प्रकृति प्रेमी और भावुक हृदय व्यक्तित्व के धनी थे संजीव कुमार : अशोक मनवानी

Pooja Khodani
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भोपाल, डेस्क रिपोर्ट।मध्य प्रदेश के सेवानिवृत्त स्पेशल डीजी तथा भोपाल के पूर्व एसपी संजीव कुमार सिंह (Rtd. IPS Sanjeev Kumar Singh) के निधन पर जनसंपर्क अधिकारी अशोक मनवानी (Public Relations Officer Ashok Manwani) ने भावुक पोस्ट लिखा है। इस पोस्ट में मनवानी ने अपने साथ बिताए कई सुनहरे पलों और मीठी यादों का जिक्र किया है।

मनवानी लिखते है कि सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी, संवेदनशील इंसान, प्रकृति प्रेमी, सहृदय व्यक्तित्व संजीव कुमार सिंह साहब का असमय चला जाना बहुत दुखद है । मैं उनके साथ रायसेन जिले में साथ रहा। तब वे स्पिक मैके के राज्य पदाधिकारी भी बने। यह संस्था युवाओं में भारतीय शास्त्रीय संगीत और कलाओं के प्रति रुचि जगाने का कार्य करती है। संजीव सिंह जी मैनिट, भोपाल के युवा विद्यार्थियों के साथ कार्यक्रमों के पहले तैयारी बैठकों में हिस्सा लेते थे। उन्होंने मुझे भी इस संस्था में जिम्मेदारी दी थी। भारत भवन में आने वाले देश के प्रख्यात आर्टिस्ट रायसेन आकर प्रस्तुति दें ये उनका मौलिक आयडिया था।

मनवानी लिखते है कि पुलिस लाइन ग्राउंड पर आर्टिस्ट कार्यक्रम पेश कर जाते थे। प्रशासन से समुचित मानदेय भी उन्हें संजीव सर दिलवाते थे। संजीव सर जिले में पुलिस अफसर के साथ साथ अघोषित रूप से संस्कृति अधिकारी की भूमिका निभाते थे। महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में कुछ कार्यक्रम याद आते हैं। रायसेन में मुनव्वर मासूम ,मुंबई द्वारा मंडी सभागृह में पेश कव्वाली कार्यक्रम ,सिक्किल सिस्टर्स (शास्त्रीय गायिका ) का ओपन स्टेज गायन कार्यक्रम, गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी साहब का रायसेन कान्वेंट स्कूल में कार्यक्रम, बुंदेली लोक गायक जगन्नाथ प्रजापति का बुंदेली में ढोला मारू गायन परेड ग्राउंड,बस स्टैंड मैदान में हुआ था।

अनेक ऐसे अवसर याद आते हैं जो संजीव सिंह जी की लीडरशिप की स्मृति दिलाते हैं।साक्षरता अभियान को पूरा समर्थन दिया। उन्होंने न्यू ईयर आगमन पर जिला अधिकारियों के साथ कार्यक्रम में जो आत्मीयता प्रदर्शित की ,यादगार रहेगी।यही नहीं होली, रंग पंचमी जैसे त्योहारों पर वे शानदार कार्यक्रमों के आयोजन के सूत्रधार होते थे।

वे लिखते है कि संजीव सर की तीन साल की बिटिया पीहू ओबेदुल्लागंज के पास देलावाड़ी रेस्ट हाउस परिसर में किसी जहरीले जंतु के काटने से असमय चल बसी थी । उस असीम वेदना को संजीव सर ने सहते हुए तब जिले में अपनी कानून व्यवस्था की ड्यूटी को बखूबी निभाया था। मुझे स्मरण है वर्ष 1993 में सीहोर जिले के शाहगंज में नर्मदा घाट पर उनकी नहीं बिटिया को विदाई दी गई थी। उनके साथ भोपाल , रायसेन और होशंगाबाद के पुलिस बल के अलावा सैकड़ों ऐसे मित्र दुख की घड़ी में साथ रहे जिन्होंने उन्हें संबल दिया था। अब उनकी बिदाई पर करीब सौ दो सौ लोग फेस बुक पर पोस्ट लिख चुके हैं।जन जन में प्रिय थे।यह सम्मान करोड़ों में किसी को मिलता है। भोपाल एसपी रहते हुए उनके द्वारा किए गए कार्यों को आज भी याद किया जाता है।

