Promise Day: प्रॉमिस डे पर इन शायरियों से करें अपने वैलेंटाइन से प्यार का वादा

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PROMISE DAY: दुनिया कह रहे ही आज वादों का दिन है। इस मौके पर हमें तो चचा ग़ालिब ही सबसे पहले याद आ रहे हैं…

“तेरे वादे पर जिये हम तो ये जान झूठ जाना 

कि ख़ुशी से मर न जाते अगर ऐतबार होता”

आज वैलेटाइन वीक में है प्रॉमिस डे। मतबल किसी से कोई वादा करना और वादा करना उस वादे को ताउम्र निभाने का। क्या आपने कभी ग़ौर किया है कि इश्क मोहब्बत के बाद अगर हिंदी उर्दू साहित्य में कुछ लिखा गया है तो वो शायद वादों-कसमों पर ही लिखा है, इतना ही नहीं हमारी फिल्मों में भी कसमों-वादों पर सैंकड़ों सुमधुर गीत रचे गए हैं। तो आईये आज इस प्रॉमिस डे पर आपको कुछ ऐसे ही शेर-ओ-सुखन से मिलाते हैं-

 

“अब तो कर डालिये वफा उससे

वो जो वादा उधार रहता है”

                    (इब्न-ए-मुफ्ती)

 इसपर गुलज़ार साहब ने भी क्या खूब कहा है…

“आदतन तुमने कर दिए वादे

आदतन हमने एतबार किया”

 

इधर हमारे कैफ़ भोपाल साहब भी पीछे न रहे, उन्होने जब ये कहा…

“आप ने झूठ वादा कर के

आज हमारी उम्र बढ़ा दी”

 

दाग़ देहलवी साहब ने इस मौक़े पर झूटी कसम खाने वाले को खूब करारा जवाब भी दिया है…

“खातिर से या लिहाज़ से मैं मान तो गया

झूटी कसम से आपका ईमान तो गया”

 

इधर वो फिर लिखते हैं…

“गज़ब किया तेरे वादे पे एतबार किया

तमाम रात कयामत का इंतज़ार किया”

 

तभी जलील मानिकपुरी कह उठते हैं कि कोई तो वादा कर, झूटा ही सही…

“झूटे वादे भी नहीं करते आप

 कोई जीने का सहारा ही नहीं”

 

शहरयार तो वादे की खातिर अपनी नींदे भी कुर्बान करने को तैयार हैं…

“तेरे वादे को कभी झूट नहीं समझूंगा

आज की रात भी दरवाज़ा खुला रखूंगा”

 

यहीं असद भोपाली लिखते हैं…

“देखिए अहद-ए-वफा अच्छा नहीं

मरना जीना साथ का हो जाएगा”

 

उधर फिराक गोरखपुरी तो वादे के बिना ही मुहब्बत में खुद को मिटाने के लिए जैसे तैयार बैठे हैं…

“न कोई वादा न कोई यकीं न कोई उम्मीद

मगर हमें तो तेरा इंतज़ार करना था”

 

अंजुम खयाली बड़ा दिल करके लिखते हैं…

“बाज़ वादे किए नहीं जाते

फिर भी उनको निभाया जाता है”

 

मोमिन खां मोमिन ने तो इसपर क्या खूब गज़ल कही है, शेर देखिए…

“वो जो हम में तुम में करार था तुम्हें याद हो कि न याद हो

वही यानी वादा निबाह का तुम्हें याद हो कि न याद हो”

 

और इस महफ़िल का आगाज़ जिस अज़ीम शख्सियत के शेर से हुआ, वहीं मिर्ज़ा ग़ालिब एक बार फिर कहते हैं…

 

हम को उनसे वफ़ा की है उम्मीद

जो नहीं जानते वफ़ा क्या है…….

 


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