8 माह से बिजली न होने के कारण अंधेरे में रहने को आदिवासी मजबूर, जानें पूरा मामला

Amit Sengar
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Dabra News : मध्यप्रदेश के ग्वालियर जिले के डबरा तहसील में आदिवासी समुदाय के लोग पिछले 8 महीने से अंधेरे में रहने को मजबूर है विद्युत विभाग के अधिकारियों द्वारा कोई सुनवाई नहीं की जा रही है। यह मामला भरतरी पंचायत के अंतर्गत आने वाले आदिवासियों का पाठा क्षेत्र का है जहाँ बिजली की समस्या लगभग 8 महीने से बनी हुई है। और क्षेत्र में कोई ट्रांसफार्मर ना होने की वजह से लोग अंधेरे में रहने को मजबूर है। वहां एक ट्रांसफार्मर है मगर उस पर दबंगों का कब्जा है।

आदिवासी महिलाओं ने कहा कि मौजूदा ट्रांसफार्मर से लाइट डालने पर दबंगों द्वारा उनको रोका जाता है और पैसे की भी मांग की जाती है। जिसको लेकर आज आदिवासियों का पाठा गांव की आदिवासी समुदाय की महिलाओं द्वारा डबरा डिवीजन ऑफिस पर अपनी समस्याओं को लेकर डीई को ज्ञापन सौंपने के लिए धरना प्रदर्शन किया गया। जिसमें अधिक मात्रा में आदिवासी महिलाएं उपस्थित थी। जानकारी मिल रही है कि डबरा डिवीजन ऑफिस में कोई अधिकारी मौजूद नहीं था जो उनकी फरियाद सुन सके।

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गांव की महिला गुड्डी बाई का कहना है कि पिछले 8 महीनों से इसी तरह अधिकारियों के चक्कर काट रहे है। लेकिन आज तक कोई सुनवाई अधिकारियों के द्वारा नहीं की गई। साथ ही गांव के एक व्यक्ति बंटी जाट ने कहा कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के द्वारा जो योजनाएं गरीब और पिछड़े लोगों के लिए निकाली जा रही हैं उन योजनाओं का लाभ गरीब को नहीं मिल पा रहा क्योंकि अधिकारी बीच में ही सारी योजनाएं हजम कर जाते हैं गरीब व्यक्ति कब तक इस तरह ऑफिसों के चक्कर काटते रहेंगे। आखिरकार वह मजदूर अपनी मजदूरी कब करेंगे। अगर इसी तरह ऑफिसों के चक्कर लगाएंगे तो काम कौन करेगा।

आदिवासी समुदाय की एक महिला बिट्टो बाई ने टेकनपुर पदस्थ बिजली विभाग के अधिकारी पर सीधे तौर पर रिश्वतखोरी का आरोप लगाते हुए कहा कि उन्होंने इस मामले की शिकायत टेकनपुर स्थित विद्युत विभाग के ऑफिस में पदस्थ जेई चौरसिया से कई बार शिकायत की है। लेकिन बिजली विभाग के अधिकारी टेकनपुर पदस्थ चौरसिया द्वारा उनसे ₹15000 की मांग की गई उन्होंने कहा कि 15000 रुपए हम गरीब आदिवासियों पर कहां से आएंगे इस बीच गौर करने वाली बात यह है कि मध्य प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार भी गरीब आदिवासियों की सुविधा के लिए कई तरह की योजनाएं उपलब्ध करा रही है।

लेकिन इन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा गरीब आदिवासियों के लिए चलाई गई योजनाओं का लाभ गरीब तक पहुंचने से पहले ही अधिकारियों तक सीमित रह जाता है। क्योंकि अधिकारी सीधे तौर पर गरीब लोगों से रिश्वत की मांग करते हैं। यह अधिकारियों का रिश्वत लेने का रवैया आखिरकार कब समाप्त होगा। यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि मध्यप्रदेश सरकार की गरीबों के हितों के लिए चलाई गई मुहिम कितनी सफल होंगी। ऐसा हम नहीं कह रहे यह तो लोगों की परेशानियां लोग खुद अपनी जुबानी बयां कर रहे हैं अब इस पर क्या प्रदेश सरकार चुप्पी साधे बैठी रहेगी यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।
डबरा से अरुण रजक की रिपोर्ट


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मुझे अपने आप पर गर्व है कि में एक पत्रकार हूँ। क्योंकि पत्रकार होना अपने आप में कलाकार, चिंतक, लेखक या जन-हित में काम करने वाले वकील जैसा होता है। पत्रकार कोई कारोबारी, व्यापारी या राजनेता नहीं होता है वह व्यापक जनता की भलाई के सरोकारों से संचालित होता है।वहीं हेनरी ल्यूस ने कहा है कि “मैं जर्नलिस्ट बना ताकि दुनिया के दिल के अधिक करीब रहूं।”

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