MP की इस जेल में चूहों का आतंक, बीते एक हफ्ते में आधा दर्जन कैदियों को चूहों ने काटा

जेल प्रबंधन भी परेशान है, चूहों से निजात पाने के लिए उन्हें मारना एक विकल्प है लेकिन बड़ी तादात में चूहों को मारा कैसे जाए ये भी मुश्किल है इसके लिए चूहामार दवा रखना सबसे आसान है लेकिन इसमे भी रिस्क है, इस दवाई को साधारण तरीके से नही रखा जा सकता क्योंकि डर रहता है कि कोई बंदी इस दवा को न खाले वरना बड़ी घटना हो सकती है।

Amit Sengar
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MP News : जिन लोगों से सड़क गली में उनकी शक्ल देखकर लोग डरते हो जिन्हें देखकर लोग सहम जाते हैं और जिनके बारे में सुनकर लोगो के मन मे उनकी खूंखार छवि आ जाती हो ऐसे खतरनाक लोग यदि चूहों से डरे तो आप क्या कहेंगे? पर इन दिनों सूबे के दमोह में कुछ ऐसा ही हो रहा है, जिनके नाम पुलिस के रोजनामचे में दर्ज हैं जिन पर खतरनाक अपराध दर्ज है जिन्हें पकड़ कर जेल में डाला हुआ हो वो लोग चूहों से डर रहे है और वो भी कहीं और नही बल्कि जिला जेल में, ये सुनकर अजीब लग रहा होगा लेकिन बीते एक हफ्ते से दमोह के जिला जेल में कैदियों और बंदियों की राते जागते हुए ही गुजर रही है उन्हें नींद तो आती है लेकिन उनके मन मे एक डर बैठा रहता है और ये डर चूहों का है।

क्या है पूरा मामला

दरअसल जिला जेल में इन दिनों चूहों का आतंक है, और ये चूहे कैदियों और बंदियों को अपना निशाना बना रहे है, रात के वक़्त सोते समय कैदियों को चूहे काट रहे हैं। बीते एक हफ्ते में आधा दर्जन कैदियों को चूहों ने काटा है जिनका इलाज जेल प्रबंधन ने कराया है। मामले का खुलासा तब हुआ जब दमोह जेल में बन्द बंदियों से मुलाकात करने उनके परिजन गए तो बंदियों ने जेल के भीतर चूहों के आतंक की शिकायत की जिसके बाद परिजन एक्टिव हुए और उन्होंने जेल प्रबंधन और जिला प्रशासन से इसकी शिकायत की। मामला अजीबो गरीब है लेकिन जब जेल प्रशासन ने पता किया तो कई बंदियों ने शिकायत की, कि उन्हें चूहों ने काटा है जिसके बाद जेल प्रबंधन हरकत में आया और चूहों के काटने से प्रभावित हुए बंदियों को जिला अस्पताल इलाज के लिए भेजा गया। इन बंदियों का इलाज करने वाले चिकित्सक बताते है कि चूहों के काटने के बाद जिन बंदियों को लाया गया उन्हें इलाज दिया गया है खतरे की कोई बात नही है सब ठीक है।

अब सवाल उठता है कि आखिर जेल में चूहे कहाँ से आये तो इसके बारे में जिला जेल के उप अधीक्षक बताते हैं कि जेल परिसर का बड़ा हिस्सा पहले खाली और खेतनुमा था। जहां चूहे रहते थे लेकिन पिछले दिनों मैदान की जगह का समतलीकरण करा दिया गया जिससे चूहे भी बेघर हो गए और उन्होंने जेल के अंदर का रुख कर लिया। उनके मुताबिक जेल के भीतर बड़ी संख्या में चूहे है और जिन बंदियों ने चूहों के द्वारा काटने की शिकायत की थी उन्हें इलाज दिया गया है। दरअसल जेल प्रबंधन भी परेशान है, चूहों से निजात पाने के लिए उन्हें मारना एक विकल्प है लेकिन बड़ी तादात में चूहों को मारा कैसे जाए ये भी मुश्किल है इसके लिए चूहामार दवा रखना सबसे आसान है लेकिन इसमे भी रिस्क है, इस दवाई को साधारण तरीके से नही रखा जा सकता क्योंकि डर रहता है कि कोई बंदी इस दवा को न खाले वरना बड़ी घटना हो सकती है लिहाजा सतर्कता के साथ जेल स्टाफ की निगरानी में चूहामार दवा रखी जा रही है। बहरहाल जेल में चूहों के आतंक की ये कहानी अजीब है और देखना होगा कि आखिर कब इस जेल में बन्द खरनाक अपराधी चूहों के डर से मुक्त हो पाते हैं?
दमोह से दिनेश अग्रवाल की रिपोर्ट


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मुझे अपने आप पर गर्व है कि में एक पत्रकार हूँ। क्योंकि पत्रकार होना अपने आप में कलाकार, चिंतक, लेखक या जन-हित में काम करने वाले वकील जैसा होता है। पत्रकार कोई कारोबारी, व्यापारी या राजनेता नहीं होता है वह व्यापक जनता की भलाई के सरोकारों से संचालित होता है। वहीं हेनरी ल्यूस ने कहा है कि “मैं जर्नलिस्ट बना ताकि दुनिया के दिल के अधिक करीब रहूं।”

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