उन्होंने बताया कि दिल्ली हो अथवा मध्य प्रदेश अपनी हर पदस्थापना को जीवंत ढंग से सार्थक बनाने वाले संजीव सिंह जी के अंदर एक आर्टिस्ट था।साथ ही एक अच्छा पाठक और एक लेखक भी छिपा हुआ था। उनके ड्राइंग रूम में सेंटर टेबल पर ऐसी पुस्तक रखी होती थी जिसे वे एक हफ्ते के अंदर पढ़कर पूरा करते थे और मित्रों से उन पुस्तकों की चर्चा भी किया करते थे। देहरादून के वनांचल में उन्होंने वाइल्डलाइफ को बहुत करीब से देखा था जिसका पूरा एक एल्बम उन्होंने मुझे दिखाया था। वे बहुत अच्छे छाया चित्रकार भी थे।रायसेन जिले में नर्मदा किनारे की जैव विविधता का अध्ययन भी किया। प्रतापगढ़ जेथरी साढ़े बारह गांव अंचल का भ्रमण करते थे।

जनसंपर्क विभाग के सूचना शिविर में किसी अन्य को न भेजकर खुद शामिल होते थे।ग्रामीणों से सीधा संवाद करते थे।उनकी बॉडी लैंग्वेज का शायद कमाल था कि जहां पदस्थ रहते थे,अपराध नियंत्रित हो जाया करते थे ।वो वाक्य याद आता है जब मेरे साथ पत्रकार राजकिशोर सोनी स्कूटर से रायसेन से शाहगंज सौ किलोमीटर दूर उस स्थान पर पहुंचे थे,जहां संजीव सर की बिटिया का अंतिम संस्कार होना था। संजीव सर की को बिटिया पीहू मेरे बेटे रमित के साथ ही संत फ्रांसिस स्कूल में पढ़ती थी। प्री नर्सरी में।वो ओबेदुल्लागंज के पास जब आखिरी सांस ले रही थी।

संजीव सर जैसे भावुक हृदय व्यक्ति ने कैसे सीने पे चट्टान रखी थी, मैं साक्षी हूं उस दुख भरे दौर का…नर्मदा किनारे बिटिया को बिदा करते संजीव सर का चेहरा याद आता है, उनके जीवन में ये बहुत बड़ा दुख आना था,सभी को स्नेह दिया उन्होंने और सबसे स्नेह मिला भी उन्हें…अब स्मृतियां शेष हैं. रायसेन जैसे नगर संवेदनशील माने जाते थे।जब संजीव सर एस पी थे, रायसेन में तो सांस्कृतिक कार्यक्रमों की बहार आ गई थी ।जिन दो तीन सालों में मैं उनके साथ जनसंपर्क अधिकारी रहा , स्पिक मैके के कई कार्यक्रम करवाए ।उनके साथ संस्था का पदाधिकारी रहा। कार्यक्रम संचालन मुझे उन्होंने ही सिखाया।उनका मानना था किसी नगर ,कस्बे में संस्कृति के पहुंचने से अपराध दर में तेजी से कमी आती है इसे आजमा कर देखा हमने। बात सही थी।

रस्सा खेंच स्पर्धा तो आए दिन पुलिस ग्राउंड पर होती रहती थी रायसेन में…बहुत यादें हैं संजीव सर के साथ…
वे न सिर्फ एक श्रेष्ठ एस पी थे,बेहतरीन अधिकारी थे बल्कि भावुक हृदय,तीक्ष्ण बुद्धि,सुसंस्कृत परिवेश में रहे समझदार इंसान थे,सभी का दिल जीतने वाले व्यक्तित्व थे।व्यक्ति के दिवंगत होने पर कालोनियों और नगरों के नाम उनके नाम पर रखे जाते हैं ।श्री संजीव कुमार सिंह के प्रति आमजन का स्नेह है कि उनके जीते जी एयरपोर्ट रोड की कॉलोनी का नाम संजीव नगर रखा गया निश्चित ही वे बिरले व्यक्तित्व के धनी थे।


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खबर वह होती है जिसे कोई दबाना चाहता है। बाकी सब विज्ञापन है। मकसद तय करना दम की बात है। मायने यह रखता है कि हम क्या छापते हैं और क्या नहीं छापते। "कलम भी हूँ और कलमकार भी हूँ। खबरों के छपने का आधार भी हूँ।। मैं इस व्यवस्था की भागीदार भी हूँ। इसे बदलने की एक तलबगार भी हूँ।। दिवानी ही नहीं हूँ, दिमागदार भी हूँ। झूठे पर प्रहार, सच्चे की यार भी हूं।।" (पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर)

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