MP Kisan : गर्मियों की प्रमुख फसलों में से ग्रीष्मकालीन मूंग भी एक फसल है जिसकी पैदावार ने किसानों की आय को बढ़ा दिया है, करीब दो महीनों में तैयार हो जाने वाली इस फसल की इन दिनों बुवाई चल रही है, कई बार किसान जल्दी पैदावार लेने के लिए फसल पर कीटनाशक और नीदानाशक (pesticides and insecticides) का अत्यधिक उपयोग करते हैं जो इंसान और पशु पक्षियों के लिए हानिकारक होते हैं, कृषि मंत्री और कृषि वैज्ञानिकों से इससे बचने की सलाह दी है
मध्य प्रदेश के किसान कल्याण एवं कृषि विकास मंत्री एदल सिंह कंषाना ने किसानों से अपील की है कि वे ग्रीष्मकालीन मूंग फसल में कीटनाशक एवं नीदानाशक का उपयोग कम से कम करें। कृषि मंत्री ने बताया कि मूंग फसल में अत्यधिक रासायनिक दवाओं का दुष्प्रभाव मानव स्वास्थ्य, मृदा स्वास्थ्य, जल एवं पर्यावरण पर सामने आया है। ऐसे में वैज्ञानिकों/विशेषज्ञों की ओर से कई तरह की बीमारियां जन्म लेने की आशंका व्यक्त की गई हैं। उन्होंने कहा कि किसान मूंग फसल की पैदावार के लिए ऐसा चक्र अपनाएं, जिससे ग्रीष्मकालीन मूंग प्राकृतिक रूप से अपने समय पर पक सके।

अधिक रासायनिक दवा का उपयोग शरीर के लिए हानिकारक
कृषि मंत्री एदल सिंह कंषाना ने कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग पर कहा कि हालाँकि मूंग की पैदावार से प्रदेश में किसानों की आय में वृद्धि हुई है लेकिन किसान इसे जल्दी पकाने के लिए कई बार नीदानाशक दवा (पेराक्वाट डायक्लोराइड) का छिड़काव करते हैं। इस दवा के अंश मूंग फसल में कई दिनों तक बने रहते हैं, जो मानव स्वास्थ्य एवं पशु-पक्षियों के लिए अत्यंत हानिकारक हैं।
जैविक खेती अच्छे स्वास्थ्य के लिए अच्छा विकल्प
कृषि मंत्री ने बताया कि कृषि एवं स्वास्थ्य विशेषज्ञों, पर्यावरणविद् और कृषि सुधार के क्षेत्र में कार्य कर रहे संगठनों ने अनुसंधान रिपोर्ट के आधार पर मूंग फसल में आवश्यकतानुसार ही कीटनाशकों के उपयोग का सुझाव दिया है। राज्य सरकार जैविक खेती को विभिन्न योजनाओं के माध्यम से प्रोत्साहित कर रही है एवं किसानों को जैविक खेती के लिए प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है।
14.39 लाख हेक्टेयर में उगाई जा रही है ग्रीष्मकालीन मूंग फसल
कृषि विभाग के मुताबिक प्रदेश के नर्मदापुरम, हरदा, सीहोर, नरसिंहपुर, बैतूल, जबलपुर, विदिशा, देवास और रायसेन में सहित कई जिलों में ग्रीष्मकालीन मूंग किसानों के लिए तीसरी फसल का अच्छा विकल्प बन चुकी है। वर्तमान में मूंग की फसल 14.39 लाख हेक्टेयर रकबे में लगाई जा रही है और इसका उत्पादन 20.29 लाख मीट्रिक टन है। प्रदेश में ग्रीष्मकालीन मूंग का औसत उत्पादन 1410 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है।