भोपाल। लोकसभा चुनाव कई नेताओं का राजनीतिक भविष्य तय करने वाला है। खासकर कांग्रेस में ऐसे नेताओं केा लोकसभा चुनाव लड़ाने की तैयारी है, जो तीन महीने पहले विधानसभा चुनाव हार चुके हैं। ये नेता लोकसभा चुनाव में फिर से दावेदारी कर रहे हैं। क्योंकि ये न तो सरकार में एडजस्ट हो सकते हैं और न ही संगठन में जिम्मेदारी उठा रहे हैं।
कांग्रेस मुरैना से रामनिवास रावत को प्रत्याशी बना सकती है। हालांकि अभी तक कांग्रेस ने मुरैना सीट से अपने प्रत्याशी का ऐलान नहीं किया है। रामनिवास यहां से दावेदारी कर रहे हैं। वे 2009 का लोकसभा चुनाव भाजपा के नरेन्द्र सिंह तोमर से हार चुके हैं। इस बार तोमर फिर मुरैना से चुनाव मैदान में है। तब रावत एक बार फिर उनके सामने उतरने जा रहे हैं।
इसी तरह सतना सीट से राजेंद्र सिंह की दोवदारी है। वे विधानसभा के उपाध्यक्ष रह चुके हैं, लेकिन पिछला विधानसभा चुनाव अपनी पंरपरागत सीट से हार चुके हैं। वहीं पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह सीधी से लोकसभा चुनाव की दावेदारी कर रहे है। वे पिछला विधानसभा चुनाव अपनी पंरपरागत सीट चुहरट से हार गए। सिंह की हार को उनकी प्रतिष्ठा से जोड़कर देखा जा रहा है। हालांकि लोकसभा चुनाव में उन्हें सीधी से प्रत्याशी बनाया जा रहा है। खंडवा से अरुण यादव की दावेदारी चल रही है। संभवत: अगली सूची में इन सभी दावेदारों का नाम भी तय हो जाएगा। ग्वालियर से अशोक सिंह फिर मैदान में हो सकते हैं। हालांकि वे पिछले दो चुनाव हार चुके हैं।
कांग्रेस के पास नहीं है विकल्प
विधानसभा चुनाव हारने वाले इन नेताओं को लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी बनाया कांग्रेस की मजबूरी है। क्योंकि कांग्रेस के पास इन सीटों पर इन नेताओं को प्रत्याशी बनाने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं है, जो भाजपा को टक्कर दे सकें। लोकसभा चुनाव 2009 में मंदसौर से मीनाक्षी नटराजन, धार से गजेंद्र सिंह राजूखेड़ी जीत गए थे, लेकिन अब पार्टी को दोनों सीट पर उनसे ज्यादा मजबूत प्रत्याशी नहीं दिखाई दे रहा है। अगर वे यह चुनाव हारते हैं तो पार्टी उनके विकल्प को तलाशना शुरू करेगी। सतना से दावेदारी कर पूर्व विधानसभा अध्यक्ष राजेंद्र सिंह को भी संगठन की तरफ से सीट पर जीत की शर्त लगाई गई है और अगर वे हारते हैं तो उन्हें भी संगठन या सरकार में वैकल्पिक स्थान मिलने की संभावना कम हो जाएगी। पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी को एक लोकसभा और करीब डेढ़ दशक बाद लगातार दो विधानसभा चुनाव हारने के कारण संगठन ने होशंगाबाद में उनके नाम की चर्चा के बाद भी ध्यान नहीं दिया।
ये नेता हार चुके हैं चुनाव
2008 और 2013 में सदन में कांग्रेस विधायक दल के नेता रहे। मगर 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्हें एक फीसदी वोट के अंतर से हार मिली और 2018 विस चुनाव में भी वे हार गए। अब पार्टी उन्हें सीधी से लोकसभा चुनाव मैदान में उतारना चाहती है। सिंह सतना से टिकट चाह रहे हैं, क्योंकि सीधी में भितरघात की संभावनाएं दिखाई दे रही हैं। वहीं पूर्व केंद्रीय मंत्री और प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष हैं। वे 2013 के विधानसभा चुनाव के बाद पचौरी के स्थान पर प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए मगर 2014 के लोकसभा चुनाव में हार गए। हाल ही में वे शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ बुदनी से विस चुनाव हारे हैं। साढ़े चार साल प्रदेश कांग्रेस चलाने और ओबीसी का वर्ग को साधने के लिए उन्हें टिकट मिलेगा। हार से उन्हें नुकसान होगा।
हारे तो कमजोर होंगे रामनिवास
रावत 2009 लोकसभा चुनाव में नरेंद्र सिंह तोमर से एक लाख से ज्यादा मतों से हारे थे। 2013 में विधानसभा चुनाव जीते, लेकिन तीन महीने पहले वे हार गए जबकि ओबीसी वोट साधने के लिए उन्हें कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था। विधानसभा और लोकसभा चुनाव में हार से पार्टी में कमजोर स्थिति होगी। यह चुनाव उनके राजनीतिक भविष्य को तय करेगा।