MP Tourism madkoleshwar Temple: मध्यप्रदेश में एक से बढ़कर एक धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल मौजूद है, जिनका पर्यटकों के बीच एक अलग ही स्थान है। सभी जगह की कुछ ना कुछ खासियत है, जो लोगों को अपनी और आकर्षित करती है। सावन के इस खास महीने में हम आपको मध्य प्रदेश के एक शिव मंदिर के बारे में बताते हैं, जहां की शिवलिंग का आकार दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।
दमोह से 20 किलोमीटर दूर छतरपुर मार्ग पर ग्राम पंचायत सीतानगर के पास मड़कोलेश्वर शिव मंदिर बना हुआ है। जहां भगवान शिव की बड़ी सी पिंडी स्थापित है। यह मंदिर हजारों भक्तों की आस्था का केंद्र है और बड़ी संख्या में लोग यहां दर्शन के लिए पहुंचते हैं। आज हम आपको इस मंदिर के इतिहास, चमत्कार और कहानी के बारे में बताते हैं।
मड़कोलेश्वर शिव मंदिर का इतिहास
इस प्राचीन शिव मंदिर का इतिहास 1000 साल पुराना बताया जाता है। लोगों का कहना है कि यहां एक गांव हुआ करता था, जिसका नाम मड़कोला था। यहां पर जहरीले कीड़े और भयानक जानवर रहा करते थे और लोग बड़ी मुश्किल से मौत से हर दिन लड़कर अपनी जिंदगी गुजार रहे थे।
किवंदती के मुताबिक यहां एक चबूतरा बना हुआ था। जिस पर भगवान भोलेनाथ दिखाई दिए और एक रात्रि में स्वयं देवताओं ने यहां पर मंदिर का निर्माण करना शुरू किया। मंदिर निर्माण पूरा हो चुका था और कलश रखना बाकी था, तभी गांव की एक महिला ने आटा पीसने वाली चक्की चलाना शुरु कर दी, जिसकी आवाज सुनकर देवता अंतर्ध्यान हो गए।
इस घटना के बाद गांव पर बीमारी का प्रकोप टूट पड़ा और पूरी जगह विरान हो गई। जो लोग बचे थे वह गांव छोड़ कर चले गए और यहां आने से लोग डरने लगे। कुछ समय बाद यहां शिवोहम महाराज नाम के संत पहुंचे और कठिन तपस्या से भोलेनाथ को प्रसन्न किया। तपस्या से प्रसन्न होने के बाद यहां भोलेनाथ के कई चमत्कार देखने को मिलने लगे। जिसके बाद धीरे-धीरे इस जगह पर लोगों का आना शुरू हुआ। धीरे-धीरे यह स्थान जागृत होकर लोगों की आस्था का केंद्र बन गया और अब यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं और शिवरात्रि तथा मकर संक्रांति के मौके पर यहां मेला भी लगता है।
बढ़ रहा प्रतिमा का आकार
दूर-दूर से आने वाले भक्तों को मड़कोलेश्वर महादेव के सामने अपनी मनोकामना रखते हुए देखा जाता है, जो पूरी भी होती है। स्थानीय लोग इस मंदिर को बहुत चमत्कारी और रहस्यमई मानते हैं, क्योंकि इसे बनाने में सिर्फ एक पत्थर का इस्तेमाल किया गया है, कहीं पर भी जोड़ नहीं दिखाई देता। वहीं यहां स्थापित भगवान भोलेनाथ की पिंडी के दिन प्रतिदिन आकार बदलने और बढ़ने की बात भी कही जाती है।