भोपाल।
मध्यप्रदेश में पानी की कोई कमी नहीं है, बल्कि उसका सही तरीके प्रबंधन नही होने से पानी का संकट सामने आता है। ऐसे में यह बहुत जरुरी है कि वर्षा जल को रोका जाए, जिससे भू जल स्तर नीचे नहीं जाए। मध्यप्रदेश पहला राज्य होगा, जो पानी के अधिकार को लेकर कानून बनाने जा रहा है। जबर्दस्त बारिश के बाद भी मप्र के 22 जिलों में जल संकट की मार है। मप्र में पहाड़ी नदियों की कोई कमी नही है, इस के बाद भी वर्षा जल रोकने की योजना नहीं होने से बारिश खत्म होते ही नदियां भी सूख जाती हैं। स्टाप डेम इस का समाधान नही है, बल्कि भू संरचना के हिसाब से उपाय करने होंगे जिस से धरती का पेट पानी से भरा रहे। नही तो प्रदेश के एक हिस्से में सूखा और दूसरे हिस्से में बाढ़आती रहेंगी।
पानी पर हर व्यक्ति का अधिकार तय किया जाए
मिंटो हॉल में राइट टू वॉटर कान्फ्रेंस में देशभर के करीब 25 राज्यों के जल विशेषज्ञ और पर्यावरणविद शामिल हुए। इसमें पानी बचाने और सहेजने को लेकर विचार विर्मश किया गया। राष्ट्रीय जल सम्मेलन में विशेषज्ञों के विचार के बाद अगले तीन महीनों में एक ड्राफ्ट तैयार किया जाएगा। जिस में पानी पर हर व्यक्ति का अधिकार तय किया जाएगा। हर व्यक्ति को 55 लीटर प्रतिदिन पानी और एक करोड़ लोगों के घर तक नल से पानी पहुंचाने का लक्ष्य है। 5 हजार करोड़ के कामों के टेंडर इसी महीने जारी होंगे। जिसमें 45-45 प्रतिशत राशि केंद्र औऱ राज्य सरकार वहन करेंगे। बाकी की राशि जनसहयोग से जुटाई जाएगी।