भोपाल। अध्यात्मिक सहिष्णुता, राष्ट्रीयता और वैचारिक साहस के प्रतीक तथा युवाओं के आदर्श पुरुष स्वामी विवेकानंद की आज रविवार को 157वीं जयंती है। स्वामी विवेकानंद को लोग आज याद कर रहे हैं और उन्हें अपनी श्रद्घांजिल अर्पित कर रहे हैं। स्वामी विवेकानंद भारत के महानतम धर्म गुरुओं में से एक हैं। स्वामी विवेकानंद का जीवन और उनके संदेश व प्रवचन ने दुनिया के लाखों लोगों को प्रभावित किया है। वह विद्वता और प्रेरणा के बड़े श्रोत माने जाते हैं। साल 1984 में भारत सरकार ने विवेकानंद जयंती और राष्ट्रीय युवा दिवस मनाने कि घोषणा की। तभी से इस दिवस को राष्ट्रीय युवा दिवस के तौर पर मनाया जाता है। राष्ट्रीय युवा दिवस के मौके पर आज देशभर में विभिन्न कार्यक्रम किए जा रहे हैं।
मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी स्वामी विवेकानंद की जयंती पर युवाओं को एक संदेश दिया है। अपने संदेश में शिवराज ने युवाओं को स्वामी विवेकानंद के बताए मार्ग पर चलकर और इन सूत्रों को अपने जीवन में उतार कर किस प्रकार सफलता हासिल की जा सकती है इस बारे में बताया है। शिवराज ने युवाओं को संदेश में कहा है कि ‘मेरे प्रिय भांजे और भांजियों राष्ट्रीय युवा दिवस की शुभकामनाएं। आज स्वामी विवेकानंद जयंती है। स्वामी विवेकानंद जी को मैं बचपन से पढ़ता रहा हूँ। वे मेरी और मुझ जैसे लाखों लोगों की प्रेरणा का स्रोत हैं। उन्होंने कहा था, मनुष्य केवल साढ़े तीन हाथ का हाड़-माँस का पुतला नहीं है। वह अमृत का पुत्र है, ईश्वर का अंश है, अमर-आनंद का भागी है और अनंत शक्तियों का भंडार है। दुनिया में कोई काम ऐसा नहीं जो वो न कर सके।
अपने संदेश में आगे शिवराज ने कहा कि स्वामी विवेकानंद जी के ये वाक्य मुझे आज भी उत्साह और ऊर्जा से भर देते हैं और में एक नई ऊर्जा से फिर काम में जुट जाता हूँ। आइये, स्वामी विवेकानंद जी को पढ़ें, समझें, प्रेरणा प्राप्त करें और आगे बढ़ें व देश को आगे बढ़ाएँ। शिवराज ने युवाओं से अपील करते हुए कहा कि स्वामी जी ने कहा था मुझे केवल सौ नौजवान चाहिए, ऐसे जिनकी मांसपेशियाँ लोहे की हों, स्नायु स्पात के हों, जो दृढ़ संकल्पित हों और अपना सारा जीवन राष्ट्र को समर्पित कर दें। क्या हम उन सौ में से एक बनने का प्रयास कर सकते हैं? स्वामी जी ने कहा था, अपने लिए तो सब जीते हैं, कीट-पतंगे भी और पशु-पक्षी भी। अपने लिए जिये तो क्या जिये। जीते वास्तव में वो हैं जो औरों के लिए जीते हैं, देश के लिए, समाज के लिए जीते हैं। क्या हम अपने देश और समाज के लिए जीने का संकल्प लेंगे? स्वामी जी ने कहा था, दरिद्र ही हमारा नारायण है। उसकी सेवा भगवान की पूजा है। आइये, हम संकल्प लें कि सेवा के व्रत को अपनाकर गरीब के जीवन में बेहतरी लाने का प्रयास कर अपने जीवन को सफल, सार्थक और धन्य बनाएँ। आइए, इस पुनीत अवसर पर संकल्प लें कि हमारा जीवन केवल हमारे लिए नहीं रहेगा। अपने समाज व देश के लिए जीयेंगे और अपने मानव जीवन को सार्थक करेंगे।