भोपाल। देश के छठे और प्रदेश के तीसरे चरण का चुनाव प्रचार शुक्रवार शाम छह बजे थम गया। 12 मई रविवार को एमपी में तीसरे चरण की वोटिंग होना है। इस दौरान एमपी की मध्यप्रदेश मुरैना, भिंड, गुना, विदिशा, राजगढ़, सागर, ग्वालियर, भोपाल सीट पर वोट डाले जाएंगे| प्रचार-प्रसार का सिलसिला थमते ही प्रत्याशी डोर-टू-डोर कैंपेनिंग कर सकेंगे। आखिरी दौर में दिग्गज नेताओं ने ढेरों सभाएं कर पूरी ताकत झोंकी| अब मतदाता प्रत्याशियों का भवीष्य तय करेगा|
तीसरे चरण की वोटिंग में कई सीटों पर मुकाबला दिलचस्प होने वाला है। मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच है। हालांकि यूपी से सटी सीटों पर बसपा का प्रभाव देखने को मिल सकता है। इस बार के चुनाव में दिग्विजय सिंह, प्रज्ञा ठाकुर, ज्योतिरादित्य सिंधिया, केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर, जैसे दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर है।। इस लोकसभा चुनाव में देश की सबसे चर्चित भोपाल संसदीय क्षेत्र के लिए भी मतदान होगा। यहां से कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और भाजपा की मालेगांव बम धमाकों की आरोपी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर मैदान में हैं। 12 मई को छठवें चरण में आठ संसदीय क्षेत्रों मुरैना, भिंड, ग्वालियर, गुना, सागर, विदिशा, भोपाल और राजगढ़ में मतदान होना है। 2014 में भारतीय जनता पार्टी ने छठे चरण में 8 में से 7 सीटों पर अपना कब्जा जमाया था। कांग्रेस को यहां से सिर्फ एक सीट गुना-शिवपुरी पर जीत मिली थी। प्रदेश में पहले चरण में 29 अप्रैल को छह सीटों पर 74.82 प्रतिशत मतदान हुआ था। दूसरे चरण में 6 मई को सात सीटों पर 69.02 प्रतिशत मतदान हुआ था। 12 मई को तीसरे और 18 मई को आखिरी चरण में आठ-आठ सीटों पर मतदान होगा।
इन सीटों पर इन दिग्गजों की साख दांव पर
भोपाल लोकसभा सीट
यह एमपी की सबसे हाईप्रोफाइल सीट है। कांग्रेस की तरफ पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय को प्रत्याशी और बीजेपी की तरफ से साध्वी प्रज्ञा को उम्मीदवार बनाए जाने के बाद देशभऱ की निगाहें इस सीट पर आ टिकी है।अंतिम दौर में जहां साध्वी राष्ट्रवाद की लहर पर सवार होकर जनता के बीच पहुंच रही हैं तो वहीं दिग्विजय सिंह विकास के मुद्दोंं को लेकर जनता के बीच पहुंच रहे हैं। विधानसभा चुनाव में भोपाल लोकसभी संसदीय क्षेत्र की आठ विधानसभाओं में मिले वोटों के मुताबिक कांग्रेस बीजेपी से सिर्फ 60 हजार वोट पीछे है। पार्टी ये अंतर पाटने के लिए पूरा जोर लगाए है। वहीं, जनसंपर्क मंत्री पीसी शर्मा और मंत्री आरिफ अकील की साख यहां दांव पर लगी है। यह दोनोंं ही भोपाल से आते हैं।ऐसे में भाजपा की मुश्किलें बढ़ती जा रही है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक अब प्रचार सहित सारी रणनीति का काम संघ नेताओं ने अपने हाथों में लिया है। भाजपा प्रत्याशी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को राजनीतिक अनुभव न होने से भी कई दिक्कतें आ रही हैं। पार्टी नेताओं की मानें तो साध्वी को कई महत्वहीन लोगों ने घेर रखा है, जिस कारण पार्टी कार्यकर्ता परेशान हैं। वे बार-बार भाजपा के लोगों पर अविश्वास जता देते हैं।
गुना लोकसभा सीट
