जमीन की लड़ाई को लेकर एकता परिषद का धरना, रखी ये मांग

Gaurav Sharma
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दमोह, गणेश अग्रवाल। एकता परिषद के द्वारा जिला स्तरीय एक दिवसीय शांतिपूर्ण धरना प्रदर्शन का आयोजन किया गया। आचार्य विनोबा भावे की 125 वीं जयंती के अवसर पर यह कार्यक्रम जिला मुख्यालय पर नेहरू पार्क के सामने किया गया, जहां पर जिले भर से आए एकता परिषद के पदाधिकारियों एवं कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया।

दरअसल, जल जंगल एवं जमीन की लड़ाई लगातार कई वर्षों से लड़ रही एकता परिषद के बैनर तले आचार्य विनोबा भावे की 125 वीं जयंती के अवसर पर जिला स्तरीय एक दिवसीय शांतिपूर्वक धरना प्रदर्शन का आयोजन किया गया। इस दौरान एकता परिषद के जिला अध्यक्ष के साथ अन्य समाजसेवी लोगों तथा पीड़ित आदिवासी वनवासी समुदाय के लोगों ने पहुंचकर अपनी मांगे रखी। इस दौरान सभी ने एक स्वर में उनको जमीन का हक दिलाए जाने की मांग की।

 

इस रैली में ऐसे लोग भी थे जिनको अपनी ही जमीन का कब्जा नहीं मिल रहा है, क्योंकि उनकी जमीन पर दबंगों द्वारा कब्जा कर लिया गया है। गुहार के बाद न्याय मिलने के बाद भी उनकी जमीन उन्हें नहीं मिल रही है। ऐसे हालात में इन लोगों ने इस प्रदर्शन में हिस्सा लेकर जमीन की मांग करते हुए अपनी बात कही। वहीं वरिष्ठ समाजसेवी एवं एकता परिषद से जुड़े संतोष भारती ने भी इन सभी लोगों की समस्याओं से अवगत कराते हुए कहा कि यह समस्याएं आज की नहीं है, लेकिन जो भी राजनेता पद पर पहुंचता है, वह इनकी मांगों पर और इन पर ध्यान नहीं देता है। ऐसे में इनकी समस्याओं का समाधान करना उनकी जिम्मेदारी है, यही कारण है कि वे लोग आज शांतिपूर्वक धरना देकर अपनी मांगों को पूरा करने की मांग कर रहे हैं।


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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