भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। इस्लामिक कैलेंडर (Islamic calendar) के पहले महीने को मुहर्रम (Muharram) कहा जाता है। इस्लाम धर्म के नए साल की शुरुआत मोहर्रम महीने से होती है, इसे हिजरी भी कहा जाता है। इस्लाम धर्म में इस माह को काफी पाक माना गया है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस्लामिक महीना मुहर्रम 10 अगस्त से शुरू हो चुका है। बता दें मुहर्रम महीने के शुरुआती दस दिनों को आशूरा कहा जाता है। अशूरा के दिन को यैमे आशूरा भी कहा जाता है। इस दिन सभी मुस्लमानों खासकर शिया मुस्लिम के लिये ये पर्व खास होता है। आशूरा करबला में इमाम हुसैन की शहादत की याद में मनाया जाता है। इस साल मुहर्रम का पर्व आज यानी 19 अगस्त को मनाया जा रहा है। जानें आखिर क्यों मनाया जाता है मुहर्रम, क्या हैं इसके पीछे का इतिहास और कहानी। जानिए इस दिन से जुड़ी खास बातें।
ये भी देखें- Transfer: MP में सरकार ने बढ़ाई तबादलों की अवधि, अब इस दिन तक होंगे ट्रांसफर
मुहर्रम क्यों मनाया जाता है?
इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार, हजरत इमाम हुसैन पैगंबर मोहम्मद साहब के नवासे थे। उन्होंने इस्लाम और मानवता को बचाने के लिए कर्बला की जंग में अपने प्राणों की कुर्बानी दी थी। गौरतलब है कि कर्बला की जंग हजरत इमाम हुसैन और बादशाह यजीद की सेना के बीच हुई थी। इस जंग के दसवें दिन इस्लाम की हिफाजत के लिए हजरत इमाम हुसैन ने अपनी जान कुर्बान कर दी थी। बताया जाता है कि इमाम हुसैन अपने परिवार की हिफाजत के लिये मदीना से इराक के तरफ जा रहे थे, तभी यजीद की सेना ने उनपर हमला किया। उनसे लड़ने के लिये इमाम हुसैन और उनके साथियों ने सेना से डटकर सामना किया। ये लड़ाई कई दिनों तक चलीजिसमें उनके साथी एक-एक कर कुर्बान हो गये थे। वहीं इमाम हुसैन आखिरी तक लड़ते रहे और मुहर्रम के के जसवें दिन जब वो नमाज़ पढ़ अदा कर रहे थे, तब दुश्मनों ने उन्हें मार दिया।
ये भी देखें- VIDEO: आपस में भिड़े इंडिगो एयरलाइंस के कर्मचारी-BJP कार्यकर्ता, चले लात घूंसे, भारी पुलिस बल
कैसे मनाते हैं मुहर्रम
इस्लाम धर्म के मानने वालों के लिए मुहर्रम का दसवां दिन बहुत मायने रखता है। हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद में शिया मुसलमान मुहर्रम के दिन ताजिया निकालते हैं। ये ताजिया इमाम हुसैन के साथ मारे गए साथियों की शहीदी का प्रतीक मानी जाती हैं। इमाम हुसैन के बलिदान को याद करने का सिलसिला मुहर्रम की पहली रात से ही शुरू हो जाता है और ये अगले दो महीने आठ दिन तक चलता है। अकीदतमंद इस ताजिया के साथ जुलूस निकालते हैं और फिर प्रतीकात्मक रूप से इसे दफना दिया जाता है।
क्या है मुहर्रम का संदेश
लड़ाई का अंत हमेश तकलीफदेह होता है इसलिये मुहर्रम पर शहादत दी जाती है जो ये शहादत का त्योहार अमन और शांति का पैगाम देता है। मुहर्रम का पर्व ये संदेश देता है कि धर्म और सत्य के लिये कभी घुटने नहीं टेकने चाहिए, बल्कि उसका डटकर सामना करना चाहिए।