गुना सीट से इस बार फिर ज्योतिरादित्य सिंधिया मैदान में हैं। सिंधिया पर कांग्रेस ने दोहरी जिम्मेदारी सौंपी है। उनको यूपी का भी दायित्व सौंपा गया है। जिसकी वजह से वह अपने क्षेत्र के अलावा यूपी की कमान भी संभाल रहे हैं। गुना में सिंधिया की पत्नी प्रियदर्शनी राजे भी चुनावी मोर्चा संभाला हुए हैं। वह गांव गांव जाकर फीडबैक ले रही हैं इसके अलावा जनता से लगातार रूबरू हो रही है। वह सिंधिया के लिए जनता से वोट की अपील कर रही हैं। बीजेपी ने यहां से केपी यादव को मैदान में उतारा है। सिंधिया समर्थकों का कहना है कि वह इस बार पिछले चुनाव के मुकाबले और बड़े अंतर से जीत हासिल करेंगे। प्रचार के अंतिम दिन भी सिंधिया तबाड़तोड़ सभाएं करने वाले है। वही प्रियदर्शनी भी ज्यादा से ज्यादा लोगों के बीच पहुंचने की कोशिश मे लगी हुई है।
राजगढ लोकसभा सीट
राजगढ़ में प्रत्याशी रोडमल नागर को विरोध के बाद भी टिकट दिया था, लेकिन अब हालात ये हैं कि चाचौड़ा और राघौगढ़ जैसी सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशी की स्थिति को भाजपा चुनौती नहीं दे पा रही है। कांग्रेस सरकार के मंत्री जयवर्धन सिंह और प्रियवृत सिंह के अलावा पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के छोटे भाई लक्ष्मण सिंह ने राजगढ़ सीट पर मोर्चा संभाला हुआ है। कांग्रेस की घेराबंदी को तोड़ने के लिए भाजपा पूरा जोर लगा रही है।हालांकि भाजपा से पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज मोर्चा संभाले हुए है , ऐसे में यह मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी नही बल्कि दिग्विजय औऱ शिवराज े बीच हो गया है, चुंकी राजगढ़ दिग्विजय का गढ़ है और वे खुद यहां से सांसद रह चुके है, इसी के चलते उनकी समर्थक मोना सुस्तानी को यहां से उम्मीदवार बनाया गया है।
ग्वालियर लोकसभा सीट
ग्वालियर सीट भी इस बार चर्चा का विषय बनी है। यहां से केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर वर्तमान सांसद हैं लेकिन वह मुरैना से चुनाव लड़ रहे हैं। उनकी जगह संघ के करीबी और महापौर शेजवलकर को टिकट दिया गया है। उनके सामने कांग्रेस ने अशोक सिंह को मैदान में उतारा है। मज़े की बात यह भी है कि अशोक सिंह पिछले चुनाव लगातार हारते रहे हैं। अगर वह इसबार भी हारे तो उनकी राजनीति संकट में पड़ सकती है। ग्वालियर सीट से इस बार कांग्रेस को कफी लाभ मिला है। यहां से खाद मंत्री प्रदुमर सिंह तोमर और महिला बाल विकास मंत्री इमरती देवी आती है। ये दोनों ही सिंधिया के खास हैं। ग्वालियर सीट पर महल का भी काफी प्रभाव रहता है। इसलिए इन मंत्रियों की भी साख यहां दाव पर लगी है। अशोक सिंह ग्रमाीण क्षेत्र में काफी मज़बूत माने जा रहे हैं जबकि शेजवलकर शहरी इलाके में पकड़ रखते हैं। पार्टी नेताओं का माना है कि कहीं न कहीं प्रत्याशियों के उचित चयन न होने से इन सीटों पर भाजपा के समीकरण उलझ गए हैं।
विदिशा लोकसभा सीट
सुषमा स्वराज के चुनाव न लड़ने के बाद मध्य प्रदेश की विदिशा लोकसभा सीट सभी की नजरों में है। यहां से भाजपा ने रमाकांत भार्गव को पार्टी का प्रत्याशी बनाया है। सुषमा के रहने और अब सीट छोड़ने के बाद भी यह सीट हाई प्रोफाइल बनी हुई है। भाजपा को मिले फीडबैक की मानें तो विदिशा में भाजपा प्रत्याशी रमाकांत भार्गव की स्थिति कमजोर तो नहीं, लेकिन बहुत मजबूत भी नहीं है। कार्यकर्ताओं में उत्साह न होने से पूरे लोकसभा क्षेत्र में वैसा माहौल नहीं बन पा रहा है, जैसा पहले के चुनावों में रहा है। वहीं कांग्रेस प्रत्याशी शैलेंद्र पटेल के साथ कांग्रेस ने पूरी ताकत झोंकी हुई है।
