सागर के श्मशान में शिक्षा की जगी अलख, नाम दिया ‘मिशन मुक्तिधाम’

Gaurav Sharma
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सागर, डेस्क रिपोर्ट। ऐसा कहा जाता है कि जहां पर भी शिक्षा (Education) दी जाती है, वह एक मंदिर (Temple) बन जाता है। वहीं जब श्मशानघाट (graveyard) जैसी जगह पर शिक्षा की एक छोटी सी चिराग दिख जाए तो यह सभी के लिए एक आश्चर्य से कम नहीं होगा। हम बात कर रहे हैं सागर (Sagar) जिले की, जहां श्मशान में बच्चों को शिक्षा (Educating Children) दी जा रही है। साथ ही उन्हें नई-नई चीजें भी सिखाई जा रही है। जो बच्चे शवयात्रा के दौरान सिक्के बीनने जाते थे, उन्हें कॉलेज के एक शिक्षक की नई पहल से शिक्षा (Education) मिल रही है।

बच्चें भूले बुरी आदत

अब बस्तियों में रहने वाले बच्चे बुरी आदतों को भूलकर श्मशान में जाकर शिक्षा ले रहे हैं। जहां उन्हें गलती करने पर सजा भी दी जाती है। जो सजा डांट लगाने या फिर पिटाई खाने वाली नहीं होती, बल्कि पर्यावरण के प्रति प्रेम दिखाते हुए पौधरोपण करना होता है। कॉलेज के शिक्षक की इस नई पहल की सभी लोग सराहना कर रहे हैं। जिससे गरीब बच्चों की जिंदगी में शिक्षा की नई रोशनी दिखाई दे रही है।

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बच्चों को श्मशान में पढ़ाया जा रहा हिंदी, इंग्लिश और पर्यावरण 

बता दें कि सागर जिले के नरयावली नाके के पास झुग्गियां बनी हुई है। जिसमें रहने वाले बच्चे शवयात्रा के दौरान फेंके गए सिक्कों को उठाने जाते हैं और उन्हीं सिक्कों से गुजारा करते हैं। जब इन बच्चों को शहर के कुछ युवाओं ने देखा, तो उनके लिए कुछ करने की इच्छा जागृत हुई। जिसके बाद युवाओं ने ही श्मशान घाट पर बच्चों को हिंदी, इंग्लिश और पर्यावरण पढ़ाने लगे। जिसका अच्छा परिणाम सामने आ रहा है।

शिक्षक महेश तिवारी ने की पहल की शुरुआत

इस पहल की शुरुआत कॉलेज शिक्षक महेश तिवारी ने की है। साथ ही इस पाठशाला का नाम मिशन मुक्तिधाम रखा गया है। जहां मुक्तिधाम के बाउंड्रीवॉल को ही पढ़ाने के समय ब्लैक बोर्ड की तरह उपयोग किया जाता है। इस मुक्तिधाम में बच्चों को पढ़ाने के लिए शहर के कुछ युवा आते हैं। जो 5 साल से 12 साल के बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं। शिक्षा में हिंदी, अंग्रेजी और पर्यावरण के साथ-साथ चित्रकला गायन और नृत्य भी सिखाया जाता है। इस दौरान उन्हें खेलकूद से जुड़ी गतिविधियां भी कराई जाती है। जिससे उनका मानसिक विकास के साथ-साथ शारीरिक विकास भी हो सके।

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पौधा लगाने की मिलती है सजा

मुक्तिधाम में पढ़ने आने वाले बच्चों में यदि कोई शरारत करता है तो उसे परिसर में ही गड्ढा खोदकर पौधा लगाने की सजा मिलती है। जानकारी के अनुसार, श्मशान घाट पर यह पाठशाला करीब 45 दिनों से संचालित हो रही है। जिसमें करीब 80 से ज्यादा बच्चे शामिल होते हैं। इन बच्चों को शहर के ही 8 युवा शिक्षा दे रहे हैं, जो इन्हें बुरी आदतें भी छुड़वाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।

सागर के श्मशान में शिक्षा की जगी अलख, नाम दिया 'मिशन मुक्तिधाम'


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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