहास में पहली बार हुआ था। यह और बात है कि भाजपा इसे कायम नहीं रख पाई और जो आदिवासी इलाका भगवा रंग में रंगा जा चुका था, वहां कांग्रेस हावी हो गई। यही सीटें फिर बाजी पलट सकती हैं| मप्र में आरक्षित वर्ग की कुल 10 लोकसभा सीटें हैं। छह अनुसूचित जनजाति (आदिवासी) और चार अनुसूचित जाति की।