भिंड लोकसभा सीट
लंबे इंतजार के बाद भिंड-दतिया लोकसभा सीट पर कांग्रेस ने देवाशीष जरारिया को प्रत्याशी घोषित कर चुनाव मैदान में उतार दिया है। इस सीट पर कांग्रेस ने देवाशीष के रूप में सबसे कम उम्र के उम्मीदवार पर दांव लगाया है। देवाशीष इस सीट पर नया चेहरा हैं। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि कांग्रेस ने इस सीट पर नया चेहरा दिया हाे। वही बीजेपी ने यहां से संध्या राय को मैदान में उतारा है। संध्या आकर्षित चेहरा और मिलनसार व्यक्तित्व की है, लेकिन बाहरी प्रत्याशी होना कही ना कही खतरे की घंटी बजा रहा है। संध्या के लिए स्थानीय नेताओं का विरोध चुनौती बना हुआ है, हालांकि बीजेपी आखरी मौके तक डैमेज कंट्रोल में जुटी है।
सागर लोकसभा सीट
बीजेपी ने यहां से राजबहादुर सिंह और कांग्रेस के प्रभु सिंह ठाकुर को उम्मीदवार बनाया है। इस सीट पर पिछले 6 चुनावों से बीजेपी का ही कब्जा है। कांग्रेस को आखिरी बार इस सीट पर जीत 1991 में मिली थी।राजबहादुर सिंह ठाकुर वर्तमान मे सागर नगर निगम के अध्यक्ष हैं, उन्होंने पार्षद से राजनीति शुरु की थी और लगातार तीन बार से पार्षद है, हालांकि वे एक नए चेहरे हैं और सक्रिय राजनीति से दूर रहे हैं दिलचस्प बात यह है कि वे बीजेपी नेता और पूर्व गृहमंत्री भूपेंद्र सिंह के भांजे दामाद हैं। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस ने प्रभु सिंह ठाकुर को अपना उम्मीदवार बनाया है। वे बीना विधानसभा के ग्राम धनोरा निवासी हैं। इन्होंने अपना राजनैतिक सफर जनपद अध्यक्ष बीना से शुरू किया था। 1990 में उन्होंने सुधाकर बापट के सामने बीना से विधानसभा चुनाव लडा जिसमे पराजय हाथ लगी थी।कांग्रेस ने 1993में इन्हें फिर से मौका दिया जिसमें वे सुधाकर बापट को हराकर विधायक बने। वे दिग्विजय सरकार में पंचायत ग्रामीण विकास राज्यमंत्री भी थे।
मुरैना लोकसभा सीट
उत्तर प्रदेश और राजस्थान की सीमा से लगा मध्य प्रदेश का मुरैना संसदीय क्षेत्र भाजपा का गढ़ माना जाता है। 2014 में हुए लोकसभा चुनाव को मिलाकर यहां 13 चुनाव हो चुके हैं। जिसमें से सात बार भाजपा, दो बार कांग्रेस, एक-एक बार जनसंध, भारतीय लोकदल तो एक बार निर्दलीय चुनाव जीत चुके हैं। उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे होने के कारण इस क्षेत्र में बसपा का भी बड़ा प्रभाव है। हर जगह के अलग मुद्दे और अपने जातिगत समीकरण हैं। 1996, 1999 और 2014 में यहां बसपा प्रत्याशी दूसरे स्थान पर रहा। इस समय भाजपा के अनूप मिश्रा यहां से सांसद हैं। लेकिन इस बार यहां कांटे की टक्कर है। एक ओर भाजपा नेता व केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का सियासी कॅरियर दांव पर है तो दूरी ओर कांग्रेस के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष रामनिवास रावत हैं जो कांग्रेस लहर के बावजूद 4 महीने पहले विधानसभा चुनाव अपने ही मजबूत गढ़ में हार चुके हैं। तीसरे प्रत्याशी बसपा के करतार सिंह भडाना (गुर्जर) हैं। तोमर और रावत 2009 के लोकसभा चुनाव में भी आमने-सामने थे और अब एक बार फिर वे आमने सामने है। यहां की 8 विधानसभा सीटों में से 7 पर कांग्रेस का कब्जा है। जबकि भाजपा के खाते में सिर्फ एक सीट है।