भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। लगे तो कैसे लगे , उसके कद का अंदाजा कोई। आसमाँ है पर , सर झुका कर चलता है..
मशहूर कवि शिवओम अम्बर ने जब अपनी कविता के इस अंश की जब रचना की होगी तो जरूर उनके जेहन में डॉ. नरोत्तम मिश्रा जैसे किसी व्यक्तित्व का ही चेहरा सामने होगा। कहते हैं कि जब कोई व्यक्ति शिखर पर पहुंच जाएं तो उस शिखर को मत देखो उन सीढ़ियों को देखो , समझो और जीवन में आत्मसात करों जिन सीढ़ियों ने उसे शिखर तक पहुंचाया है। बात सही भी है इसलिए आज हम भाजपा के कद्दावर नेता , प्रखर वक्ता , सरकार के संकट मोचन कहे जाने वाले प्रदेश के गृह , जेल, विधि-विधायी व संसदीय कार्य मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा के जन्म दिवस यानी 15 अप्रैल को उनके कद व करिश्माई प्रभाव की बात नहीं करते हुए उन सीढ़ियों की बात करेंगे , जिन सीढ़ियों से होकर वह इस शिखर तक पहुंचे हैं। इसका कारण भी है। राजनेताओं के जन्मदिन पर अक्सर उनके प्रभाव व पराक्रम का ही इतना महिमामंडन कर दिया जाता है कि उस पर लिखी बात अधूरी ही रह जाती है।लोग समझ ही नहीं पाते कि वह व्यक्तित्व उस शिखर तक पहुंचा कैसे? उसके वहाँ तक पहुँचने के पीछे जो कारण समझ में नहीं आता है और यही कारण है कि वह सब बातें मानस को प्रभावित तो करती है पर उनके जीवन को दिशा या सीख नहीं दे पाती है। इसलिए आज हम डॉ. नरोत्तम मिश्रा के जन्मदिन पर विस्तार से बात करेंगे , उनके शिखर तक पहुँचने के उन अनछुए पहलुओं की जिन्होंने उन्हें “नारू भाई” से डॉ. नरोत्तम मिश्रा और डॉ. नरोत्तम मिश्रा से सभी आम-ओ- खास का “दादा यानी बड़े भाई” के साथ देश की और प्रदेश की राजनीति का चमकीला सितारा बना दिया।
नरोत्तम मिश्रा का जीवन कोई रहस्य नहीं है। उनके नजदीकी सब जानते है कि वह कौन सी सीढ़ियां हैं , जिन्होंने उन्हें आज राजनीति का चमकता सितारा बना दिया। जिन सीढ़ियों पर चढ़कर वह यहाँ तक पहुंचे हैं , वह कुल चार सीढ़ियां हैं।आज हम इन्हीं चार सीढ़ियों की बात करेंगे।
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पहली सीढ़ी है सेवा की , दूसरी सीढ़ी है समर्पण की , तीसरी है संयम की और चौथी एवं सबसे महत्वपूर्ण सीढ़ी है अनुशासन की। यहीं वह चार सीढ़िया है जिन्होंने डॉ. मिश्रा को आज प्रदेश के नहीं देश के राजनेताओं में एक बड़ा नाम बना दिया है।यह चारों सीढ़िया या गुण सभी को सफलता दिला सकते है।
लेकिन सच यह भी है कि इन पथरीली सीढ़ियों पर चढ़ना मजबूत से मजबूत व्यक्ति के लिए भी असंभव नहीं तो कठिन जरूर है।
खैर पहले बात करते है संक्षिप्त में दादा भाई यानी डॉ. नरोत्तम मिश्रा के जीवन वृतांत की। फिर विस्तार से उन सीढ़ियों की बात करेंगे जिस पर चढ़कर नरोत्तम जी आज इस शिखर तक पहुंचे है। डॉ. नरोत्तम मिश्रा का जन्म 15 अप्रैल 1960 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले में हुआ था। स्व. डॉ. शिवदत्त शर्मा के पुत्र डॉ. नरोत्तम मिश्रा बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि