माधवीराजे सिंधिया: राजशक्ति से नहीं, सद्कार्यों से हुईं राजमाता..विनम्र श्रद्धांजलि

बुधवार को देश की मीडिया के लिए यह खबर शायद इन मायनों में महत्वपूर्ण थी कि वह केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की मां थी, एक समय भारतीय राजनीति के जगमगाते सितारे स्वर्गीय माधवराव सिंधिया की पत्नी थी।

Shashank Baranwal
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Madhavi Raje Scindia

Madhavi Raje Scindia funeral: अंततः राजमाता माधवीराजे सिंधिया पंचतत्व में विलीन हो गई। उन्हीं माधवराव के पास, जो आज से 23 वर्ष पूर्व उन्हें ही नहीं पूरे अंचल को असमय बिलखता सिसकता छोड़ गए थे और साथ ही विलीन हो गई वह नारी शक्ति भी जो राजतंत्र के दंड से नहीं बल्कि स्नेह और प्रेम की प्रतिछाया होने के चलते लोगों के दिलों में राजमाता थीं।

स्नेह और प्रेम की प्रतिमूर्ति व प्रतिछाया राजमाता

माधवीराजे सिंधिया नहीं रही…. बुधवार को देश की मीडिया के लिए यह खबर शायद इन मायनों में महत्वपूर्ण थी कि वह केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की मां थी, एक समय भारतीय राजनीति के जगमगाते सितारे स्वर्गीय माधवराव सिंधिया की पत्नी थी, लेकिन ग्वालियर चंबल अंचल के हर परिवार के लिए माधवीराजे का जाना एक वज्रपात के समान था, क्योंकि अंचल के हर परिवार के लिए वह स्नेह और प्रेम की प्रतिमूर्ति व प्रतिछाया राजमाता थीं।

राजतंत्र और लोकतंत्र की राजमाता

भारत की आजादी के साथ ही राजतंत्र इतिहास के पन्नों में सिमट गया और लोकतंत्र की रोशनी ने पूरे देश को आलोकित कर दिया। लेकिन उसके बावजूद ग्वालियर राजघराने का जनता के साथ 350 साल से चला आ रहा रिश्ता और अधिक मजबूत होता गया। स्वर्गीय विजयाराजे सिंधिया इस परिवार की अंतिम नारी शक्ति थी जो आजादी के पहले और आजादी के बाद दोनों समय राजतंत्र और लोकतंत्र को देख चुकी थी और उन्होने अंचल के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। लेकिन माधवी राजे का तो जन्म ही भारत की आजादी के 6 महीने बाद हुआ। 1966 में वे ग्वालियर राजमहल में बहू बनकर आई और आज उनकी अंतिम विदाई भी इस राज महल से हुई। वे एक ऐसी व्यक्तित्व थी, जिन्होंने कभी सक्रिय राजनीति के पटल पर अपनी भूमिका नहीं दिखाई बल्कि पर्दे के पीछे कभी पति और कभी बेटे के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सहयोग करती रही।

कार्यों से बनायी दिलों में जगह

चाहे शिक्षा का क्षेत्र रहा हो या सांस्कृतिक क्षेत्र को आगे बढ़ाने का, माधवी राजे हमेशा इन कार्यों में बढ़ चढ़कर प्रोत्साहन देती रही। 2001 में माधवराव सिंधिया जी की मृत्यु के बाद मैराथन दौड़ के आयोजन को शुरू करवाना भी उन्हीं की पहल थी। अंचल में जब भी किसी तरह की मुसीबत सामने आई, उनका उदार और ममतामयी भाव उस समस्या के निदान के लिये लोगों के साथ खड़ा हुआ दिखाई दिया। यह बहुत सहज नहीं कि लोकतंत्र के इस माहौल में कोई व्यक्तित्व लोगों के दिलों में राज कर सके लेकिन सचमुच माधवी राजे ने अपने सदकार्यों और व्यक्तित्व से राजमाता का अजर और अमर स्वरूप लोगों के दिल में अमर कर दिया।

Virendra Sharma

इस लेख के लेखक समूह संपादक वीरेंद्र शर्मा हैं।


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पत्रकारिता उन चुनिंदा पेशों में से है जो समाज को सार्थक रूप देने में सक्षम है। पत्रकार जितना ज्यादा अपने काम के प्रति ईमानदार होगा पत्रकारिता उतनी ही ज्यादा प्रखर और प्रभावकारी होगी। पत्रकारिता एक ऐसा क्षेत्र है जिसके जरिये हम मज़लूमों, शोषितों या वो लोग जो हाशिये पर है उनकी आवाज आसानी से उठा सकते हैं। पत्रकार समाज मे उतनी ही अहम भूमिका निभाता है जितना एक साहित्यकार, समाज विचारक। ये तीनों ही पुराने पूर्वाग्रह को तोड़ते हैं और अवचेतन समाज में चेतना जागृत करने का काम करते हैं। मशहूर शायर अकबर इलाहाबादी ने अपने इस शेर में बहुत सही तरीके से पत्रकारिता की भूमिका की बात कही है–खींचो न कमानों को न तलवार निकालो जब तोप मुक़ाबिल हो तो अख़बार निकालोमैं भी एक कलम का सिपाही हूँ और पत्रकारिता से जुड़ा हुआ हूँ। मुझे साहित्य में भी रुचि है । मैं एक समतामूलक समाज बनाने के लिये तत्पर हूँ।

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