भोपाल| मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव में जीतने के बाद कांग्रेस का विश्वास बढ़ा है, जिसके चलते 22 से ज्यादा सीटें जीतने का दावा किया जा रहा है| लेकिन प्रदेश में अधिकांश सीटें भाजपा के मजबूत गढ़ वाली है, जिनमे सेंध लगाना आसान नहीं है| मुख्यमंत्री कमलनाथ कांग्रेस के दिग्गज नेता को ऐसी ही मजबूत सीट से चुनाव लड़ाना चाहते हैं| हालाँकि दिग्विजय का नाम राजगढ़ सीट से भी आगे हैं, क्यूंकि राजगढ़ दिग्विजय का प्रभाव वाला क्षेत्र है वहाँ से जीत उनके लिए आसान होगी| लेकिन सीएम कमलनाथ ने यह कहकर सियासत गरमा दी है कि दिग्विजय को सबसे कठिन सीट से चुनाव लड़ना चाहिए| जिसके बाद तेजी से चर्चा शुरू हो गई है कि दिग्विजय किस सीट से चुनाव लड़ेंगे| पिछले चुनाव की बात करें तो मोदी लहर में सिर्फ दो ही सीट कांग्रेस बचा पाई थी| लेकिन इस बार समीकरण बदल गए हैं, फिर भी प्रदेश की लगभग आधा दर्जन लोकसभा सीटों पर करीब तीन दशक से कांग्रेस को जीत नहीं मिली है| इनमे से कुछ सीटों पर दिग्विजय का नाम पहले से चर्चा में है| अब देखना होगा पार्टी दिग्विजय का कहाँ इस्तेमाल करती है| पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 29 में से 27 सीटें जीती थीं। आरक्षित वर्ग की सभी दस सीट भाजपा को मिली थीं। इसके बाद हुए रतलाम-झाबुआ के उपचुनाव में कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया ने सीट जीतकर तीन सीटें कांग्रेस की कर दी थीं। अब हालात बदले हुए हैं और प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है।
बीजेपी का गढ़, कांग्रेस 30 साल से खाली ‘हाथ’
भोपाल : प्रदेश की राजनीति के केंद्र राजधानी भोपाल में ही कांग्रेस जीत का स्वाद नहीं चख पाई है| यहां भी 1989 से लगातार भाजपा का सांसद चुना जाता रहा है। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. शंकरदयाल शर्मा और जनसंघ के धाकड़ नेता जगन्नाथराव जोशी जैसे नेता यहां का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। नौकरशाह रहे सुशीलचंद्र वर्मा भाजपा के टिकट पर यहां से चार बार सांसद रह चुके हैं। उनसे मुकाबले के लिए कांग्रेस ने भोपाल नवाब परिवार से जुड़े क्रिकेटर नवाब मंसूर अली खान को भी मैदान में उतारा पर जीत नहीं मिली। जनता दल ने स्वामी अग्निवेश को वर्मा के मुकाबिल उतारा लेकिन कामयाबी नहीं मिली। 2014 के चुनाव में भाजपा ने आलोक संजर को टिकट दिया और वे रिकॉर्ड मतों से कामयाब रहे। कांग्रेस भोपाल से पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को उतार सकती है|
ताई के कब्जे में इंदौर
इंदौर : प्रदेश की यह सीट राजनीतिक लिहाज से ख़ास मानी जाति है| यहां से लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन आठ बार से लगातार जीत रहीं हैं। उन्होंने कांग्रेसी दिग्गज प्रकाशचंद्र सेठी को परास्त कर यह सीट भाजपा की झोली में डाली थीं। सेठी की गिनती तब कांग्रेस की प्रथम पंक्ति के नेताओं में होती थी। वे देश के गृह मंत्री रह चुके थे। तीन दशक से कांग्रेस कभी यहां जीत नहीं पाई| यही वजह है कि इस बार इस सीट से बड़े नेता को कांग्रेस लड़ाने की तैयारी कर रही है| दिग्विजय का नाम यहां से चर्चा में है|
हाई प्रोफाइल सीट, चेहरों कोई भी हो खिलता हे कमल
विदिशा : यह सीट हमेशा से ही सुर्ख़ियों में रही है, क्यूंकि इस सीट से कई बड़े नेता चुनाव लड़ चुके हैं| जहां मतदाता घरेलू और बाहरी उम्मीदवार की बहस से दूर विचारधारा के आधार पर वोट देते आए हैं। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटलबिहारी वाजपेयी भी 1991 में विदिशा के सांसद रह चुके हैं। तब वे विदिशा के साथ लखनऊ से भी चुनाव जीते थे, इसलिए उन्होंने विदिशा से इस्तीफा दे दिया था। वर्तमान में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज इस सीट से सांसद है। वे दो बार यहां से सांसद चुनी गईं। मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पांच बार यहां से सांसद का चुनाव जीत चुके हैं। इस बार फिर उम्मीद है कि भाजपा उन्हें विदिशा से टिकट दे। यहां से स्व. रामनाथ गोयनका भी 1971 में एक बार जनसंघ के टिकट पर चुने जा चुके हैं। लेकिन इस बार स्थानियों लोगों में सुषमा के खिलाफ विरोध दिखा है| हालाँकि वो स्वयं चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान कर चुकी हैं, जिसके चलते इस बार विदिशा को स्थानीय प्रत्याशी मिल सकता है|
राजमाता लड़ी थी चुनाव, कांग्रेस को नहीं मिलती सफलता
भिंड : 1989 से कांग्रेस यहां से लगातार हार रही है। उदयन शर्मा जैसे सितारा पत्रकार और विश्वनाथ शर्मा जैसे उद्योगपति भी भाजपा को नहीं हरा सके। भिंड लोकसभा सीट बीजेपी के मजबूत किले में से एक है| इस सीट पर कभी विजयाराजे सिंधिया चुनाव जीत चुकी हैं, तो वहीं उनकी बेटी और राजस्थान की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे भी इस सीट पर किस्मत आजमा चुकी हैं| 1984 के चुनाव में वसुंधरा राजे ने यहां से चुनाव लड़ा था, लेकिन उनको हार का सामना करना पड़ा था. फिलहास इस सीट पर पिछले 8 चुनाव से बीजेपी का ही कब्जा है. कांग्रेस को इस सीट पर सिर्फ 3 बार जीत नसीब हुई है| भिंड के पहले IAS अफसर डॉ. भागीरथ प्रसाद यहां के सांसद हैं|
कांग्रेस के सभी प्रयोग फेल
दमोह : बुंदेलखंड की दमोह लोकसभा सीट को हथियाने के लिए कांग्रेस सारे प्रयोग कर चुकी है, लेकिन 1989 के बाद से सफलता हाथ नहीं लगी। दमोह लोकसभा सीट बीजेपी का गढ़ है| बीजेपी को इस सीट पर पहली जीत 1989 में मिली| 1989 के बाद से ही यहां पर बीजेपी का विजयी सफर जारी है| वह लगातार 8 चुनावों में यहां पर जीत हासिल कर चुकी है| आगामी लोकसभा चुनाव में बीजेपी की नजर लगातार यहां पर नौवीं जीत दर्ज करने पर होगी, वहीं कांग्रेस इस सीट पर जीत चाहती है|