दतिया जिले के सेवड़ा अनुभाग में स्थित सनकुआ धाम से निकलने वाली सिंध नदी की जलधारा मई में पड़ने वाली भीषण गर्मी के कारण सूखने के कगार पर पहुंच जाती थी, जिससे क्षेत्र का वाटर लेवल मैं भी भारी कमी आ जाती थी। साथ ही सनकुआ से बहने वाला मनोहारी झरना भी विलुप्त हो जाने से यहां की सुंदरता में भी कमी आ जाती थी। लेकिन इस बार मई माह में भी इस झरने का मनोहारी दृश्य देखते ही बन रहा है। जहां एक ओर भीषण गर्मी पड़ रही है वहीं दूसरी ओर इस तपोस्थली भूमि पर प्रकृति कई उदाहरण है जिनके कारण विहंगम दृश्य देखते ही बनता है।
संकुआ सिंध नदी के घाट पर स्थित घाट को सनकुआ धाम से जाना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार यहां ब्रह्मा जी के चार पुत्रों मानस पुत्रों के सनत, सनंदन एवं सनत कुमार ने तपस्या की थी। कार्तिक मास में एक माह लगने वाला मेला श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र रहता है। संकुआ धाम की मान्यता यह भी है कि इसे तीर्थों का भांजा भी कहा जाता है इसलिए इस घाट पर स्नान करने से बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। यहां पर प्रकृति के कई ऐसे नजारे हैं जो इतिहास के पन्नों पर आज भी अमर है।
वहीं सेंवढ़ा में कन्हरगढ़ दुर्ग और सनकुआ धाम के अलावा जिंदपीर की तीन सौ फुट ऊंची करार, अलीखेरे के हनुमान, जिंदपीर, शीतला माता, हरदौल बाग, बारहद्वारी, सनकेश्वर घाट पर गौमुख, शुक्राचार्य मठ, बलखण्डेश्वर मंदिर, बालाजी मंदिर, गूदरिया मठ, तीन कलश याऊ, रामहोराम की बगिया, सेंवढ़ा के निकट जंगल में सिद्ध की रइया, शिकार गाह, रतनगढ़ माता मंदिर, देवगढ़ का किला, आमखो, सिरसा की बावड़ी आदि ऐतिहासिक महत्व के दर्शनीय स्थल है।