और आकर्षित करने की कला के धनी थे। स्कूली शिक्षा के बाद उन्होंने 1977-78 से जीवाजी विश्वविद्यालय ग्वालियर में छात्र राजनीति से अपनी राजनीति की शुरआत की। शुरू से ही भाजपा की विचारधारा ने उन्हें प्रभावित किया इसलिए वह उससे जुड़ गए। वह भाजपा संघठन में कई पदों पर रहे । उनका परिश्रम व सेवा भाव देख पार्टी ने उन्हें 1990 में विधायक का टिकट दिया। वह पहली बार में ही विधानसभा पहुँच गए। उसके बाद से आज तक लगभग 32 सालों से वह लगातार विधायक हैं। पांच बार के मंत्री भी है।वर्तमान में प्रदेश सरकार में उनको गृह,जेल , विधि व संसदीय कार्य जैसे महत्वपूर्ण विभाग कुशलता पूर्वक संभाल रहे है।
डॉ.नरोत्तम मिश्रा के जीवन और राजनीतिक क्षेत्र में अब हम बात उन सीढ़ियों की करेंगे जिस पर चढ़कर डॉ.मिश्रा आज शिखर तक पहुंचे हैं। सबसे पहले बात करते हैं सेवा और समर्पण की। दरअसल दोनों ही क्षेत्र एक दूसरे के पूरक है इसलिए दोनों को जोड़कर ही हम बात कर सकते हैं। जब तक हमारे मन में देश. समाज व वंचितों के प्रति समर्पण का भाव नहीं होगा तब तक हम उनकी सेवा के लिए परिश्रम की पराकाष्ठा नहीं कर सकते है। डॉ. मिश्रा में सेवा और समर्पण का भाव कूट-कूट कर भरा हैं। दूसरों के दर्द में दुखी होने और दूसरों की खुशी में खुशी तलाशने वाले डॉ.मिश्रा सभी की सहायता के लिए तैयार रहते हैं। लोगों में भी अटूट विश्वास है कि एक बार वह दादा से मिल लिए तो उनकी समस्या हल हो जाएगी। यह वो विश्वास है जो जनता में आज के राजनेताओं के प्रति खोता जा रहा है। इस विश्वास का ही परिणाम है कि भोपाल हो या दतिया . ग्वालियर हो या प्रदेश का कोई भी स्थान जहाँ वह उपलब्ध हो जाये सैकड़ों लोग घेर लेते है। सब अपनी-अपनी समस्याएं बताते हैं । दादा भी किसी को निराश नहीं करते। वह यह भी नही कहते कि उनके विभाग का यह काम नही है।जितने भी लोग आते हैं , वह सब से मिलते हैं। उनकी समस्या सुनते हैं और यथासंभव निराकरण भी तत्काल करा देते हैं। लेकिन एक दिन में इतने सारे लोगों से मिलना उनकी समस्याएं सुनना और उन समस्याओं का निराकरण करना कोई मामूली बात नहीं है।उसके लिए बहुत संयम और परिश्रम लगता है। लेकिन दादा हैं कि मुस्कुराते हुए शांति से सभी की समस्याएं सुनते हैं। लोगों ने कभी भी उनके चेहरे पर थकान या निराशा का भाव नहीं देखा होगा। हमेशा मुस्कुराते हुए लोगों से मिलते हैं। इतने लोगों से रोज मिलने के बाद वह तय समय में सरकारी व सामाजिक कार्यक्रमों में भी पूरी सहभागिता करते है। विभागीय कामकाज भी निपटाते है । परिवार को भी वह समय देते है।समय निकाल कर अपने नाती व नातिन के साथ विशेष रूप से समय भी बिताते हैं। परिवार के प्रति समर्पण उन लोगो के लिए सीख है जो शिखर पर पहुँच कर समय का रोना-रोकर परिवार को समय नहीं दे पाने का रोना रोते रहते है।
कहने का मतलब यह है कि सुबह 5 बजे से रात 11 बजे तक (दोपहर में एक घंटा विश्राम का छोड़ दिया जाए तो) डॉ. नरोत्तम मिश्रा अनवरत लोगों की समस्याओं को दूर करने व समाज को कुछ नया देने के लिए परिश्रम की पराकाष्ठा करते देखे जाते हैं। सेवा व समर्पण का ऐसा भाव आज के समय मे बिरले राजनेताओं में ही देखने में आता है ।
देश की राजनीति में ऐसे राजनेता उंगलियों पर गिने जा सकते है, जिन्होंने दूसरों को बचाने में अपनी जान तक की बाजी लगा दी हो। लेकिन ऐसे बिरले राजनेता भी डॉ. मिश्रा जी भी है। हाल में ही दतिया में आई बाढ़ में फंसे परिवार को बचाने के लिए उन्होंने कैसे अपनी जान की बाजी लगा दी थी , यह पूरे प्रदेश, देश व दुनिया ने देखा है। यह वह भाव है जो पीड़ित व्यक्तियों की सहायता और सेवा का जज्बा अपनी सांसो में ही उतार लेने वाले व्यक्ति में ही हो सकता है।ऐसे और भी कई उदाहरण हैं जो यह बताते हैं कि डॉ.नरोत्तम मिश्रा के लिए मानव सेवा ही माधव यानी भगवान की सेवा है।
दूसरी सीढ़ी है संयम की। जीवन में संयम कितना जरूरी और अहम है , यह डॉक्टर नरोत्तम मिश्रा से सीखा जा सकता है। राजनीतिक जीवन हो या व्यक्तिगत जीवन डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने संयम का साथ कभी नहीं छोड़ा । राजनीति एक ऐसा क्षेत्र है जहां संयम एक बहुत बड़ा गुण माना जाताहै। यह गुण भी डॉ.नरोत्तम मिश्रा ने आत्मसात किया हुआ है।
डॉ. नरोत्तम मिश्रा का सबसे अधिक प्रभावित करने वाला गुण है अनुशासन का। उनके जीवन मे विद्यमान अनुशासन से लोग सीख ले सकते है। डॉ. मिश्रा के सोने जागने, प्रतिदिन के कार्यकलाप का समय तय है।सब कुछ तय रहता है। कब क्या करना है? वह किसी भी हालत में अपने अनुशासन को भंग नही करते है। उनके जीवन इतना अनुशासित है कि समय देखकर उनके जानने वाले लोग बता देते हैं कि दादा इस समय कहां होंगे या क्या कर रहे होंगे। जिस समय पर जो तय है नरोत्तम जी उस समय वही करेंगे। चाहे परिस्थितियां कुछ भी हो ? यह अनुशासन ही है जिन्होंने आज उन्हें इतना स्वस्थ.ऊर्जावान बना रखा है। एक बात और यहाँ जिक्र करना चाहूंगा जो बड़े या शिखर पर पहुंच जाने वाले व्यक्तियों में लगभग लुप्त हो जाती है और वह है गलत होने पर गलती मान लेना। मानव जीवन में कोई गलती नहीं करें , यह संभव ही नहीं है लेकिन किसी जूनियर या मातहत के बताने पर भी अपनी गलती स्वीकार कर लेना , उसमें सुधार कर लेने का गुण भी नरोत्तम मिश्रा के व्यक्तित्व में मौजूद है। अपनी गलती स्वीकार करना उसमें सुधार करने का वादा करना उस समय सीमा में उसको सुधार लेना यह डॉ. मिश्रा जैसे व्यक्तित्व वाले लोगों के बस की बात है। यही वह सब सीढ़ियां हैं जिन पर चढ़ते हुए डॉ. मिश्रा आज राजनीति के शिखर पर ही नहीं पहुचे है बल्कि प्रदेश के आम और खास के दिलों में भी एक अलग स्थान बना चुके हैं । दिलो में बने स्थान का विश्लेषण करना संभव नहीं है । अपनी बात का अंत डॉ. मिश्रा को सबसे ज्यादा पसंद शेर से ही करता हूँ :-
परों को खोल ज़माना उड़ान देखता है,
ज़मीं पे बैठ के क्या आसमान देखता है।।
राजनीति के ध्रुव तारे की तरह चमकने वाले डॉ.नरोत्तम मिश्रा शतायु हो , पीतांबरा माई की कृपा उन पर हमेशा इसी तरह बनी रहे।
बृजेश द्विवेदी (लेखक और वरिष्ट पत्रकार)